NewDelhi : अदानी समूह ने अमेरिकी शोध एवं निवेश फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च के नवीनतम आरोपों को दुर्भावनापूर्ण और चुनिंदा सार्वजनिक सूचनाओं से छेड़छाड़ करने वाला बताते हुए रविवार को कहा कि उसका बाजार नियामक सेबी की चेयरपर्सन या उनके पति के साथ कोई वाणिज्यिक संबंध नहीं है. अदानी समूह ने शेयर बाजार को दी एक सूचना में कहा,हिंडनबर्ग के नए आरोप सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचनाओं का दुर्भावनापूर्ण, शरारती और छेड़छाड़ करने वाला चयन है. ऐसा तथ्यों और कानून की अवहेलना करते हुए निजी मुनाफाखोरी के लिए पूर्व-निर्धारित निष्कर्षों पर पहुंचने के इरादे से किया गया है. भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने भी हिंडनबर्ग रिसर्च पर हमलावर होते हुए कहा,पिछले कुछ सालों से जब भी संसद सत्र शुरू होता है, कोई विदेशी रिपोर्ट जारी हो जाती है.
हिंडनबर्ग के मुताबिक, बुच दंपति के ये निवेश 2015 के हैं
समूह ने कहा, हम अदाणी समूह के खिलाफ इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज करते हैं. ये उन अस्वीकार किये जा चुके दावों का दोहराव हैं जिनकी गहन जांच की गयी है, जो निराधार साबित हुए हैं और जनवरी, 2024 में उच्चतम न्यायालय द्वारा पहले ही खारिज कर दिये गये हैं. हिंडनबर्ग ने शनिवार रात को जारी एक ब्लॉगपोस्ट में कहा कि सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति ने विदेश में स्थित उन इकाइयों में निवेश किया, जो कथित तौर पर इंडिया इन्फोलाइन द्वारा प्रबंधित एक फंड का हिस्सा थे और उसमें अदानी समूह के चेयरमैन गौतम अदानी के बड़े भाई विनोद अदानी ने भी निवेश किया था. हिंडनबर्ग के मुताबिक, बुच दंपति के ये निवेश 2015 के हैं जो सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में माधवी की 2017 में नियुक्ति और मार्च 2022 में चेयरपर्सन के रूप में उनकी पदोन्नति से काफी पहले के हैं. अमेरिकी निवेश कंपनी ने व्हिसलब्लोअर दस्तावेजों का हवाला दिया
अमेरिकी निवेश फर्म ने कहा कि बरमूडा स्थित ग्लोबल ऑपर्च्युनिटीज फंड भी इस फंड में निवेश करने वालों में शामिल था. अदानी समूह से जुड़ी इकाइयों द्वारा समूह की कंपनियों के शेयरों में कारोबार के लिए कथित तौर पर ग्लोबल ऑपर्च्युनिटीज फंड का ही इस्तेमाल किया गया था. निवेश कंपनी ने व्हिसलब्लोअर दस्तावेजों’ का हवाला देते हुए कहा, सेबी की वर्तमान प्रमुख बुच और उनके पति के पास अदानी समूह में धन के हेराफेरी घोटाले में इस्तेमाल किये गये दोनों अस्पष्ट ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी थी. विदेशी बाजारों में निवेश करने वाले फंड को ऑफशोर फंड या विदेशी कोष कहते हैं. हिंडनबर्ग ने दावा किया है कि अदानी समूह के मॉरीशस और विदेशी फर्जी इकाइयों के कथित अस्पष्ट जाल को लेकर सेबी ने आश्चर्यजनक रूप से रुचि नहीं दिखाई है. हमारी विदेशी होल्डिंग संरचना पूरी तरह से पारदर्शी है : अदानी समूह
अदानी समूह ने इन आरोपों का जवाब देते हुए नियामकीय सूचना में कहा, "हम यह दोहराते हैं कि हमारी विदेशी होल्डिंग संरचना पूरी तरह से पारदर्शी है, जिसमें सभी प्रासंगिक विवरण नियमित रूप से कई सार्वजनिक दस्तावेजों में जाहिर किए जाते हैं." इसमें कहा गया कि अनिल आहूजा अदानी पावर (2007-2008) में थ्री-आई निवेश फंड के नामित निदेशक थे और बाद में 2017 तक अदाणी एंटरप्राइजेज के निदेशक रहे थे. समूह ने कहा, "हमारी प्रतिष्ठा को बदनाम करने के लिए जानबूझकर किये गये इस प्रयास में उल्लिखित व्यक्तियों या मामलों के साथ हमारा कोई वाणिज्यिकि संबंध नहीं है. हम पारदर्शिता और सभी कानूनी एवं नियामकीय प्रावधानों के अनुपालन के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध हैं. इसके साथ ही अदानी समूह ने हिंडनबर्ग को भारतीय प्रतिभूति कानूनों के कई उल्लंघनों के लिए जांच के दायरे में आया एक बदनाम शॉर्ट-सेलर` बताते हुए कहा, हिंडनबर्ग के आरोप भारतीय कानूनों के प्रति पूरी तरह से अवमानना करने वाली एक हताश इकाई के भुलावे से अधिक कुछ नहीं. जब भी संसद सत्र शुरू होता है, विदेशी रिपोर्ट जारी हो जाती है
भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा,पिछले कुछ सालों से जब भी संसद सत्र शुरू होता है, कोई विदेशी रिपोर्ट जारी हो जाती है. संसद सत्र से ठीक पहले BBC की डॉक्यूमेंट्री जारी की गयी थी. संसद सत्र से ठीक पहले जनवरी में हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट आयी थी. ये सब घटनाक्रम संसद सत्र के दौरान होता है. विपक्ष के विदेश से ऐसे संबंध हैं कि वे भारत के हर संसद सत्र के दौरान अस्थिरता और अराजकता पैदा करते हैं. वे भ्रम फैलाकर भारत में आर्थिक अराजकता पैदा करना चाहते हैं. अब वे सेबी पर हमला कर रहे हैं. भाजपा सांसद ने कहा, कांग्रेस पिछले 30-40 सालों से हमेशा विदेशी कंपनियों के साथ क्यों खड़ी रहती है? यूनियन कार्बाइड के साथ क्यों खड़ी रहती है? सरकार को हिंडनबर्ग जैसी बाहरी एजेंसियों के हमलों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए
बैंकिंग विशेषज्ञ अश्विनी राणा ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर कहा, हिंडनबर्ग विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहा है, ताकि भारत की अर्थव्यवस्था, व्यवसाय और शेयर बाजार ढह जायें. वे नहीं चाहते कि देश प्रगति करे. एक बार फिर उन्होंने देश की आंतरिक एजेंसियों पर सवाल उठाये हैं, हालांकि सुप्रीम कोर्ट उनसे संतुष्ट है. सरकार को हिंडनबर्ग जैसी बाहरी एजेंसियों के ऐसे हमलों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए,