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लॉकडाउन खुलने के इंतजार में है 500 केज में तैयार 500 टन पंगेसियस मछली

info@lagatar.in by info@lagatar.in
June 6, 2021
in झारखंड न्यूज़, सरायकेला
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Amit Singh

Seraikela : कोरोना महामारी का असर सभी क्षेत्र पर देखने को मिल रहा है. मगर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित किसान हैं. उनके फसल का सही दाम नहीं मिल रहा है. रोजी-रोटी चलाने के लिए मेहनत से उगाई गई फसल को औने-पौने दाम में बेचना पड़ रहा है. किसानों की तरह ही मछली पालक, मछली की खेती करने वाले भी कोरोना महामारी की मार झेल रहे हैं. लॉकडाउन की वजह से मछली की डिमांड बाजार में बेहद कम हो गयी है. रांची, पटना, जमशेदपुर एवं अन्य शहरों में मछली की खपत घट गई है.

सरायकेला – खरसावां जिला के चांडिल डैम में 500 केज में 500 टन मछली लॉकडाउन खुलने के इंतजार में है. केज में बड़े पैमाने पर पंगेसियस मछली पालन किया जाता है. बाजार में डिमांड कम होने की वजह से मछली पालक आर्थिक तंगी झेल रहे हैं. दूसरी तरफ चांडिल डैम में नौका विहार बंद होने की वजह से, इस कारोबार से जुड़े लोग बेरोजगार हो गए हैं. मछली पालन और नौका विहार से जुड़े करीब 2000 लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बेरोजगार हो गये हैं. दूसरी तरफ समिति से भी जुड़े सैकड़ों लोगों का रोजगार प्रभावित हो गया है.

इसे भी पढ़ें – कोरोना संकट के बीच मई में भी GST संग्रह एक लाख करोड़ के पार

लॉकडाउन के कारण फीड मील का उत्पादन हुआ कम

लॉकडाउन के कारण चांडिल डैम स्थित फीड मील पिछले साल बंद हो गया था. मगर इस साल बंद नहीं हुआ है. उत्पादन बहुत कम हो गया है. क्योंकि बाजार बंद होने की वजह से मछली का चारा खरीदने वाले नहीं मिल रहे हैं. फीड मील में प्रतिदिन औसतन एक से डेढ़ टन मछलियों के लिए चारा का उत्पादन होता था. मगर अभी उत्पादन में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आ गयी है. चांडिल डैम में 500 केजों में मछलियों का पालन किया जा रहा है. जिनके लिए फीड मील में जैसे-तैसे उत्पादन हो रहा है.

समिति को दस हजार का हो रहा है प्रतिदिन नुकसान चांडिल बांध मत्स्यजीवी स्वावलंबी सहकारी समिति के लोगों ने बताया कि लॉकडाउन के कारण चांडिल डैम में हो रहे मछली पालन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. लॉकडाउन के कारण समिति को प्रतिदिन दस हजार रुपये का नुकसान हो रहा है.

वियतनाम की पंगेसियस मछली का होता है उत्पादन

चांडिल डैम में वियतनाम देश की पंगेसियस मछली का उत्पादन किया जाता है. इस मछली में प्रोटीन की काफी मात्र होती है. वर्ष 2011 से डैम में मछलियों का उत्पादन किया जा रहा है. अभी 500 केज में मछली है. जिसमें तीन किलोग्राम से लेकर 500 ग्राम वजन की मछलियां हैं.

300 विस्थापित केज कल्चर से कर रहे मछली पालन

चांडिल डैम में करीब 300 विस्थापित परिवार मत्स्य पालन से जुड़े हैं. चांडिल डैम में करीब 22 समिति केज कल्चर के माध्यम से मत्स्य पालन कर रहे हैं. समिति के लोग मत्स्य पालन को बढ़ावा देने का भी काम कर रहे हैं. हर साल मत्स्य विभाग द्वारा चांडिल डैम में रोहू, कतला और पंगेसियस मछली छोड़ा जाता है. जिस डैम के किनारे बसे विस्थापित भी मछली पकड़ कर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं. साथ ही डैम के खुले में करीब 1000 विस्थापित मछली पकड़ कर अपना रोजगार प्राप्त कर रहे हैं. मगर अभी इन सभी का रोजगार प्रभावित हो गया है.

इसे भी पढ़ें –केजरीवाल ने पीएम मोदी से पूछा, पिज्जा-बर्गर की डिलीवरी हो सकती है तो घर-घर राशन क्यों नहीं? राशन माफिया से क्या हमदर्दी है?

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