Search

शैक्षणिक डिग्री निजी और गोपनीय!

  • कुछ तो है, वर्ना ऐसी परदादारी क्यों !

Uploaded Image
श्रीनिवास

दिल्ली उच्च न्यायालय ने विगत 25 अगस्त, 2025 को केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय को मोदी जी की 1978 की बीए डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था. हालांकि यह खबर अब बासी हो चुकी है, लेकिन यह फैसला कुछ जमा नहीं!  लगता नहीं कि डिग्री का यह भूत आसानी से मोदी जी का पीछा छोड़ेगा. वैसे भी यह हाईकोर्ट का फैसला है, सुप्रीम कोर्ट में पलट भी सकता है. कायदे से पलटना ही चाहिए! इसलिए इसे इस रहस्य-रोमांच से भरे मामले का पटाक्षेप नहीं मानना चाहिए! बशर्ते कोई इस फैसले को चुनौती दे. विडंबना यह है कि जिस सीईसी ने वह आदेश दिया था, उसे कोई मतलब नहीं रहा. उस पद पर कोई है भी, यह भी नहीं मालूम. होता, तब भी प्रधानमंत्री के मामले में अड़ने लायक रीढ़ किसी संवैधानिक संस्था, जिसे सीधे सरकार नियुक्त करती है, में बची नहीं है!

 

मगर यह सवाल तो सहज ही उठता है कि जिस शैक्षणिक डिग्री के बल पर नौकरी मिलती है और वर्षों बाद भी फर्जी पाये जाने पर नौकरी चली जाती है, वह गोपनीय कैसे! जो जानकारी चुनाव के समय नामांकन के साथ दी जाती है और जिसके फर्जी पाये जाने पर नामांकन और चुनाव रद्द हो सकता है, वह निजी और गोपनीय ! और सच यह है कि सुप्रीम कोर्ट 2016 में एक कांग्रेस विधायक का निर्वाचन इसी आधार पर रद्द कर भी चुका है ! नीचे उस खबर का गूगल अनुवाद-
शिक्षा के बारे में झूठ बोलने पर उम्मीदवारों का चुनाव रद्द किया जा सकता है : सर्वोच्च न्यायालय
अमित आनंद चौधरी / टीएनएन: 2 नवंबर, 2016

यह फैसला तब आया, जब न्यायमूर्ति एआर दवे और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने मणिपुर के कांग्रेस विधायक मैरेम्बम पृथ्वीराज का चुनाव रद्द कर दिया, क्योंकि उन्होंने अपने नामांकन पत्र में एमबीए की डिग्री होने का झूठा दावा किया था. अदालत ने यह भी कहा कि जब तक नागरिकों को उम्मीदवारों के पूर्ववृत्त, जिसमें उनकी शैक्षणिक योग्यता भी शामिल है, के बारे में अच्छी जानकारी नहीं होगी, तब तक मतदान का अधिकार निरर्थक होगा.... 

 

क्या दिल्ली हाईकोर्ट के सम्बद्ध जजों को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की जानकारी नहीं थी! नहीं थी, तो उनकी योग्यता पर सवाल उठ सकता है, और थी, तो इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अनदेखी करना  कहा जा सकता है.  

 

कल्पना करें कि कोई डाक्टरी की फर्जी डिग्री का बोर्ड लगा कर प्रैक्टिस करने लगे और डिग्री की असलियत पूछने पर कह दे कि नहीं बतायेंगे, यह निजी और गोपनीय है !यह मामला एक व्यक्ति द्वारा नामांकन के समय अपनी शिक्षा से संबद्ध गलत जानकारी देने के संदेह का है. कायदे से तो संदेह होते ही चुनाव आयोग को स्वत: संज्ञान लेकर जांच करनी चाहिए थी. मगर आयोग की तो बात ही दूर है, जिन विश्वविद्यालयों से डिग्री मिली होने का दावा है, वे भी इसे गोपनीय बता कर नहीं दिखाने की जिद पर अड़ गये. अदालत चले गये; और अब दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इसे ‘गोपनीय’ मान लिया! 

 

इसके पहले गुजरात उच्च न्यायालय ने भी केंद्रीय सूचना आयुक्त के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा अर्जित एमए की डिग्री के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए कहा गया था. उस मामले में हुई सुनवाई के दौरान गुजरात विश्वविद्यालय ने अदालत में कहा था कि सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमाल किसी की ‘बचकानी जिज्ञासा’ को संतुष्ट करने के लिए नहीं किया जा सकता.

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के समय नामांकन के पर्चे में अपनी शैक्षणिक योग्यता का जो ब्यौरा दिया, यदि किसी को संदेह हुआ कि वह ब्योरा गलत था, तो उस डिग्री की  सच्चाई जानने की इच्छा और मांग ‘बचकानी जिज्ञासा’ है!  वैसे भी यह नरेंद्र मोदी- एक व्यक्ति/एक सांसद- पर गलत जानकारी देने के आरोप या संदेह का मामला  है. बाद में वे प्रधानमंत्री बन गये.  नहीं बनते तो भी यह जिज्ञासा बचकानी होती?

 

सवाल है कि इस मामले में दिल्ली व गुजरात वीवि और केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर उक्त सूचना को सार्वजनिक होने से रोकने पर आमादा क्यों है? किसी भी आम सांसद या विधायक का मामला होता, क्या तब भी केंद्र सरकार के सबसे बड़े वकील अदालत में उस याचिका के खिलाफ तर्क देने खड़े हो जाते?

 

झारखंड में भाजपा के एक विधायक (कांके) थे समरीलाल. 2019 में जीते थे. नामांकन पर्चे में दर्ज उनके जाति प्रमाणपत्र के फर्जी होने का आरोप लगा कर उनके निर्वाचन को चुनौती दी गयी. अदालत ने जांच का आदेश दिया.  सरकार ने जांच कराई. प्रमाणपत्र संदिग्ध पाया गया. मगर हाईकोर्ट ने उस जांच को अपर्याप्त बता कर उनके निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी. हालांकि कोर्ट ने कहा था कि सरकार दोबारा जांच करा सकती है. अब तो खैर वे विधायक भी नहीं रहे! बात खत्म हो गयी.

 

समरीलाल तो भाजपा के थे और झारखंड में झामुमो की सरकार थी, अब भी है. लेकिन यहां भाजपा की ही सरकार होती तो क्या अदालत में समरीलाल का मुकदमा सरकार लड़ती? या मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की शैक्षणिक डिग्री के फर्जी होने का संदेह हो तो वह श्री सोरेन का निजी मामला न होकर झारखंड सरकार का मामला हो जायेगा या हो जाना चाहिए

 

संयोग से आरटीआई के तहत वह मोदी जी से संबद्ध वह सूचना ‘आप’ नेता अरविंद केजरीवाल ने मांगी थी. फिर वह भी दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गये. उनके बारे में भी कोई ऐसी जानकारी मांगता, तो क्या वह ‘बचकानी जिज्ञासा’ हो जाती? और वे जानकारी नहीं देते तो कोर्ट में वह मामला दिल्ली सरकार लड़ती?

 

कमाल यह भी कि भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं- अमित शाह और अरुण जेटली (अब दिवंगत) ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर मोदी जी की डिग्री दिखायी थी! अब भी उनके वकील कह रहे हैं कि हम अदालत को दिखा सकते हैं, सार्वजनिक नहीं कर सकते! जो डिग्री एक बार पत्रकारों को दिखायी जा चुकी है, अब उसे सार्वजनिक करने से किस गोपनीयता का हनन हो जायेगा? और जिन ‘डिग्रियों’ का दावा किया था, अब तो कुछ चैनलों पर उनकी छाया प्रति दिखायी भी जा रही है! तो वह गोपनीय कहां रही?

 

इस बात पर भी गैर करें- किसी स्कूल या कालेज का कोई विद्यार्थी किसी ऊंचे पद पर पहुंच जाता है या उसे कोई बड़ा सम्मान मिलता है, तो उसके स्कूल और कालेज का भी सम्मान बढ़ता है, वे समारोह का आयोजन कर अपने ऐसे पूर्व छात्र को सम्मानित करते हैं. इस प्रसंग में एक सहज जिज्ञासा होती है कि दिल्ली और गुजरात विश्वविद्यालय ने अब तक नरेंद्र मोदी को सम्मानित करने के लिए कोई आयोजन क्यों नहीं किया है? या किसी व्यक्ति ने अब तक यह दावा क्यों नहीं किया कि मैं कालेज या स्कूल में नरेंद्र मोदी का सहपाठी था या किसी शिक्षक ने यह दावा क्यों नहीं किया कि उन्होंने मोदी जी को पढ़ाया था. मोदी की प्रसिद्धि और लोकप्रियता के मद्देनजर कुछ लोग ऐसा झूठा दावा भी करते तो आश्चर्य नहीं होता.

 

वैसे खुद मोदी जी एक साक्षात्कार (राजीव शुक्ला को, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे) में बता चुके हैं उन्होंने स्कूल तक ही पढ़ाई की या बीच में ही घर छोड़ कर निकल गये थे.
उन्होंने कहां तक पढ़ाई की है या नहीं की है, इससे प्रधानमंत्री के रूप में उनकी योग्यता का कोई रिश्ता नहीं है! हमारे कानून में विधायक-सांसद होने के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की शर्त है भी नहीं. और डिग्री किसी की योग्यता का पैमाना हो भी नहीं सकता. मगर देश के प्रधानमंत्री की डिग्री फर्जी हो सकती है, क्या यह संदेह भी देश के एक आम नागरिक के लिए शर्मिंदगी का विषय नहीं हो सकता? यदि कोई भी आश्वश्त होना चाहता है (और जिस तरह इस मामले को दबाने का प्रयास किया गया, उससे तो बहुतों के मन में यह संदेह हो गया होगा) कि यह गलत संदेह है, तो इसका क्या तरीका है? यही तो कि मोदी जी खुद दिखा दें या सम्बद्ध विश्वविद्यालय कह दे, दिखा दें- कि यह है वह डिग्री, जिसका दावा मोदी जी ने किया था. बात खत्म. लेकिन इतनी-सी बात माननीय दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश को समझ नहीं आयी, इस पर तो आश्चर्य ही व्यक्त किया जा सकता है! 

कोर्ट ने जो भी समझा, मगर यह तो लग ही रहा है कि मोदी जी की डिग्री के ‘सच’ को सामने न आने देने की एक जिद है और इससे यह संदेह और गाढ़ा ही होता है कि... कुछ तो बात है, वरना  ऐसी परदादारी क्यों!

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp