Search

प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में सवालों के जवाब गायब

Apoorv Bhardwaj प्रधानमंत्री का भाषण देखा-सुना. बहुत उम्मीद थी. शायद कोई दिशा मिलेगी. लेकिन अंत तक समझ आ गया. ये भाषण देश के लिए नहीं था. चुनाव के लिए था. कुछ दिनों बाद यही भाषण बिहार की रैली में सुनेंगे. एक ही नई चीज मिली- "न्यू नॉर्मल" और यहीं से सवाल शुरू होते हैं.
जीरो टॉलरेंस फॉर टेरर ? 
तो 2001 के संसद हमले के बाद से यही लाइन थी. उरी, पठानकोट, पुलवामा तक कुछ नहीं बदला. तो नया क्या है?
टॉक और टेरर साथ नहीं?
तो 26/11 के बाद मनमोहन सिंह सरकार ने कहा था. और आप ही तीन बार इसे तोड़ चुके हैं प्रधानमंत्री जी.
सर्जिकल स्ट्राइक?
तो वो भी UPA सरकार कर चुकी है. सेना के पूर्व प्रमुख भी कह चुके हैं. हां, स्केल बड़ा था. टार्गेट मीलिट्री था. लेकिन ये तो 1971 से न्यू नॉर्मल है, जब भारत ने पूरा पाकिस्तान तोड़ दिया था. तो ये नया क्या है? या फिर सिर्फ शब्दों की बाजीगरी है?
प्रधानमंत्री मोदी से देश जानना चाहता था
  • शिमला समझौते के बाद अमेरिका की मध्यस्थता क्यों? क्या शिमला समझौता खत्म हो गया है?
  • पाकिस्तान के DGMO ने फोन पर कहा, हमला नहीं होगा. तो फिर सीज़फायर के बाद हमला क्यों हुआ?
  • ट्रंप प्रशासन इस डील का श्रेय क्यों ले रहा है? क्या बातचीत में अमेरिका अब पार्टनर है?
इन सवालों का जवाब के बदले प्रधानमंत्री का देश नाम संबोधन में मिला भाषण. ये भाषण चुनावी प्रोपोगैंडा है. क्या जेश की जनता यह कभी नहीं समझेगी कि भाषण से देश नहीं चलते, सत्य और जवाबदेही से चलते हैं. डिस्क्लेमरः लेखक राजनीतिक मामलों के टिप्पणीकार हैं और यह टिप्पणी उनके सोशल मीडिया पोस्ट से लिया गया है.
Follow us on WhatsApp