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महिला-पुरुष संबंधों पर दो फैसलेः प्यार के बाद शादी ना करना वादा तोड़ना नहीं, लिव-इन में रहे हैं तो भरण-पोषण नहीं

सांकेतिक तस्वीर.

Lagatar Desk

महिला-पुरूष संबंधों को लेकर पिछले हफ्ते दो फैसले सुर्खियों में रहें. पहला फैसला दिल्ली हाई कोर्ट का है, जबकि दूसरा फैसला जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाई कोर्ट की. दोनों मामले प्रेम संबंध के बाद शादी और लिव इन में रहने के बाद भरण-पोषण की मांग करने से जुड़ा था. महिला-पुरुष संबंधों को लेकर होने वाले विवादों पर दोनों फैसलों का असर पड़ेगा.

 

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि विवाह से पहले शादी का वादा कर संबंध बनाने के आरोपी को जमानत दी. कोर्ट ने कहा कि संबंध बनाने के बाद भी अगर कोई व्यक्ति सोच-समझ कर शादी से इंकार करता है, तो इसे विवाह को तोड़ना नहीं माना जा सकता.

 

एक अन्य मामले में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने अपना फैसला दिया है, इसमें अदालत ने कहा है कि लिव-इन-पार्टनर से भरण-पोषण हासिल करने का कोई हक नहीं बनता, जबकि महिला अपने लिव-इन पार्टनर पर दुष्कर्म का आरोप लगा रही हो.

 

दिल्ली हाईकोर्ट के समझ जो मामला पहुंचा था, उसमें महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी पुरुष ने उसे होटल में बुलाया, संबंध बनाने की कोशिश की. आरोपी ने उससे शादी का वायदा किया और संबंध बनाया. साथ ही आपत्तिजनक तस्वीरें ली. महिला का आरोप था कि जब उसने शादी की बात की तो आरोपी व उसके परिवार के लोगों ने दहेज के रुप में बड़ी मांगे रख दी. 

 

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि दहेज अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत अपराध जमानती है. यहां दहेज दिया नहीं गया है, सिर्फ इसकी मांग करने का आरोप है. आरोपी का विवाह से इंकार करना उसके स्वतंत्र इच्छा का हिस्सा है, इसे झूठे वादे का उल्लंघन नहीं माना जा सकता.

 

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाई कोर्ट में जो मामला आया, उसमें एक महिला बिना शादी के 10 सालों तक आरोपी के साथ रही. एक बच्चा भी हुआ. लेकिन शादी नहीं हुई. महिला ने अपने लिव-इन पार्टनर पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था, जिसमें अदालत ने उसे दोषी माना था. इसके बाद महिला ने भरण-पोषण की मांग को लेकर मुकदमा दाखिल किया था.

 

महिला के आवेदन पर कठुआ के प्रिंसिपल जज ने महिला को भरण-पोषण राशि देने का आदेश दिया था. आरोपी ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने फैसले को बदलते हुए कहा कि लिव-इन में रहने वाली महिला अपने पार्टनर से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती. वह भी तब जब उसने अपने पार्टनर पर दुष्कर्म का आरोप लगाया हो और अदालत ने उसे दोषी पाया हो. 

 

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि जब आरोपी को दुष्कर्म का दोषी माना गया है, तो दोनों को पति-पत्नी नहीं माना जा सकता. सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा तभी किया जा सकता है जब दोनों के बीच विवाह हुआ हो या जो संबंध बने, वह मान्य हो. 

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