Adityapur (Sanjeev Mehta) : अखंड सौभाग्य की कामना के साथ गुरुवार को सुहागिन महिलाओं ने वट सावित्री की पूजा की. महिलाओं ने पूजा-अर्चना कर सावित्री सत्यवान की व्रत कथा सुनी. व्रती महिलाएं सुबह ही पूजन सामग्री लेकर वट और पीपल वृक्ष का पिसी हल्दी, सिंदूर, अच्छत, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन किया और 108 परिक्रमा कर भगवान विष्णु से पति की लंबी आयु और परिवार वालों की खुशी की कामना की. ज्योतिषाचार्य पंडित रमेश कुमार शास्त्री ने वट सावित्री पूजा का मुहुर्त 6 जून को प्रात 6 बजकर 57 मिनट से ही है. महिलाएं शाम 5 बजकर 38 मिनट तक पूजन कर सकती है. बताया कि अभिजीत मुहूर्त दिन में 11.36 बजे से दोपहर 12.54 बजे तक था. इस अवधि में पूजा-अर्चना करना विशेष फलदायी होता है.
यमराज से सत्यवान को वापस लेकर आयी थी सावित्री
ज्योतिषाचार्य पंडित रमेश कुमार शास्त्री ने बताया कि वट सावित्री पूजा सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही शुभदायक है. हर साल अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और दांपत्य जीवन में शांति, सुखमय, कल्याणमय और घर में सुख, शांति व धन धान्य की समृद्धि के लिए व्रती महिलाएं वट वृक्ष का विधि-विधान से पूजा अर्चना करती हैं. उन्होंने बताया कि वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ है. उन्होंने सत्यवान-सावित्री की कथा बताते हुए कहा कि सावित्री राजर्षि अश्वपति की एकमात्र संतान थीं. सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से विवाह किया था. लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान की आयु कम है, तो भी सावित्री ने अपना फैसला नहीं बदला और सत्यवान से शादी कर ली. सावित्री सभी राजमहल के सुख और राजवैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं. जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था, उस दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गये थे. वहां वे अचानक बेहोश होकर गिर पड़े. उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आये. तीन दिन से उपवास में रह रही सावित्री को पता था कि क्या होने वाला है , इसलिए बिना विकल हुए उन्होंने यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना की, लेकिन यमराज नहीं माने. तब सावित्री उनके पीछे-पीछे ही जाने लगीं. कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी, उनका छिना हुआ राज्य मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा. यमराज समझ गये कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं. इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़कर वहां से अंतर्धान हो गये. उस समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थीं. इसीलिए इस दिन महिलाएं अपने परिवार और जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना करते हुए वट वृक्ष को भोग अर्पण करती हैं, उस पर धागा लपेट कर पूजा करती हैं.
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