alt="" width="600" height="400" /> समापन दिवस पर एक सामूहिक चिंतन सत्र का आयोजन किया गया, जिसमें सभी प्रतिभागियों ने अपनी कलाकृतियों को साझा किया और उनकी व्याख्या की. कार्यशाला के अंत में सभी कलाकारों को प्रमाण पत्र और स्मृति-चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया गया. र्यक्रम में बिनोद रंजन, रामानुज शेखर, दिनेश सिंह (तीनों वरिष्ठ कलाकार) और वंदना टेटे (प्रख्यात साहित्यकार) बतौर अतिथि शामिल हुए. सभी ने प्रतिभागियों की कलाकृतियों पर अपनी टिप्पणियाँ प्रस्तुत कीं. बिनोद रंजन ने कहा कि परिणाम संतोषजनक है. चित्रों में पोस्टर क्वालिटी अधिक दिखाई दी. नए कलाकारों को आर्ट क्वालिटी के विकास पर ध्यान देना चाहिए. विषय चयन सराहनीय था. कुछ चित्र प्रभावशाली थे, लेकिन अन्य में सुधार की गुंजाइश है. पेंटिंग केवल कला न रहे, बल्कि जीवन में उसका अभ्यास भी ज़रूरी है. रामानुज शेखर ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में महिला कलाकारों को एक साथ देखना एक सुखद अनुभव है. कार्यशाला का विषय सामयिक और महत्वपूर्ण था. कुछ चित्र अत्यंत प्रभावशाली थे. कलाकारों को पर्यावरण से गहराई से जुड़ना चाहिए और कलात्मक गुणवत्ता को और निखारने की आवश्यकता है दिनेश सिंह ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यह एक उत्कृष्ट कार्यक्रम रहा, जो आजकल कम देखने को मिलता है. अब लोगों की रुचि कला में कम होती जा रही है.एक सच्चा कलाकार वही है, जो अपनी कला से जटिल विषयों को सरल रूप में प्रस्तुत कर सके. वंदना टेटे ने विचार साझा करते हुए कहा कि 19 महिला कलाकारों को एक मंच पर लाने के लिए आयोजकों को धन्यवाद. चित्रों को देखकर यह अनुभव हुआ कि दिल, दिमाग और हाथ एक साथ कैसे काम करते हैं, और बिना शब्दों के मन की बात कह देते हैं. सभी कलाकृतियां सराहनीय हैं. हालांकि यह विचारणीय है कि इस कार्यशाला में केवल लड़कियाँ ही क्यों शामिल हुईं. यदि केवल महिलाएं ही पर्यावरण की जिम्मेदारी लेंगी, तो यह एकतरफा प्रयास होगा। पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी में पुरुषों की भागीदारी भी उतनी ही आवश्यक है. केवल कला रचना नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ एकात्म होना और भी अधिक महत्वपूर्ण है. इसे भी पढ़े-IAS">https://lagatar.in/ias-vinay-chaubeys-health-deteriorated-admitted-to-rims/">IAS
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