Adityapur (Sanjeev Mehta) : आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में उद्यमियों को उद्यम लगाने और उन्हें प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से तत्कालीन बिहार सरकार ने 1986 में आयडा बोर्ड में प्रस्ताव पारित कराकर 236 एकड़ जमीन पर उद्यमी आवासीय कॉलोनी स्थापित करने का निर्णय लिया था. उस समय प्रत्येक उद्यमी से 300 वर्गमीटर का प्लॉट आवंटन करने के नाम पर 1988 में 12600 रुपए लिए गए थे. तब उद्यमियों को आवासीय कॉलोनी का नक्शा भी दिखाया गया था. अब जियाडा द्वारा उद्यमियों को इस प्रोजेक्ट को 2008 में रद्द किये जाने की जानकारी देकर आवासीय कॉलोनी के लिए जमा पैसे वापस लेने का दबाव दिया जा रहा है, जिसपर उद्यमी तैयार नहीं हैं. बता दें कि प्रस्तावित जमीन पर ही इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर की स्थापना कर दी गई है. लिहाजा इस योजना में शामिल सभी उद्यमियों को 15 दिन के अंदर अपने जमा पैसे एक आवेदन और जमा रुपये की रसीद जमा कर वापस लेने की नोटिस दी जा रही है. लेकिन अब तक एक भी उद्यमी हाउसिंग कॉलोनी के लिए जमा पैसे वापस लेने को तैयार नहीं हो रहे हैं. इस मामले को लेकर उद्यमियों ने कोर्ट जाने की बात कही है. बता दें कि जियाडा द्वारा आदेश पत्र में 1988 से जमा पैसे को बगैर सूद लौटाने की बात कही गई है.
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क्या कहते हैं जियाडा के क्षेत्रीय निदेशक

इस संबंध में जियाडा के क्षेत्रीय निदेशक प्रेम रंजन कहते हैं कि वर्ष 2008 में उद्यमी प्रतिनिधि की उपस्थिति में जियाडा बोर्ड ने उद्यमी आवासीय कॉलोनी के प्रोजेक्ट को रद्द कर वहां इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर स्थापित करने की योजना को मंजूरी दी थी. वर्तमान में 141 उद्यमियों के करीब 44 लाख रुपये जियाडा के खाते में जमा है. इससे पूर्व कुछ उद्यमियों ने स्वेच्छा से करीब 8 लाख रुपए वापस भी ले चुके हैं. एक उद्यमी न्यायालय की शरण में हैं. बोर्ड निर्णय के अनुसार उद्यमियों को अपने पैसे बगैर सूद के वापस लेने होंगे. जब यह योजना बोर्ड में पास हुई थी तब तक 236 एकड़ जमीन वन विभाग का था. वन विभाग से एनओसी भी नहीं मिला था. एनओसी मिलने और बोर्ड में योजना रद्द होने के बाद अब तक 86 एकड़ भूमि में ईएमसी स्थापित हो चुकी है. साथ ही 33 एकड़ जमीन में ईएमसी का इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप हो चुका है.
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क्या कहते हैं उद्यमी

इस प्रोजेक्ट को रद्द करने और जमा पैसे बगैर सूद के लौटाने के सवाल पर लघु उद्योग भारती के महासचिव समीर कहते हैं कि यह उद्यमियों के लिए ड्रीम प्रोजेक्ट था. तब औद्योगिक क्षेत्र को बसाने का लिए यह योजना बनी थी. इसके तहत उद्यमियों ने 250 रुपये का फॉर्म खरीदकर 12600 रुपए जमा किये थे. इसके तहत हमें 300 वर्गमीटर (तकरीबन 1200 वर्गफीट) जमीन मिलना था. 1998 में प्लॉट का नक्शा दिखाकर लॉटरी भी हुई थी. अब बिना स्टेक होल्डर की सहमति के किसी प्रकार की सूचना दिए बगैर गुपचुप तरीके से कैंसल कर दिया गया है. भूमि का स्वरूप बदलकर अन्य प्रोजेक्ट को ले आया गया है. झारखंड सरकार दूसरी चीजों के लिए जमीन दे रही है लेकिन उद्यमियों के लिए कुछ नहीं कर रही है. इससे उद्यमियों में निराशा का भाव है.
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