Surjit Singh
कल रांची के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय के चाचा का देहांत कोरोना से हो गया. रात में डिप्टी मेयर का बयान पढ़ा. सुबह में वही बयान अखबारों में भी पढ़ा. अफसरों ने उनका फोन तक नहीं उठाया. एक डिप्टी मेयर की यह औकात, तो आम लोगों की क्या बिसात. यह जितना दुखद है, उतना ही शर्मनाक भी. दम तोड़ चुके सिस्टम का सबूत भी
रुकिये! आपको किस बात का घमंड है. यह सबको पता है पिछले एक साल में आपने कुछ नहीं किया. आज भी आप कुछ कर नहीं सकते. बस बैठकें कर सकते हैं. बयान जारी कर सकते हैं. आदेश दे सकते हैं. चेहरा चमका सकते हैं. पर आप नहीं जानते, सुनता कोई नहीं है. बहुत सारे आदेशों को आपके ही अफसरों ने ठेंगे पर रख रखा है और पैसे पहुंच वाले लोग तो जूते की नोंक पर रखते ही हैं.
कल डिप्टी मेयर ने जो महसूस किया होगा. कल को आप भी महसूस करेंगे. बस सबको यह पता चल जाना चाहिए कि अब आप बचेंगे नहीं. या अब आपकी सत्ता और नौकरी कुछ ही दिनों की बची है. तब कोई भी आपकी भी नहीं सुनेगा. फोन भी नहीं उठायेगा. क्योंकि आपने सिस्टम ही ऐसा बना दिया है. विश्वास न हो तो किसी सुबह मोरहाबादी चले जाइये. टहलते हुए तमाम रिटायर अफसरों से पूछ लीजियेगा. हैसियत का अंदाजा लग जायेगा.
जो मंत्री, विधायक, सांसद हैं, वो 5-10 साल से और जो अफसर हैं, वो 25-33 साल से. इस दौरान आपने दूसरों की तकलीफ सुनी ही नहीं. अब तो आपकी आंख का पानी भी मर गया है. आपको हक नहीं है, सरकार कहलाने का. आपको हक नहीं है अफसर कहलाने का.
अब तक देखता था. महसूस करता था. आप अपनों के भ्रष्टाचार पर चुप रहते थे. बॉस की हां में हां मिलाते रहते थे. शायद ही कभी गलत को गलत कहा हो. फिर अपने नीचे वालों के भ्रष्टाचार पर भी चुप रहने लगे. जुबान से नरम आवाज निकलने लगी. लगा पैसा ले लिया है. पर, नहीं आप तो सिर्फ कुर्सी पर बने रहने के लिये डरे-सहमे हुए हैं. अब तो लग रहा है कि आप सब पतित हो चुके हैं. बस कुर्सी चाहिए.
अगर आप सब में जरा भी शर्म बची है, तो डिप्टी मेयर से पूछिये, किस-किस ने उनका फोन नहीं उठाया. किसी का चेहरा देखे बिना सब पर एक लाईन से कार्रवाई कर दीजिये. कह दीजिये, फोन सरकार का, फोन का बिल सरकारी, हर माह लाखों की सैलरी, रहने के लिये बंगला सरकार का और फोन नहीं उठायेंगे, तो नौकरी छोड़ कर घर बैठिये. देखियेगा, कल से एक आम पब्लिक का भी फोन उठाने लगेंगे सब. आप कर सकते हैं. पर आप करेंगे नहीं. आपकी रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है. आप तो बस महत्वपूर्ण पद पर जमे रहना चाहते हैं. रिटायरमेंट तक. क्योंकि फोन नहीं उठाने वालों में से कई आपके प्रिय हैं. प्रिय क्यों हैं, यह सब जानते हैं. पर, यह जरुर याद रखिये, महत्वपूर्ण यह नहीं कि आप कितने दिन जिएं, कितने दिन पद पर रहें, महत्वपूर्ण यह होता है कि कैसे जिया और किस तरह पद का लाभ आम लोगों-जरुरतमंदों को दिया.