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घातक हो सकता है शक्ति का दुरुपयोग

Nishikant Thakur

भारत पर आतंकियों का हमला होना कोई नई बात नहीं है. ये आतंकी क्या और कैसे होते हैं, इस संबंध में कुछ भी लिखना उचित नहीं है, क्योंकि ऐसा करना उनके प्रचार तंत्र का हिस्सा बनने के अलावा कुछ नहीं है. हां, भारत में सबसे बड़ा और सिलसिलेवार हमला वर्ष 1993 के 12 मार्च को मुंबई में हुआ, जिसमें 12 स्थानों पर बम विस्फोट हुआ और 257 लोग मारे गए थे. भारत में आतंकी हमलों से सबसे अधिक पीड़ित राज्य महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर ही रहे हैं. 

 

मुंबई को तो फिलहाल शांत माना जा रहा है, लेकिन कश्मीर तो आतंकियों का गढ़ माना जाने लगा है. इस राज्य का दुर्भाग्य यही रहा है कि बंटवारे के बाद सबसे अधिक आतंकी हमले यहीं हुए. अब तक की सभी सरकारों ने आतंकी हमलों से राज्य को मुक्त और शांत कराने के लिए बार-बार कठिन से कठिन कानून बनाए, लेकिन आतंकियों की घुसपैठ अभी भी जारी है और इतनी कड़ी सुरक्षा के बावजूद वहां आम जनता और राज्य की सुरक्षा के लिए तैनात हमारे सुरक्षाबल आतंकियों के हाथों मारे जाते रहे हैं. 

 

आज भारत के लोग आतंकी गतिविधियों से इस कदर अभ्यस्त हो चुके है कि दो चार आमलोगों के मारे जाने पर कोई ध्यान नहीं देते . प्रिंट मीडिया के किसी कोने में दो चार पंक्तियों में उसका उल्लेख कर दिया जाता है. रही टेलीविजन की, तो उस पर भी एक छोटी खबर देकर उसे देश के लिए अपना कर्तव्य मानकर किनारे कर दिया जाता है. हां, सोशल मीडिया के पत्रकार यदि जागरूक न रहें, तो आपके पास इस प्रकार की आतंकी घटनाओं की जानकारी पहुंच ही नहीं पाएगी. 

 

यह सही है कि विश्व का सर्वाधिक विकसित और शक्तिशाली देश अमेरिका भी इन आतंकी गतिविधियों से अछूता नहीं रहा है. लेकिन, हां वह उनके प्रति कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने से भी नहीं हिचकता है. बताते चले कि निचले मेनहट्टन में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर 16  एकड़ में फैला एक व्यावसायिक परिसर था जिसमें सात इमारतें, एक बड़ा प्लाजा और एक भूमिगत शॉपिंग मॉल था, जो छह इमारतों को जोड़ता था. 

 

इस परिसर का मुख्य आकर्षण ट्विन टावर्स थे जिन्हें  11 सितंबर, 2001 को एक आतंकी हमले में नष्ट कर दिया गया. ट्विन टावर्स के नष्ट करने के मुख्य साजिशकर्ता ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी प्रशासन ने ढूंढकर मार दिया. अमेरिका द्वारा खोजकर आतंकी को मार देने की घटना से आतंकी खेमे में खलबली मची थी और कुछ दिनों के लिए इस तरह की घटनाओं पर विराम लग गया था. बीच में कई छोटी-छोटी आतंकी गतिविधियों वहां होती रहीं, लेकिन वहां का प्रशासन सख्त रहा और उन्हें सजा देता रहा. 

 

अब पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वह तीसरी दुनिया के सभी देशों के लोगों को अमेरिका में प्रवेश पर हमेशा के लिए रोक लगा देंगे. राष्ट्रपति ने यह घोषणा वाशिंगटन में अफगान नागरिक रहमानउल्लाह लकनवाल द्वारा दो नेशनल गार्ड पर गोलीबारी के घटना के बाद की है. 

 

तीसरी दुनिया के लोगों से ताल्लुक रखने वाले इन 19 देशों के नागरिकों के लिए नई गाइडलाइंस जारी करते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज की ओर से थैंक्सगिविंग से एक दिन पहले जारी नई गाइडलाइन के बाद आया है. इससे अफसरों को इमिग्रेशन के अनुरोध की समीक्षा करते समय 19 देशों के विशिष्ट कारकों पर प्रहार करने के अधिकार मिल गया है. 


वह ट्रंप प्रशासन के पहले वर्ष में अफगानिस्तान से शरणार्थियों के पुनर्वास और अफगान नागरिकों के प्रवेश रोकने के बाद सर्वाधिक जोखिम वाले 19 देशों के संबंध में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करेगा. राष्ट्रपति ने एक पोस्ट में कहा कि मैं अमेरिकी व्यवस्था को पूरी तरह ठीक करने के लिए तीसरी दुनिया के सभी देशों से प्रवेश पर हमेशा के लिए रोक लगा दूंगा. 


