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क्या 100 साल पुरानी संस्कृति को छोड़ बंगाल उत्तर भारत बन पायेगा!

Soumitra Roy बहुत सारे लोग पश्चिम बंगाल में भाजपा के बढ़ते सामाजिक आधार पर हैरत जताते हुए चुनावी जीत की उम्मीद बांध रखी है. पर, ये वास्तविक है, इसमें संदेह है. इसमें हवा भरी गई है. त्रिपुरा की तुलना बंगाल से करना सही आकलन नहीं है. सबसे पहले यह समझिये कि बंगाल में हिन्दू कौन हैं? 29% दलित, आदिवासियों को छोड़कर बाकी भद्रजन खुद को हिन्दू राष्ट्रवाद के पचड़े में नहीं डालते. उत्तरी बंगाल और जंगलमहाल में भाजपा की मजबूती इसीलिए है. इस तबके में पहले वाम दलों की पैठ थी. अब ये वोट भाजपा के पाले में है. वाम दलों ने बंगाल में जाति के बजाय वर्ग की राजनीति की. लेकिन ममता ने वर्ष 2011 के बाद निचली जातियों को नई पहचान देने की कोशिश की है. बंगाल में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अपना वोट शेयर 40% तक बढ़ाया. इस उछाल में सत्ता विरोधी लहर का बड़ा हाथ रहा. लेकिन ममता की जातिगत पहचान की राजनीति का ज़्यादा फायदा भाजपा ने उठाया और जनाधार बढ़ाने के लिए ओबीसी को जोड़ने की कोशिश की. राज्य के पार्टी प्रमुख दिलीप घोष ओबीसी हैं. तृणमूल और माकपा के मुखिया अगड़ी जाति से हैं. बंगाल में भाजपा का प्रमुख एजेंडा CAA के ज़रिए मुस्लिमों, खासकर अप्रवासी बांग्लादेशी दलितों को हिन्दू बनाना है. पार्टी मुसलमान शरणार्थियों को भी भगवा छत के नीचे लाने का झांसा दे रही है. लेकिन असम का हाल उन्होंने देख लिया है. बंगाल की सत्ता भाजपा के लिए CAA लागू करने के ख्वाब की ताबीर है. तृणमूल की सबसे बड़ी खामी भ्रष्टाचार और हिंसा रही है. एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2019 में करीब 1 करोड़ वोटर भाजपा में गए थे. अमित शाह की ऊर्जा का यही राज़ है. ये वाम दलों और कांग्रेस के वोटर्स हैं, जो तृणमूल की हिंसा से ख़ौफ़ज़दा होकर भाजपा की शरण में गए. इन सभी सकारात्मक पहलुओं के बावजूद भाजपा और सत्ता के बीच ममता बनर्जी खड़ी हैं. ममता से लड़ने के लिए भाजपा ने शहरों से गांव की ओर वाला अपना हिंदुत्व का मॉडल ही पलट दिया. अमर्त्य सेन कहते हैं कि भाजपा का जय श्रीराम वाला नारा बंगाल में रहने वाले हिंदी भाषी बिहारियों और उत्तर भारतीयों को उकसाने के लिए था. भाजपा इसमें काफी सफ़ल भी रही. ज्योति बसु ने एक बार कहा था कि बंगाल में दो ही जातियां हैं- अमीर और ग़रीब. वाम दलों ने इसी आधार पर सियासत की. अब बीजेपी इसे जातिगत सियासत में बदलना चाहती है. लेकिन बंगाल अपनी 100 साल से ज़्यादा पुरानी संस्कृति को यूं बदलने नहीं देगा. बंगाल उत्तर भारत नहीं बनने वाला. अगर बन जाये तो समझियेगा, भारत की तस्वीर बदल जाएगी. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.
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