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42 करोड़ खर्च, फिर भी बदहाल है रांची का बड़ा तालाब, विवेकानंद सरोवर तो बस अब नाम का

Manish Bhardwaj Ranchi : रांची का ऐतिहासिक बड़ा तालाब, जिसे स्वामी विवेकानंद सरोवर के नाम से जाना जाता है, आज अपनी दुर्दशा और प्रशासनिक लापरवाही की जीती-जागती मिसाल बन चुका है. वर्षों से इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत में यह तालाब अब गंदगी, बदबू और उपेक्षा का केंद्र बन गया है. इसे भी पढ़ें -WEATHER">https://lagatar.in/weather-alert-thunderstorms-and-hailstorms-likely-in-jharkhand-for-10-12-hours-with-strong-winds/">WEATHER

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42 करोड़ रुपये खर्च – नतीजा शून्य

नगर निगम और पर्यटन विभाग ने इस तालाब की सुंदरता बढ़ाने के नाम पर अब तक लगभग 42 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इनमें से 19 करोड़ रुपये स्वामी विवेकानंद की भव्य आदमकद प्रतिमा लगाने में खर्च हुए, जो तालाब के बीचों-बीच स्थापित है. लेकिन इसके आसपास का दृश्य किसी भी तरह से सौंदर्य या शांति का अनुभव नहीं देता. चारों ओर फैली दुर्गंध, हरी काई से ढका पानी और मरी हुई मछलियों का तैरता रहना, यह सब यहां आने वाले लोगों को परेशान करता है.

सजावट पर करोड़ों खर्च, लेकिन हालात शर्मनाक

तालाब की सफाई और सौंदर्यीकरण के लिए 14 करोड़ रुपये की लागत से पैदल पथ, साज-सज्जा, लाइटिंग और किनारों का ब्यूटीफिकेशन किया गया था. इसके अलावा 8 करोड़ रुपये सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट पर खर्च किए गए, ताकि नाले का गंदा पानी साफ होकर तालाब में जाए. लेकिन हकीकत ये है कि आज भी अस्पतालों और अपर बाजार से निकलने वाला गंदा नाला बिना ट्रीटमेंट के सीधे तालाब में गिर रहा है. सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तो लगाया गया, लेकिन गंदगी पहले किनारे पर इकट्ठा होती है और फिर वहीं से वापस पानी में चली जाती है. करोड़ों की लागत से लगाई गई तकनीक भी प्रभावी साबित नहीं हो पाई.

उजड़ चुका है विवेकानंद पार्क

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alt="dhmn" width="600" height="400" /> तालाब के किनारे नागरिकों की सैर और शांति के लिए बनाए गए विवेकानंद पार्क की हालत भी चिंताजनक है. टूटे झूले, जगह-जगह बिखरी टाइल्स, बंद पड़ी लाइटें और मकड़ी के जाले, यह सब किसी उजड़े बगीचे की याद दिलाते हैं. अब वहां शाम के समय अंधेरा पसरा रहता है और असामाजिक तत्वों का जमावड़ा देखा जाता है.

स्थानीय नागरिक हो रहे हैं परेशान

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alt="ghjmghm" width="600" height="400" /> तालाब के आसपास लगभग दो किलोमीटर के दायरे में रहने वाले हजारों लोग इस बदबू और गंदगी से त्रस्त हैं. कई लोग मास्क लगाकर गुजरने को मजबूर हैं. कुछ इलाकों में लोग टेंट लगाकर रह रहे हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

प्रशासनिक प्रयास सिर्फ औपचारिकता

रांची नगर निगम द्वारा कभी-कभी ब्लीचिंग पाउडर या फिटकरी डालकर स्थिति सुधारने का प्रयास किया जाता है. लेकिन यह भी महज खानापूर्ति बनकर रह गया है. स्थायी समाधान की कोई ठोस योजना नजर नहीं आती.

सवाल उठता है ये

आखिर 42 करोड़ रुपये गए कहां? क्या रांची जैसे शहर में एक ऐतिहासिक तालाब की इस कदर अनदेखी, किसी बड़े प्रशासनिक विफलता का संकेत नहीं है? नागरिकों के सवालों का जवाब अब प्रशासन को देना होगा, वरना यह तालाब सिर्फ एक दुखद कहानी बनकर रह जाएगा. इसे भी पढ़ें -हजारीबाग">https://lagatar.in/fir-lodged-against-hazaribaghs-vishnugarh-bdo-akhilesh-kumar/">हजारीबाग

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