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15 दिन के एकांतवास के बाद भगवान जगन्नाथ का नेत्रदान, जय जगन्नाथ गूंजा सब ओर

Ranchi :  भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को 15 दिवसीय एकांतवास के बाद गुरुवार को गर्भगृह से बाहर लाया गया. प्रथम सेवक ठाकुर सुधांशु नाथ सहदेव और पुजारी रामेश्वर पाढ़ी की अगुवाई में नयनदान (नेत्र निर्माण) की विशेष प्रक्रिया पूरी की गई. जैसे ही मंदिर के पट खुले, भक्तों की आंखें श्रद्धा से भर आईं. ठीक तीन बजे ढोल-नगाड़ों, घंटों और भेर की मधुर ध्वनि से पूरा मंदिर परिसर भक्तिरस में डूब गया. चारों दिशाओं से "जय जगन्नाथ" के जयघोष गूंज उठे.

 

कोलकाता के फूलों से सजा मंदिर परिसर

इस पावन अवसर पर मंदिर को विशेष रूप से सजाया गया था. कोलकाता से मंगाए गए गेंदाफूल, रजनीगंधा, गोपाटी, गुलाब और ऑर्किड जैसे फूलों से मंदिर परिसर को सजाया गया, मानो स्वयं प्रकृति ने देवताओं के स्वागत में अपनी अनुपम छटा बिखेरी हो.

 

कड़ी सुरक्षा और भक्तों की सुविधा का विशेष ध्यान

भक्तों की भारी भीड़ को ध्यान में रखते हुए प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए गए. दर्शन को व्यवस्थित रखने के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि श्रद्धालु सुगमता से भगवान के दर्शन कर सकें.

 

नेत्रदान और नयनाभिषेक की विधि में उमड़ा जनसैलाब

दोपहर 4 बजे से नेत्रदान की प्रक्रिया आरंभ हुई. तीनों विग्रहों को स्नान मंडप में विशेष अनुष्ठानों के साथ रखा गया, जहां उनके नेत्रों का पुनर्निर्माण किया गया. यह वह भावनात्मक क्षण था, जब भक्तों को नवनिर्मित विग्रहों के प्रथम दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ.

 

विग्रहों की पुनः स्थापना और भव्य आरती

1691 में स्थापित पुरानी प्रतिमाओं को भी दर्शन के लिए रखा गया था. चार बजे पुराने स्थानों से लाए गए विग्रहों की पुनः स्थापना की गई. सायं 4:30 बजे महाप्रसाद का वितरण किया गया, जिसके बाद 108 मंगल आरती की गई.

 

चिपरा से कोईरी समाज ने निभाई परंपरागत भूमिका

रातु चिपरा से कोईरी समाज के लोगों ने पारंपरिक रीति के अनुसार तीनों विग्रहों को गर्भगृह से बाहर निकालकर नेत्रदान की प्रक्रिया में भाग लिया. इसके बाद रात्रि 8:30 बजे विग्रहों को पुनः गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया.

 

27 जून को रथ पर सवार होकर जाएंगे मौसीबाड़ी

इस धार्मिक क्रम की अगली कड़ी में 27 जून को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा रथ यात्रा के लिए मौसीबाड़ी जाएंगे.

 

मंदिर के गुंबदों पर लगे झंडों को बदला गया

इस अवसर पर मंदिर के सभी पुराने पीले झंडों को हटाकर नए झंडे स्थापित किए गए, जिससे पूरा मंदिर परिसर और भी आभामंडित हो उठा.

 

 

 

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