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2019 में नियुक्त हो जातीं 1900 नर्सें तो आज नहीं होते ये हालत

Praveen Kumar

Ranchi : पैरामेडिक्स, यानी वो लोग जो अस्पतालों की सारी व्यवस्था संभालते हैं. नर्स, अटेंडेंट, वार्ड ब्वॉय, लैब टेक्नीशियन जैसे लोग जो मरीज के इलाज में डॉक्टरों की मदद करते हैं. ये पैरामेडिक्स पंचायतों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर बड़े शहरों के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल तक इलाज की व्यवस्था की रीढ़ हैं. आज इस कोरोना त्रासदी में अस्पतालों में पैरामेडिक्स की भारी कमी महसूस की जा रही है. यह हालत नहीं होती अगर झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग ने सितंबर 2019 में 1900 नर्सों की नियुक्ति के लिए निकाले गये विज्ञापन को रद्द नहीं किया होता.

संक्रमण के डर से घरवाले डाल रहे काम छोड़ने का दबाव

कोरोना मरीजों की संख्या में भारी बढ़ोतरी के कारण कोविड अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी हो गयी है. पहले से कार्यरत स्टाफ में से कई बीमार हो चुके हैं. दूसरी ओर इन नर्सों और पैरामेडिकल के परिवार की तरफ से लगातार">https://lagatar.in/">लगातार

काम छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा है.

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घरवालों को डर है कि अस्पताल में संक्रमित मरीजों का इलाज करते वे खुद और परिवार के बाकी लोग भी संक्रमित न हो जायें. लेकिन इसके बावजूद इस महामारी के खिलाफ जंग में ये नर्सिंग स्टाफ बुलंदी से खड़े हैं.

अनुबंध पर कार्यरत हैं करीब 9000 पैरामेडिक्स

कोविड-19 के इस दौर में नर्सें व पैरामेडिकल स्टाफ अपनी परवाह किये बगैर मरीजों की सेवा में जुटे हैं. अनुबंध पर कार्यरत 9 हजार से अधिक पैरामेडिकल स्टाफ के भरोसे झारखंड कोरोना से पहली जंग जीतने में सफल रहा था. ये अनुबंध कर्मी 10 साल से अधिक समय से अपनी सेवा दे रहे हैं. लेकिन अभी भी वेतन के नाम पर उन्हें 15465 रुपये मानदेय के रूप में दिये जाते हैं. काम के घंटे और संक्रमण के खतरे को देखते हुए यह राशि बहुत कम है.

कोरोना से जंग में पैरामेडिकल स्टाफ की भूमिका अहम

एएनएम जीएनएम अनुबंध कर्मचारी संघ की मीरा कहती हैं, “करीब 9000 पैरामेडिकल स्टाफ पिछले 10 सालों से अनुबंध कर्मी के रूप में सरकारी अस्पतालों में सेवा दे रहा है. इसके बाद भी अनुबंध कर्मियों को मात्र 15465 रुपया मानदेय मिल रहा है. सरकार हमारी सेवा नियमित करने की दिशा में कोई पहल नहीं कर रही है. अनुबंध पर कार्यरत पैरामेडिकल स्टाफ के भरोसे कोरोना सैंपल कलेक्शन, मरीजों की देखभाल, समय पर दवा देना, सैंपल कलेक्शन और टेस्टिंग जैसी अहम जिम्मेवारी है.

राज्य के विभिन्न अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में काम कर रही 4660 एएनएम और 550 जीएनएम की सरकारी स्तर पर कोई सुधि नहीं ली जा रही है. पिछले 10 साल से अधिक समय वे सालों भर झारखंड के जंगली और पहाड़ी इलाकों में घंटों पैदल चल कर दूर-दराज के इलाकों में मरीजों को सेवा देती हैं. इस कोविड संकट ने उनकी नौकरी को और दुरूह बना दिया है. लेकिन सरकार को इनकी कोई चिंता नहीं है. सरकार ने घोषणा की थी कि महामारी के समय काम करनेवाले अनुबंध कर्मियों को 1 माह का अतिरिक्त वेतन प्रोत्साहन (इंसेंटिव) के रूप में दिया जायेगा. लेकिन यह पैसा अभी तक नहीं मिला है. मीरा और उसकी साथियों ने बताया कि वर्ष 2019 में 1900 पदों के लिए नियुक्ति निकाली गयी थी. लेकिन वह ठंडे बस्ते में चली गयी.


आउटसोर्सिंग पर रखे जा रहे पैरामेडिक्स, स्वास्थ्य सेवा होगी चौपट

नाम नहीं छापने की शर्त पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, झारखंड से जुड़े एक वरिष्ठ चिकित्सक कहते हैं. “पैरामेडिकल स्टाफ स्वास्थ सुविधा का मेरुदंड है. इनके बिना हम कोरोना की जंग जीतना तो दूर, लड़ भी नहीं सकते.” हाल के दिनों में सरकारी अस्पतालों में भी आउटसोर्सिंग पर पारा मेडिकल स्टाफ को रखा जा रहा है. वह कभी भी काम छोड़ कर जा सकते हैं. इसका नमूना हम रांची सदर अस्पताल में तीन दिन पहले देख चुके हैं. आउटसोर्सिंग पर पैरामेडिकल स्टाफ लाना राज्य की स्वास्थ्य सेवा को चौपट कर देगा

सूबे के अस्पतालों में पैरामेडिकल की है भारी कमी

कोरोना महामारी में फ्रंटलाइन वर्कर के रूप में अनुबंध पर 9 हजार से अधिक कर्मी काम कर रहे हैं. दूसरी ओर इससे कहीं ज्यादा पद आज भी रिक्त हैं. झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में नर्सों की भारी कमी है. रिम्स के चिकित्सकों के अनुसार, आईसीयू में एक से दो बेड पर एक नर्स की आवश्यकता होती है. क्योंकि आईसीयू में अति गंभीर मरीजों का इलाज होता है. वहीं सामान्य वार्ड में 6 से 7 मरीजों पर एक नर्स की जरूरत होती है. रिम्स में फिलहाल करीब 450 नर्सें कार्यरत हैं. जबकि 2000 से ज्यादा बेड वाले इस अस्पताल में लगभग एक हजार नर्सों की आवश्यकता है.

 

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