- संचार साथी ऐप: सुरक्षा का ढोंग या निगरानी का नया हथियार?
- आपका फोन आपका नहीं, सरकार के नियंत्रण वाला होगा.
- रुस और चीन में पहले से इस तरह का ऐप अनिवार्य है.
भारत सरकार ने 28 नवंबर 2025 को एक आदेश जारी किया है. जिसमें कहा गया है कि हर भारतीय के फोन में संचार साथी ऐप (Sanchar Sathi App) का होना अनिवार्य होगा. अगले 90 दिनों में मोबाइल कंपनियां इसे सभी के मोबाइल में इंस्टॉल कर देंगी. मार्च 2026 से हर नया स्मार्टफोन, चाहे भारत में बना हो या आयातित, इस ऐप के साथ प्री-इंस्टॉल आएगा. इसे डिलीट नहीं किया जा सकेगा, डिसेबल नहीं किया जा सकेगा और पुराने मोबाइल फोन में भी सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए यह अनिवार्य रुप से डाला जायेगा.
सरकार इसे साइबर सुरक्षा का मास्टर स्ट्रॉक बता रही है. लेकिन सच यह है कि यह गोपनीयता पर अब तक का सबसे बड़ा हमला है. अगले 90 दिनों के भीतर आपके स्मार्ट फोन में संचार साथी ऐप इंस्टॉल रहेगा. नया मोबाइल खरीदेंगे, तो उसमें इनबिल्ट मिलेगा और अगर पुराना है, तो अपडेट के माध्यम से इंस्टॉल करा दिया जायेगा. इस ऐप को हटाया भी नहीं जा सकता. यानी 90 दिन बाद देश का हर वो सख्श जो स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करता है, वह 24 घंटे, 365 दिन सरकार की निगरानी में आ जायेगा.
सबसे पहले सवाल यह है कि क्या वाकई हमें इतने बड़े कदम की जरूरत थी? सरकार इसे सही बताने के लिए तर्क दे रही है कि मोबाइल फ्रॉड बढ़ रहा है. चोरी के फोन ब्लॉक करने, फर्जी IMEI पकड़ने और अनजाने में लिए गए सिम बंद करने की जरूरत है. लेकिन इसके लिए पहले से ही CEIR पोर्टल है, संचार साथी का वेब वर्जन है, तहसील और पुलिस स्टेशन में शिकायत का प्रावधान है. लाखों फोन ब्लॉक भी हो चुके हैं. फिर अचानक यह ऐप हर फोन में क्यों घुसाया जा रहा है? तो इसका जवाब साफ है - कंट्रोल करने की तैयारी. देश के लोगों को निगरानी में रखने का उद्देश्य.
विशेषज्ञ बताते हैं कि यह संचार साथी ऐप फोन की हर गतिविधि और संरचना तक पहुंच रखता है. IMEI नंबर, कॉल लॉग (किससे कितनी देर बात किया), लोकेशन (कहां-कहां गए, कितनी देर रूके), डिवाइस आईडेंटिफायर (कौन से डिवाईस का इस्तेमाल कर रहे) लगभग हर जानकारी जुटा सकता है. मोबाइल इस्तेमाल ना भी कर रहे हों, तो यह ऐप बैकग्राउंड में चलता रहेगा.
सरकार कहती है कि डेटा सिर्फ फ्रॉड रोकने के लिए इस्तेमाल होगा. लेकिन इसकी गारंटी कौन लेगा? कौन देगा? दो दिन पहले ही proxy.org नामक साइट पर देश के तमाम मोबाइल नंबर, वह किसके नाम पर रजिस्टर्ड है उसका नाम, पता, पैन नंबर, आधार नंबर सब उपलब्ध होने का दावा सामने आया. करोड़ों लोगों के आधार नंबर पहले भी लीक होने की खबरें आती रही हैं. भारत में कोई स्वतंत्र डाटा ऑडिट की व्यवस्था नहीं है, ना ही कोई पारदर्शी डेटा पॉलिसी है, ना ही इस ऐप को लेकर संसद में कोई बहस हुई और ना ही आम लोगों से इस बारे में राय ली गई. ऐसी स्थिति में सरकार के कहे पर विश्वास करना आसान नहीं है.
देखा जाये तो यह मामला सिर्फ गोपनीयता भर का नहीं है. यह लोकतंत्र का भी सवाल है. जब हर नागरिक का फोन सरकार के पास एक खुला माइक्रोफोन बन जाए, तो असहमति की कोई गुंजाइश कहां बचेगी. पत्रकार, विपक्षी नेता, कार्यकर्ता, सब सरकार की निगरानी में आ जाएंगे. यहां यह भी जानना जरुरी है कि भारत इस तरह का ऐप अनिवार्य करने वाला पहला देश नहीं है. रूस ने अपने नागरिकों के फोन में MAX ऐप लगाया है, चीन ने पहले से सबके फोन में बैकडोर बना रखे हैं. वहां किस तरह का लोकतंत्र चल रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है. यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भारत भी उसी रास्ते पर निकल पड़ा है?
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस संचार साथी ऐप को लेकर जो सबसे खतरनाक बात है, वह यह कि यह ऐप एक विशाल "अटैक सरफेस" भी है. अगर कोई हैकर या विदेशी खुफिया एजेंसी इसे हैक कर ले, तो एक झटके में 100 करोड़ भारतीयों का सारा डेटा चोरी हो सकता है. सुरक्षा के नाम पर असुरक्षा पैदा करना कहां तक तर्कसंगत है?
सरकार कहती है कि यूरोप में GDPR है, अमेरिका में सख्त कानून हैं, फिर भी फ्रॉड होता है. सही है. लेकिन वहां सरकार नागरिकों के फोन में जबरन अपना ऐप नहीं ठूंसती. समाधान शिक्षा है, जागरूकता है, बेहतर पुलिसिंग है, न कि हर नागरिक को अपराधी मानकर उसकी जासूसी करना. कुछ लोग यह बता रहे हैं कि संचार साथी कोई सुरक्षा कवच नहीं, एक डिजिटल हथकड़ी है. यह हमें बताता है कि आने वाला भारत कैसा होगा? जहां आपका फोन आपका नहीं, सरकार का होगा.
Lagatar Media की यह खबर आपको कैसी लगी. नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपनी राय साझा करें.


Leave a Comment