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56 हजार ग्लेशियर पिछले दशक की तुलना में 65फीसदी तेजी से पिघले, मीठे पानी की कमी से 200 करोड़ लोगों पर खतरा

NewDelhi : पर्यावरण को लेकर चिंताजनक खबर आयी है. हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघलने की बात सामने आयी है. इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के क्रायोस्फियर विशेषज्ञ शरद जोशी ने कहा है कि ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के स्तर में वृद्धि और जल संसाधनों पर प्रभाव पड़ सकता है.     लगभग 200 करोड़ लोगों के लिए मीठे पानी के संसाधनों को कम करता है.   ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों में पानी की कमी हो सकती है एवरेस्ट का सबसे ऊंचा ग्लेशियर साउथ कोल 1990 के दशक के अंत से 54 मीटर से अधिक सिकुड़ गया है. माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8,848 मीटर है. हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र आठ देशों में फैला हुआ है. जोशी के अनुसार यहां ग्लेशियर लगातार बढ़ रहे वैश्विक तापमान और स्थानीय मौसम की स्थिति (शुष्क और ठंडी हवाओं के साथ) के कारण पिघल रहे है. खतरा यह है कि वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो रहा है. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अधिक बारिश और कम बर्फबारी हो रही है. ICIMOD के अध्ययन कहता है कि 2011 और 2020 के बीच हिंदू कुश हिमालय के लगभग 56 हजार ग्लेशियर पिछले दशक की तुलना में 65फीसदी तेजी से पिघले हैं. इस सदी के अंत तक ग्लेशियर अपने आयतन का 80प्रतिशत तक खो सकते हैं. नेपाल की लंगटांग घाटी में स्थित याला ग्लेशियर के बारे में कहा गया है कि इसका अस्तिस्व 20-25 साल में खत्म हो जायेगा. याला ग्लेशियर के बारे में कहा जाता है कि यह आईसीआईएमओडी द्वारा निगरानी किये जाने वाले ग्लेशियरों में शामिल है. 1974 और 2021 के बीच याला ग्लेशियर का क्षेत्र एक तिहाई से अधिक सिकुड़ गया. शरद जोशी ने उसे लेकर चिंता जताई है. जोशी ने बताया कि ग्लेशियरों के पीछे हटने से प्रोग्लेशियल झीलें बनती हैं. इन झीलों को मोरेन कहा जाता है, जो बर्फ या मलबे से बने प्राकृतिक बांधों से घिरी होती हैं भूस्खलन या भूकंप के कारण ये बांध जब अचानक टूटने हैं, तो बाढ़ के कारण गांवों, सड़कों, पुलों, जलविद्युत संयंत्रों और अन्य बुनियादी ढांचों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है. उन्होंने उदाहरण दिया कि अक्टूबर 2023 में हिमालय क्षेत्र में स्थित साउथ लोनाक झील में भूस्खलन के कार सुनामी जैसी लहर उत्पन्न हुई, जिसकी ऊंचाई 20 मीटर तक थी. इस बाढ़ ने 386 किलोमीटर लंबी घाटी में व्यापक नुकसान पहुंचाया. ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के पर्यावरण और जलवायु के प्रोफेसर क्रिश्चियन हुग्गेल भी इसी तरह की धारणा रखते हैं. इसे भी पढ़ें : धनखड़">https://lagatar.in/political-uproar-over-dhankhars-statement-on-judiciary-opposition-called-it-against-democracy/">धनखड़

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