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6th JPSC विवाद: रघुवर या हेमंत, आखिर किसकी गलती की सजा भुगत रहे हैं झारखंडी युवा

रघुवर सरकार के समय शुरू हुआ विवाद, वर्तमान सरकार के कार्यकाल में पकड़ा जोर

Ranchi: छठी सिविल सेवा परीक्षा को लेकर करीब चार साल से चल रहा विवाद अब काफी हद तक थमता दिख रहा है. झारखंड हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में परीक्षा की मेरिट लिस्ट (फाइनल रिजल्ट) को पूरी तरह से निरस्त कर दिया है. कोर्ट ने नयी मेरिट लिस्ट बनाने का निर्देश झारखंड लोक सेवा आयोग को दिया है. ऐसे में 6th JPSC में चयनित 326 अफसरों का चयन नये सिरे से की जाएगी. बता दें कि दो मुख्यमंत्री रघुवर दास और हेमंत सोरेन के कार्यकाल में पूरी हुई इस परीक्षा में काफी धांधली होने का आरोप लगा है. पहले से ही झारखंड में लाखों छात्र बेरोजगार बैठे हैं. ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि छठी सिविल परीक्षा में आखिर किसकी गलती की सजा झारखंडी युवा भुगत रहे हैं.

रघुवर सरकार में पहली बार 15 गुणा रिजल्ट जारी निकाल कर शुरू हुआ विवाद

दरअसल, 6th JPSC में विवाद का चरण पूर्व सीएम रघुवर दास के कार्यकाल में शुरू हुआ था.जब 11 अगस्त 2017 को आयोग द्वारा पहली बार संशोधित रिजल्ट जारी हुआ था. नये रिजल्ट में सबसे पहले जारी रिजल्ट 5138 में 965 छात्रों को अतिरिक्त जोड़ा गया था. यह 965 रिजल्ट ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों का था. निर्धारित सीट से 15 गुना अभ्यर्थियों के चयन होने के कारण विवाद शुरू हो गया. विवाद के इस चरण में आरक्षण के उल्लंघन को भी आधार बनाया गया.

नियमों को ताक पर रखकर नेतरहाट कैबिनेट में लिया गया था फैसला

विवाद का दूसरा चरण रघुवर सरकार के समय ही शुरू हुआ. फरवरी 2018 में नेतरहाट कैबिनेट की बैठक में बतौर सीएम रघुवर दास ने नियमों को ताक पर रख प्रारंभिक परीक्षा में अतिरिक्त 28,531 रिजल्ट जारी करने का निर्देश दिया. यानी प्रारंभिक परीक्षा में ही रिजल्ट कुल (6103+28531) = 34634 हो गया. यानी अब रिजल्ट करीब 106 गुना हो गया. विवाद फिर कोर्ट चला गया. जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 21 अक्टूबर 2019 को अपने फैसले में 28531 रिजल्ट को रद्द कर दिया. यानी 6103 अभ्यर्थियों के आधार पर मुख्य परीक्षा का रिजल्ट जारी किया गया.

सत्ता में आते ही हेमंत सोरेन ने परीक्षा रद्द करने की बात की थी, नहीं हुआ कुछ ऐसा

विपक्ष के नेता रहने के दौरान वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार 6th JPSC में अपनायी गयी प्रक्रिया पर सवाल उठाते रहे. जब दिसंबर 2019 में रघुवर सरकार सत्ता से हटी और हेमंत सोरेन ने सरकार बनायी. चुनावी वादों की बात करते हुए छात्रों ने पूरी परीक्षा को रद्द करने की मांग की. छात्र कह रहे थे कि विपक्ष में रहने के दौरान ही हेमंत ने सरकार बनने पर परीक्षा को रद्द करने की बात की थी. हालांकि ऐसा नहीं हुआ.

मुख्य परीक्षा का रिजल्ट जारी करने के बाद सामने आयी कई गड़बड़ियां

22 अप्रैल 2020 को मुख्य परीक्षा का रिजल्ट जारी हुआ. जिसके बाद विवाद पूरी तरह से खुल कर सामने आ गया. जेपीएससी ने अंतिम परिणाम में कई गड़बडिय़ां पायी.

• पेपर वन (हिंदी व अंग्रेजी) में अभ्यर्थियों को सिर्फ क्वालिफाइंग मार्क्स लाना था और उसका अंक कुल प्राप्तांक में नहीं जोड़ा जाना था, लेकिन जेपीएससी ने इसे कुल प्राप्तांक में जोड़ दिया.

• सभी पेपर में अलग-अलग निर्धारित न्यूनतम अंक लाना अनिवार्य था, लेकिन जेपीएससी ने दोनों पेपर के अंक को जोड़कर मेरिट लिस्ट बनाई है. इसके चलते ऐसे अभ्यर्थियों का चयन हो गया है, जो एक पेपर में फेल हो गए थे.

• कई छात्र जो आरक्षित श्रेणी से आते हैं, लेकिन उनका चयन अनारक्षित श्रेणी में किया गया है, जिसके चलते कैडर चुनने में प्राथमिकता नहीं मिली है.

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