Adityapur (Sanjeev Mehta) : आदित्यपुर के बाजार हाट में लखी पूजा की धूम देखी जा रही है. लोग पूजन को लेकर सामग्री की खरीदारी करने बाजारों में पहुंचने लगे हैं. हिंदू धर्म में लखी पूजा अर्थात कोजागरी पूजा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. इस दिन यानि अश्विन मास के पूर्णिमा तिथि को माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है. बिहार, असम, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में पूरे हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मनाया जाता है. बंगाल में इस पर्व को ”बंगाल लक्ष्मी पूजा” और बिहार में खासकर मैथिली बहुल क्षेत्रों में इसे ”कोजागरी पूजा” के नाम से जाना जाता है. देशभर में यह दिन शरद पूर्णिमा के नाम से प्रख्यात है. इस दिन विशेष पूजा-अनुष्ठान कर मध्य रात्रि में जागरण किया जाता है.
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पूजा में बने खीर को चांद की रोशनी में रखा जाता है
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पंडित रमेश कुमार उपाध्याय शास्त्री ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें. इस दिन पीतल, तांबे, चांदी, सोने जैसी धातु से बनी देवी लक्ष्मी की मूर्ति को नए वस्त्र में लपेटकर पूजा करें. इसके बाद रात्रि में चंद्रोदय के समय घी का दीपक जलाएं और चंद्र दर्शन करें. इस दूध से बनी खीर को चांद की रोशनी के नीचे रखने को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. कुछ समय बाद वह खीर माता लक्ष्मी को अर्पित करें और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें. माना जाता है कि इस दिन चांद की किरणों में अमृत के गुण आ जाते हैं. यही कारण है कि शास्त्रों में भी इस दिन खीर बनाने और उसे चांद की रोशनी में रखने को इतना महत्व दिया गया है.
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भक्तों को होती है विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति
उन्होंने बताया कि शास्त्रों के अनुसार कोजागरी पूजा के दिन माता लक्ष्मी की पूजा कर रात को जागरण करने से भक्तों को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन विधिवत अनुष्ठान करने से सुख, समृद्धि, धन और भाग्य का आशीर्वाद मिलता है. साथ ही यह मान्यता भी प्रचलित है कि जो व्यक्ति चांद की रौशनी में रखे गए खीर को ग्रहण करता है उसके भी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं.