समय रायना के कार्यक्रम इंडिया गॉट टैलेंट में पोडकास्टर रणवीर अलाहाबादिया की अश्लील भाषा को लेकर देश भर में उबाल है. लेकिन यह सवाल तो उठता ही है कि आखिर हमारा समाज इतना अश्लील और फूहर कैसे बन गया. इसी विषय पर लक्ष्मी प्रताप सिंह की यह टिप्पणी पढ़ें. – संपादक
Lakshmi Pratap Singh
देश में संचार क्रांति हुई, फिर जिओ का फ्री इंटरनेट आया. जिसका झंडा खुद मोदी जी के हाथ में था. बच्चे बूढ़े सभी के हाथ में फ्री इंटरनेट और सस्ता स्मार्ट फोन आ गया. पूरी दुनिया की जानकारी, पोर्न, गलत-सही हर चीज का एक्सिस बस एक क्लिक, एक सर्च की दूरी पे था.
जाहिर है ह्यूमन ब्रेन पहले गलत ही पिक करता है. भारत में अचानक पोर्न कंजप्शन इतना बढ़ गया कि हम 2019 में दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा पोर्न देखने वाला देश बन गये. 2019 में भारत की 89% पब्लिक मोबाइल पर पोर्न देख रही थी. एक सर्वे में आया कि हरियाणा का 63% यूथ पोर्न देखता है, बाकि राज्यों का भी कमोबेस यही हाल है.
एक भी एजेंसी ने इसका संज्ञान नहीं लिया? एक भी एजेंसी ने ये इंश्योर नहीं किया कि एडल्ट कंटेंट देखने के लिए, जो 18+ पर जरुरी क्लिक हो रहा है, ये अगर कोई 13 साल का बच्चा कर दे तो कैसे रोकना है? न अभिवावकों को इसके गाइडलाइन दिये, न किसी तरह की अवेयरनेस फैलाई, ना ही पब्लिक और हमारी सोसाइटी को इसकी सुध थी.
लेकिन यहां तक कैसे पहुंचे उसकी क्रोनोलॉजी समझिये. जब फ्री इंटरनेट आया तो सबसे पहले झूठे मैसेज और गलत जानकारी वायरल होना शुरू हुई. इसकी शुरुआत हुई “एक मैसेज पांच लोगों को भेजो तो गुड न्यूज मिलेगी” से. और बच्चे-बूढ़े सब ने भेजा.
फिर भारत के झंडे और नक्शे को यूनेस्को से नंबर एक करार दिया जाने लगा. ये मेसेज तो इस सोसाइटी के बुजुर्गों ने सबसे ज्यादा फॉरवर्ड किये. लेकिन ऐसे कंटेंट बनाने वालों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई. किसी एजेंसी ने सुध नहीं ली?
इसके बाद नंबर आया गांधी और नेहरू का. उनके चरित्र के चीरहरण का. गांधी जी चरित्रहीन थे, फलानि के साथ सोते थे. नेहरू अय्याश थे. लंदन की सिगरेट पीते थे. ऑक्सफोर्ड में कपड़े धुलवाते थे. ऐसे मैसेज और कंटेंट बनाकर चारों तरफ फैलाये गये.
इन पर वीडियो बने. खूब शेयर हुए, खूब वायरल हुए, खूब व्यूज आये. ध्यान रहे ये सब जानकारी गलत थी. उसके ऊपर एक राष्ट्रपिता और दूसरा देश का पहला प्रधानमंत्री था. लेकिन ऐसे कंटेंट बनाने वालों पर कोई कार्रवाई हुई? नहीं हुई.
यहां से आपने सोसाइटी और खास तौर पर जवान पीढ़ी को बताया कि इंटरनेट पर गलत वीडियो बनाना कोई गुनाह नहीं है. अचानक बच्चों के वीडियो की बाढ़ आने लगी. स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चे हिन्नू शेर शेरनी बनने लगे.
फिर दौर आया ऑनलाइन ट्रॉलिंग का. जो भी एक विशेष आइडियोलॉजी के खिलाफ हो, उसे ट्रोल करना शुरू. उसको ऑनलाइन गाली देना, फब्तियां कसना, डार्क ह्यूमर वाले कमेंट करना शुरू हुआ.
आमिर खान की बीवी ने कहा कि उसे अनसेफ लगता है तो सब उसे गरियाने लगे. TATA SKY को रिपोर्ट करने लगे. आमिर की फिल्में boycott करने लगे. शाहरुख ने कुछ बोल दिया तो उसकी फिल्में boyCott करने लगे.
ध्यान रहे ये सब इंटरनेट से ही हो रहा था. इसके कैंपेन उसी इंटरनेट, सोशल मीडिया पर चल रहे थे. सब ने इसके बराबर मजे लिए.. क्या पढ़ा लिखा, क्या अनपढ़, क्या बच्चा, क्या जवान, लेकिन ऐसे कंटेंट बनाने वालों पर कोई कार्रवाई हुई? किसी एजेंसी ने क्लियर किया कि ये करना आपराधिक है?
इसके बाद महिलाओं को ट्रोल करना शुरू किया गया. स्वरा भास्कर ट्रोल हो रही तो राइट विंग के लोग खुश और कंगना रानौत ट्रोल हो रही तो लेफ्ट विंगर. जो महिला आपके विरोधी विचारधारा का बयान दे दे, उसकी नंगी तस्वीरें डालना शुरू. मॉर्फ करके एडिट करके महिलाओं की गंदी तस्वीरें डालनी शुरू. कितनों पे कार्रवाई हुई. शायद इक्का दुक्का. यहां आपने मौन रूप से बताया कि महिलाओं की इज्जत उछालने में बुराई नहीं बशर्ते वो दूसरी विचारधारा की हों.
जब ये सब हो रहा था तो सोसाइटी और खास तौर पर बच्चों को ये समझ आ रहा था कि चरित्र हनन करो, गाली दो, डार्क बातें बोलो तो फॉलोवर बढ़ रहे हैं… अगर सत्ता की तरफ हो, अपर कास्ट हो, सत्ता पक्ष के लोगों से उठना-बैठना है तो कोई आपका कुछ नहीं उखाड़ पायेगा… गाली देना, फब्तियां कसना कूल हो रहा था.. क्योंकि उसका बाप भी देता है…
आप किसी को गाली देना सिखा सकते हैं. लेकिन देनी किसे है ये कंट्रोल नहीं कर पायेंगे. इस पीढ़ी को नंगा नाच हमने ही गिफ्ट किया है, हमने अलाउ किया है. जब तक बच्चा गांधी नेहरू और हर विरोधी विचारधारा के आदमी के सेक्स के बारे में बात कर रहा था, तब तक ठीक था, अब जब वो पलट के अम्मा-बाप के सेक्स के बारे में बातें कर रहा है तो बुरा लग रहा है. भावना आहत हो रही है. ये ऐसा है कि जब तक कुत्ता पड़ोसी को काट रहा था, तब तक हंस रहे थे. आज उसने आप को काट लिया तो याद आया कि ये खराब है.
डिस्क्लेमर : यह पोस्ट लक्ष्मी प्रताप सिंह के फैसबुक वॉल से साभार लिया गया है और यह पोस्ट गलत भाषा या किसी के गलत कृत्य को सही नहीं ठहरता, न ही लेखक ऐसा मानता है.
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