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झारखंड की 21 में से 12 बटालियनें प्रभार के भरोसे, कमांडेंट का पद खाली

 Ranchi :  झारखंड में गठित बटालियनों की हालत चिंताजनक है. केंद्र से मिलने वाली राशि से नई बटालियनें तो बन गई हैं, लेकिन उनमें कामकाज सुचारु रूप से चलाने के लिए जरूरी व्यवस्थाएं नहीं की गई हैं.एक बड़ा मुद्दा कमांडेंट जैसे महत्वपूर्ण पदों का खाली रहना है.

 

राज्य में कुल 21 बटालियनों में से 12 बटालियनें सिर्फ प्रभारियों के भरोसे चल रही हैं.यह स्थिति जैप (झारखंड आर्म्ड पुलिस), आईआरबी (इंडियन रिजर्व बटालियन), एसआईआरबी (स्पेशल इंडिया रिजर्व बटालियन), और एसआईएसएफ (झारखंड स्टेट इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स) जैसी महत्वपूर्ण इकाइयों को प्रभावित कर रही है.

 कौन कौन सी बटालियनें हैं प्रभार में?

 जैप की 10 बटालियनों में से 3 बटालियनें—जैप 1, जैप 3, और जैप 5 प्रभार में हैं.

आईआरबी की 8 बटालियनों में से 7 बटालियन आईआरबी 1, 2, 3, 4, 8, 9, और 10 प्रभार में हैं.

एसआईआरबी  की 2 बटालियनों में से 1 बटालियन एसआईआरबी 1 प्रभार में है.

एसआईएसएफ की एकमात्र बटालियन भी प्रभार में ही चल रही है.

कुल मिलाकर, 21 बटालियनों में से 12 बटालियनें प्रभारी कमांडेंट के भरोसे काम कर रही हैं.

 

एक कमांडेंट को साल में एक बार हर पिकेट का निरीक्षण करना होता है

आईआरबी का गठन विशेष रूप से नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए किया गया था. इसकी पांच बटालियनों के लिए केंद्र सरकार ने पूरी राशि दी थी, ताकि अर्धसैनिक बलों पर निर्भरता कम हो सके,लेकिन कमांडेंट की कमी के कारण पिकेटों का निरीक्षण लगभग बंद हो गया है.

 

नियमानुसार, एक कमांडेंट को साल में एक बार हर पिकेट का निरीक्षण करना होता है और वहां रात भी बितानी होती है, ताकि जमीनी हकीकत का पता चले.लेकिन अब यह काम केवल कागजों पर ही हो रहा है.

 

अधिकांश बटालियनों का अतिरिक्त प्रभार एसपी रैंक के अधिकारियों को दिया गया है, जिनके पास पहले से ही अपने जिलों की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि वे अतिरिक्त प्रभार पर कितना ध्यान दे पाएंगे.इस स्थिति से साफ पता चलता है कि जवानों की सुविधाओं और उनकी समस्याओं पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है.

 

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