ट्रंप ने यह भी कहा पूर्व राष्ट्रपति बाइडन प्रशासन के दौरान हुए लाखों गैर कानूनी प्रवेश खत्म कर दूंगा और ऐसे किसी भी व्यक्ति को वापस उसके देश भेज दूंगा, जो अमेरिका के लिए फायदेमंद नहीं हैं और हमारे देश से प्यार नहीं करते. ट्रंप ने कहा देश में गैर नागरिकों को मिलने वाले सभी संघीय लाभ व सब्सिडी खत्म कर दी जाएगी. शांति भंग करने वाले प्रवासियों को निष्प्रभावी बना दिया जाएगा. तीसरी दुनिया शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर गरीब या पिछड़े देशों के लिए किया जाता है.


राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूर्व राष्ट्रपति बाइडन द्वारा ऑटोपेन से किए गए 92 प्रतिशत आदेश को रद्द कर दिया. ट्रंप ने बाइडन को निद्राग्रस्त बताया, बाइडन  कार्य में अक्षम थे. उनकी आयु और मानसिक स्थिति उनका साथ नहीं दे रही थी, इसी वजह से महत्वपूर्ण सरकारी कागजों पर ऑटोपेन से हस्ताक्षर किए जा रहे थे. 

 

इससे यह भी साबित होता है कि उनका राष्ट्रपति पद पर पूर्ण नियंत्रण नहीं था. बहुत से गैर सरकारी निर्णय उनकी गैर जानकारी में लिए जा रहे थे और ऑटपेन से हस्ताक्षरित कार्यकारी आदेश जारी किए जा रहे थे. ट्रंप के इन आदेशों से ऐसा लगता है कि नया जब कोई दूसरा किसी पद पर आता है, तो पिछले राजनेताओं या अधिकारियों पर इसी तरह हमला करता है, ताकि इतिहास उस पूर्व राजनेता या अधिकारियों को याद ही न कर सके. 

 

वैसे यह एक सामान्य प्रक्रिया है कि अपने पूर्व की आलोचना करो, ताकि समाज व दुनिया में आपकी वाहवाही हो और आप आगे बढ़ते चले जाएं. पूर्व राष्ट्रपति बाइडन द्वारा पता नहीं कितने आदेश दिए गए, जिसे वर्तमान सरकार ने रद्द कर दिया. इसका निर्णय तो उस देश की जनता ही करेगी, क्योंकि अमेरिका एक विशाल लोकतांत्रिक देश है और विकसित भी. 

 

निश्चित रूप से विश्व का इतना विकसित व सर्वशक्तिमान राष्ट्र एक दिन में नहीं बना है. उसे विकसित राष्ट्र बनाने के लिए शताब्दियों का संघर्ष वहां की जनता ने और पूर्व राजनयिकों ने किया, पर आज वही आलोचना के पात्र बने हुए हैं. यह भी ठीक है कि कुछ निर्णय समय, काल व परिस्थितियों के अनुसार लिए जाते हैं, लेकिन पूर्व का इन कार्यों को नकार दिया जाए, इसे समाज या देश कैसे स्वीकार करेगा?

 

अब यदि भारतवर्ष के प्रति भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रुख देखें, तो वह भी भारतीयों के लिए कड़ा प्रहार है. भारतीय नागरिकों और व्यापारियों के लिए जो आदेश जारी किया गया है उसकी भरपाई भारत इतनी शीघ्रता से नहीं कर सकेगा. भारत जैसे प्रगतिशील देश पर जिस तरह से ट्रंप प्रशासन ने टैरिफ लगाया है तथा जिस तरह वहां रोजगार पाने के लिए जाने वाले युवाओं पर अंकुश लगाया है, भारत की अर्थव्यवस्था पर उसका असर पड़ना तो तय है ही, रोजगार के लिए अमेरिका जाने के दिवास्वप्न देखने वालों को भी भारी नुकसान पहुंचाने वाला है. 

 

अभी इसी वर्ष भारतीय नागरिकों को जिस तरह से हथकड़ियों, बेड़ियों में बांधकर भारत भेजा गया है, ऐसा शायद ही विश्व के किसी देश के नागरिकों के साथ किया गया होगा. हां, यह ठीक है कि ऐसे सारे लोग अवैध तरीके से अमेरिका में प्रवेश कर गए थे, लेकिन जिस प्रकार उन्हें अपमानित करके भेजा गया, यह देश को शर्मसार करने वाला था. 

 

यह भी ठीक  है कि भारत में बेरोजगारी से निजात पाने के लिए वहां अवैध तरीके से प्रवेश कर जाते हैं जिसपर भारतीय सरकार को शर्मसार होना चाहिए कि वह अपने देश के नागरिकों को अपने यहां रोजगार देने की स्थिति में नहीं है, वे किसी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त भी नहीं थे, केवल अपनी रोजी—रोटी के लिए उन्हें अपनी जान की बाजी लगानी पड़ी, जिसके कारण उन्हें हथकड़ियां और बेड़ियां पहनकर भारत आना पड़ा. अब आगे अमेरिका से किस प्रकार कूटनीतिक तरीके से भारत इसका समाधान खोजेगा, यह तो देश के नीति नियंता को ही तय करना होगा.

 

लेकिन इसका समाधान भी खोजना होगा तथा ट्रंप प्रशासन को भी इस बात से आगाह कराया जाना चाहिए कि कोई भी राष्ट्र अतिशक्तिशाली होने का इस तरह अनाचार नहीं  कर सकता. अपने देश में विपक्षियों के साथ वह जो करना चाहें करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन विश्व को इस तरह अंगूठे के नीचे दबाकर रखना, डराना भी उचित नहीं है.

 

डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं.

 

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