Adityapur (Sanjeev Mehta) : आदित्यपुर के पीएचईडी कॉलोनी का कोई रखवाला नहीं रह गया है. यही वजह है कि यहां धड़ल्ले से स्क्रैप की चोरी हो रही है. दिन दहाड़े चोर ऑटो लगाकर स्क्रैप लादकर ले जाकर बेच रहे हैं. यहां लगे फलदार पेड़ पौधों के फलों को कोई भी बेधड़क तोड़ कर बोरी में भरकर ले जा रहा है. मजे की बात तो यह है कि यहां से रिटायर हो चुके कर्मचारियों द्वारा ही सरकारी जर्जर क्वार्टरों को कब्जाने का खेल जारी है. कई कर्मी तो कैम्पस में ही अवैध मकान बनाकर वर्षों से रह रहे हैं. बता दें कि यहां जमशेदपुर सर्किल के अधीक्षण अभियंता के साथ आदित्यपुर और जमशेदपुर डिवीजन के कार्यपालक अभियंता और सहायक अभियंता का ऑफिस के साथ सरकारी क्वार्टर भी है लेकिन इन दिनों वे कैम्पस की सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान नहीं रख रहे हैं.
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अवैध कब्जा का सिलसिला वर्षों से जारी
आदित्यपुर नगर निगम के वार्ड नंबर 20 में स्थित पीएचईडी कॉलोनी के जर्जर क्वार्टर पर अवैध कब्जा का सिलसिला वर्षों से जारी है. बता दें कि पीएचईडी कॉलोनी बहुत ही पुराना विभाग है. कभी इस कॉलोनी में प्रवेश करने के लिए गेट पर परिचय देना पड़ता था लेकिन अब वो बात नहीं रही. एक तरह से आदित्यपुर दिंदली बाजार का पार्किंग पीएचईडी कॉलोनी कैम्पस हो गया है. इसके अलावा यह ब्राउन शुगर, शराब, गांजा आदि नशीली चीजों का सेवन करने का सबसे सुरक्षित एरिया भी बनकर रह गया है. इस बारे जब अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि कई बार कार्यपालक अभियंता और अधीक्षण अभियंता की तरफ से आवास खाली करने का नोटिस दिया गया लेकिन उनकी बातों को अनसुना कर दिया जा रहा है. कॉलोनी में कुछ असामाजिक तत्व भी पीएचईडी कॉलोनी के क्वार्टर को अवैध रूप से कब्जा किए हुए हैं. कुछ व्यक्ति अनुबंध में कार्य करके सरकारी क्वार्टर मैं रहने लगे हैं.
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रहने वाले कोई व्यक्ति नहीं देता रेंट
वहीं दूसरी तरफ कुछ व्यक्ति ऐसे भी हैं जो सरकारी क्वार्टर का दीवार तोड़कर दूसरे क्वार्टर में मिलाकर रहने लगे हैं. वही कुछ व्यक्ति खाली जगह में घर बनाकर कई सालों से आश्रय लिए हुए हैं. ना ही इनमें से कोई व्यक्ति क्वार्टर का हाउस रेंट देते हैं ना ही कोई इसकी सुधि लेने वाला है. सवाल यह उठता है की अनुबंध में कार्य करने वाले व्यक्ति को सरकारी क्वार्टर में रहने की अनुमति कैसे मिल जाती है. पीएचईडी कॉलोनी के अंदर खाली जगह पर घर बनाकर रहने वाले व्यक्ति क्यों इतने सालों से टिके हुए हैं. यह सवाल पूछे जाने पर अधिकारी छोड़िए न कहकर बात टाल दे रहे हैं आखिर क्यों ?
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