Ranchi : महालेखाकार ने झारखंड विधानसभा में जो रिपोर्ट पेश की है, उसमें कहा गया है कि राज्य में वृक्षों वाले वन क्षेत्र (फॉरेस्ट लैंड) और वन्य जीव (वाइल्ड एनिमल) की संख्या में कमी दर्ज की गई है. इसके लिए विभाग में कर्मचारियों की कमी, फंड का उचित खर्च नहीं होना, समय पर काम पूरा नहीं किये जाने समेत अन्य वजहों को जिम्मेदार ठहराया गया है.
2017 के मुकाबले 2021 में वन क्षेत्र 2.60% घटे
महालेखाकार ने वर्ष 2017 से 2021 के बीच वृक्षों वाले फॉरेस्ट लैंड में कमी होने के तथ्यों को उजागर किया है. वर्ष 2017 के मुकाबले वर्ष 2021 में वन क्षेत्र में 2.60 प्रतिशत की कमी पायी गयी है. जबकि खाली पड़े फॉरेस्ट लैंड में 13.51 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
इसी तरह निर्माण क्षेत्र में 22.35 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. वन क्षेत्र में कमी की वजह फॉरेस्ट लैंड जैसे पारिस्थितिकी व संवेदनशील क्षेत्रों में क्षेत्रीय मास्टर प्लान के तहत काम ना होना, सुरक्षा की अपर्याप्त व्यवस्था और संरक्षण के उपायों पर काम नहीं करना है.
वन्य जीवों की आबादी में भी सुधार नहीं
ऑडिट के दौरान महालेखाकार ने पाया है कि संक्षित वन क्षेत्रों में वन्य जीवों की आबादी में कोई सुधार नहीं हुआ है. क्योंकि इस दौरान जंगली जानवरों के लिए सुरक्षित व अछूते स्थान का निर्माण नहीं किया गया. साथ ही मांसहारी जानवरों के शिकार में कमी और शाकाहारी जानवरों के लिए पर्याप्त चारागाह की व्यवस्था ना करना भी है.
2018-19 में जंगली जानवरों की संख्या 38% घटी
आंकड़े के मुताबिक, वर्ष 2017-18 में वन्य जीवों की कुल संख्या 20,028 थी, जो वर्ष 2020-21 में घटकर 19,882 हो गई. ऑडिट के दौरान यह भी पाया गया कि वर्ष 2018-19 में जंगली जानवरों की संख्या में 7660 की कमी पायी गयी थी. यह कमी कुल जंगली जानवरों में 38 प्रतिशत की थी.
लेकिन वर्ष 2020-21 में जंगली जावरों की संख्या में 64 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. यानी 7778 जंगली जानवर बढ़े. आंकड़ों में बड़े पैमाने का यह अंतर बताता है कि जानवरों की गिनती करने में विभाग लापरवाह है.
पीटीआर में बाघ विलुप्त होने के कगार पर
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2000 से 2005 के बीच पलामू टाइगर प्रक्षेत्र (पीटीआर) में 34 से 46 बाघ थे, जो लगातार कम होते चले गए. वर्ष 2022 में केवल एक बाघ पाया गया. इसी प्रकार पीटीआर में अनुमानित शिकार आधार वर्ष 2012-13 में 85,666 था, जो वर्ष 2022-23 में कम होकर 4,411 हो गया. बाघों की कमी की वजह यही है. इस तरह पीटीआर में बाघों की आबादी विलुप्त होने के कगार पर है.
Lagatar Media की यह खबर आपको कैसी लगी. नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपनी राय साझा करें
Leave a Comment