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भारी बहुमत वाली मजबूत पर लाचार सरकार जो चुनाव भी हार गई

Sanjay Kumar Singh

प्रधानमंत्री नेरन्द्र मोदी ने बंगाल में चुनाव प्रचार छोड़कर कोरोना पर चर्चा की लिए मीटिंग 23 अप्रैल को की थी. तथाकथित प्रोटोकोल तोड़कर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से अपनी मांग सार्वजनिक कर दी थी और गोपनीय किस्म की बैठक सार्वजनिक हो जाने से नाराज प्रधानमंत्री ने नाराजगी जाहिर कर दिया था. उसके बाद क्या हुआ पता नहीं. ऑक्सीजन की कमी दूर नहीं हुई. दिल्ली समेत देश भर के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से लोगों का मरना जारी है. सरकार आज 5 मई तक यह सुनिश्चित नहीं कर पाई है कि ऑक्सीजन की कमी से कहीं कोई नहीं मरे. दो मई दीदी गई - भी सुनिश्चित नहीं हुआ.

गंगाराम अस्पताल वाली घटना के बाद अगले दिन अखबारों में छपा कि रोहिणी के एक और अस्पताल में 20 लोगों की मौत हो गई थी. और खबर दो किस्तों में छपी. इसलिए छोटी हो गई. वरना एक दिन में 45 लोगों की मौत बड़ी खबर थी. इसके बावजूद बत्रा अस्पताल में फिर मौतें हुईं और कल कर्नाटक के अस्पताल में 23 लोगों की मौत की खबर छपी है. दो मई को बत्रा अस्पताल में मौत की खबर छपी थी. उस दिन टाइम्स ऑफ इंडिया में सिर्फ पहले पन्ने पर देश भर के भिन्न अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से कुल 65 लोगों के मरने की खबर छपी थी. इस मामले में अदालत की कोशिशों का भी असर नहीं हुआ है और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार ने अपील की है. सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है.

अस्पताल में मौत की खबरों से विदेशी दूतावास भी हिल गए और ऑक्सीजन का बंदोबस्त करने लगे. सरकार को इसमें राजनीति ही दिखी और ऑक्सीजन जमा नहीं करने की सीख से अलग कुछ और नहीं हुआ. जबकि हालात ऐसे हैं कि दिल्ली हाईकोर्ट के जजों के लिए खास व्यवस्था की गई. क्यों और किसके कहने पर की गई यह पता नहीं चला. पर सबको सबकी चिंता है - इसमें कोई शक नहीं है और इसमें भी कि सरकार के भरोसे नहीं रहा जा सकता है.

लेकिन सरकार ने क्या किया है? रेल मंत्री और दूसरे मंत्रालय व विभाग भी बता रहे हैं कि सरकार ने क्या किया है. रेलवे ऑक्सीजन टैंकर ढ़ो रहा है. सरकार विदेशों से मंगा रही है आदि. पर लोग मर रहे हैं. विदेशी दूतावास तक परेशान हैं.

दूसरी ओर, आप सहायता करना चाहें तो नहीं कर सकते हैं. अगर आप या कोई संगठन अस्पताल जैसी सुविधा तैयार करना चाहें तो ऑक्सीजन नहीं मिलेगा. वैसे तो आदेश यह जारी हुआ था कि ऑक्सीजन टैंकर को रोका नहीं जाए पर आवश्यक वस्तु घोषित कर दिए जाने की अपनी समस्या और परेशानी है. दिल्ली हाईकोर्ट वाले मामले के बाद नागरिकों अधिकारियों के किसी भी वर्ग के लिए विशेष व्यवस्था करने के अपने डर हैं और दूतावासों द्वारा सिलेंडर की व्यवस्था किया जाना एक अलग सच है. सरकार क्या कर रही है और कितना कर पा रही है, समझना मुश्किल नहीं है.

मेरा मानना है कि एक आदमी की सरकार ऐसी ही होती है. जब तक भाजपा के नेता, प्रधानमंत्री के सहयोगी उन्हें नहीं बताएंगे उन्हें पता भी नहीं चलेगा. इसलिए मान लीजिए कि यह सिर्फ प्रधानमंत्री की नहीं उनकी पूरी टीम की हार है और अगर लोग अब भी समर्थन करते रहेंगे और काम करने की बजाय ट्वीट और रीट्वीट करेंगे तो वही होगा कि अपनों के लिए भी ऑक्सीजन का सिलेंडर युवा कांग्रेस से मांगना पड़ेगा.

अस्पताल की जरूरत हो तो बीमा किस काम आएगा? दूसरी ओर, अखबारों को यह ज्ञान दिया जा रहा है कि वे लाशों और मौतों की खबरें छापकर क्या बताना चाहते हैं. फिर भी, टाइम्स ऑफ इंडिया ने कर्नाटक के एक अस्पताल में 23 लागों के मारे जाने की खबर लीड लगाई है और शीर्षक में ही बताया है मौत का कारण ऑक्सीजन सप्लाई रुकना है.

ये मौतें भाजपा शासित कर्नाटक में हुई हैं इसलिए यह मान लेने में कोई दिक्कत नहीं है कि केंद्र सरकार जरूरत भर ऑक्सीजन की व्यवस्था करने में पूरी तरह लाचार है. दिल्ली में ऑक्सीजन का इंतजाम न हो तो यह माना जा सकता था कि राज्य सरकार निकम्मी है या केंद्र की भाजपा सरकार अपनी राजनीति कर रही है. लेकिन कर्नाटक में इतने दिनों बाद 23 लोगों की मौत हो गई तो इससे शर्मनाक क्या हो सकता है?

डबल इंजन वाले उत्तर प्रदेश की खबरों पर भारी रोक है. फिर भी डबल इंजन राज्य होने के कारण यहां ऑक्सीजन से मौत न हुई हो ऐसा नहीं है. कुल मिलाकर, सरकार बिल्कुल असहाय और पंगु लग रही है. उत्तर प्रदेश का मामला बिल्कुल अलग है. प्रदेश के गोरखपुर अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत हुई थी. तब जो कारण बताए गए या सामने आए उनपर क्या कार्रवाई हुई यह पता तो नहीं चला. अब मौतें नहीं हुई हैं. ऐसा नहीं है.

डिस्केलमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.

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