Ranchi : राज्य में युवाओं को अफसर बनाने वाली संवैधानिक संस्था झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएसएसी) की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. पहली और दूसरी सिविल सेवा परीक्षा ऐसी विवादित हुई, जिससे इस संवैधानिक संस्था पर ही सवाल उठने लगे. आयोग द्वारा ली गयी अन्य परीक्षाएं भी काफी विवादों में रहीं, लेकिन जैसी स्थिति छठी सिविल सेवा परीक्षा की हो रही है, वह काफी संदेहास्पद है. कई तरह की गड़बड़ी सामने आने के बाद भी आयोग ने छठी सिविल परीक्षा को फाइनल कर दिया. बाद में मामला हाईकोर्ट गया.
कोर्ट ने विगत 7 जून को सुनवाई करते हुए परीक्षा पद्धति पर न केवल सवाल उठाये, बल्कि आयोग को नया रिजल्ट निकालने और दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का आदेश तक दे दिया. डेढ़ माह बीतने के बाद भी आयोग द्वारा नया रिजल्ट जारी करने का प्रयास नहीं किया गया. फिर दो दिन पहले ही जेपीएससी ने तय किया कि वह हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के खिलाफ डबल बेंच में अपील करेगा. फिर अचानक क्या हुआ कि संस्था ने डबल बेंच में जाने से संबंधित अपील याचिका वापस ले ली. ऐसे में यह कहा जा रहा है कि संवैधानिक संस्था अपने आप में कंफ्यूज्ड है. आयोग को यह समझ ही नहीं रहा है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए.
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आयोग की गोपनीयता भंग, मेरिट लिस्ट बनाने में आ सकती है अड़चन
अगर हाईकोर्ट के आदेश मानकर जेपीएसएसी नयी मेरिट लिस्ट जारी करता है, तो उसके सामने कई तरह की तकनीकी अड़चनें आ सकती हैं. छ्ठी जेपीएससी को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे अभ्यर्थी अनिल पन्ना ने लगातार न्यूज… से बातचीत की. उन्होंने कहा कि जेपीएससी लगातार यहां के युवाओं को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है, जिसके कारण अभ्यर्थियों के बीच और संशय बना हुआ है. आयोग को फिर से नयी मेरिट लिस्ट जारी करना कोई आसान नहीं होगा. इसको लेकर कई तरह की तकनीति अड़चने आ सकती है. अभ्यर्थी पन्ना ने इसे इस तरह से समझने की बात की.
पहला.. कोई भी पास अभ्यर्थी जिसे नयी मेरिट लिस्ट बनने पर बाहर किया जाएगा (मतलब हटाया जाएगा), तब इसके साथ ही और 2 अभ्यर्थियों को भी हटाना होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि हाईकोर्ट ने भी कहा है कि विज्ञापन के अनुसार ही रिजल्ट प्रकाशित होना चाहिए. ऐसे में आयोग को विज्ञापन के अनुरूप 3 गुणा नियम का पालन करना होगा. इस परिस्थिति में 2 वैसे कौन अभ्यर्थी होंगे, इसे चिन्हित कर हटाना आसान नहीं होगा.
दूसरा…. मान लीजिए एक अभ्यर्थी सभी विषयों में पास है, लेकिन आयोग द्वारा तय कट-ऑफ मार्क से 1 नम्बर कम रहा होगा. ऐसे में जब इंटरव्यू की बात आएगी तो उसका चयन इंटरव्यू के लिए नहीं हुआ होगा. वहीं दूसरी ओर ऐसे अभ्यर्थी होंगे जो एक या दो विषय में फेल होंगे, लेकिन कुल अंक कट-ऑफ से ऊपर है तो उसका चयन हो गया होगा. ऐसे में मेरिट बनाना असंभव हो जाएगा. साथ ही मार्क जारी होने के बाद अब गोपनीयता भी भंग हो गयी है.
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अब आयोग के पास क्या है विकल्प
Step 1. सबसे पहले मेरिट लिस्ट रद्द।
Step 2. मुख्य परीक्षा से उन अभ्यर्थियों की सूची छांटी जायेगी, जिन्होंने अपने-अपने वर्ग के अनुसार सभी विषयों (हिन्दी-इंग्लिश सहित) में मिनिमम क्वालिफेकशन मार्क्स प्राप्त किया है.
Step 3. फिर उनके मार्कशीट में पेपर 1 को छोड़कर बाकी सभी विषयों के कुल प्राप्तांक जोड़े जायेंगे.
Step 4. फिर नये रूप से मुख्य परीक्षा की मेधा सूची बनेगी.
Step 5. फिर जो लोग पहले इंटरव्यू नहीं दिये हुए हैं , उनका इंटरव्यू लिया जायेगा.
Step 6. अंतत: मेन्स प्लस इंटरव्यू के आधार पर नयी मेधा सूची जारी की जायेगी.
अब जो भी नये लोग इसमें इंटरव्यू देंगे, उन्हें और इंटरव्यू लेने वाले दोनों को ही अभ्यर्थियों का मार्क्स पता होंगे. इससे यह आकलन करना भी आसान होगा कि इंटरव्यू में कितने अंक लाकर वे सफल हो सकते हैं. इसमें गोपनीयता निश्चित रूप से भंग हो जाती है. साथ इससे भाई-भतीजावाद होने की प्रक्रिया से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
गोपनीयता भंग, आयोग या सरकार को अधियाचना वापस लेनी चाहिए : अनिल पन्ना
अभ्यर्थी अनिल पन्ना का कहना कि अब आयोग की गोपनीयता भंग हो चुकी है. पब्लिक डोमेन में मुख्य परीक्षा का मार्क्स और इंटरव्यू का मार्क्स प्रदर्शित हो चुका है. ऐसे में नया मेरिट रिजल्ट जारी करना आयोग के लिए आसान काम नहीं होगा. इससे मामला और भी उलझ सकता है. उन्होंने कहा कि आयोग को नई मेरिट लिस्ट बनाने में विज्ञापन में जारी 3 गुणा नियम का भी पालन करना होगा,जो किसी भी हालत में संभव नहीं लगता. ऐसे में आयोग या सरकार को पूरी प्रक्रिया रद्द कर अधियाचना वापस ले लेनी चाहिए.
हाईकोर्ट के सामने जो बातें आयीं, उस पर सुनाये फैसले पर विसंगतियां होनी तय : मिंज
जेपीएससी अभ्यर्थी राज कुमार मिंज का कहना है कि जेपीएससी लगातार अभ्यर्थियों और सरकार को गुमराह करने का काम कर रहा है. अभ्यर्थियों का अंक सार्वजनिक हो गया है. गोपनीयता भंग हो चुकी है. इसलिए अब संशोधित रिजल्ट जारी करना संभव नहीं होगा. ऐसा करने से आयोग की गोपनीयता पर सवाल उठेगा और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिलेगा. हाईकोर्ट के सामने जो बातें आयीं, उनके आधार पर कोर्ट ने फैसला सुनाया है, लेकिन उस फैसले से कई विसंगतियां पैदा होंगी.