Search

अफगानिस्तान के बाद क्या अब सीरिया में है अमेरिका की बारी?

Deepak Ambastha अफगानिस्तान में अमेरिका पराजित हो गया, यह कहना शायद पूरा सच नहीं होगा. लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि दोहा समझौते की आड़ में बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले. अफगानिस्तान के हालात ने विश्व राजनीतिक परिदृश्य को बहुत बदल दिया है. अमेरिका पर अब सीरिया में भी फजीहत होने का खतरा खड़ा हो गया है. अमेरिका विरोधी खेमे को ताकत मिली है. अफगानिस्तान की घटनाओं से, सीरिया की सरकार और उसे समर्थन दे रहे रूस, चीन,ईरान जैसे देशों को यह भरोसा हो चला है कि सीरिया से भी अमेरिका को बाहर किया जा सकता है. सीरिया की सरकार दुनिया को यह संकेत दे रही है कि अब अमेरिका को जल्दी ही सीरिया से भी खदेड़ दिया जाएगा, जैसे अफगानिस्तान से खदेड़ा गया है. इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि अरब क्रांति के बाद से सीरिया में लंबी लड़ाई चली और इसी दौरान खूंखार आतंकी संगठन आईएसआईएसएल दुनिया की नजर में आया, अमेरिका ने इस आतंकी संगठन की नकेल कसने के लिए 2014 में सीरिया में सैन्य दखल दिया. उसने सीरिया की बशर अल असद की शिया सरकार के खिलाफ कुर्द विद्रोहियों का साथ दिया तर्क यह था कि अमेरिका इस्लामी आतंकी संगठन आईएसआईएस‌एल को खत्म कर दुनिया को बचाने की कोशिश कर रहा है. सीरिया में सीरिया को बचाने के नाम पर ईरान ,रूस ,तुर्की, सऊदी अरब और अमेरिका जैसी बाहरी ताकतें सक्रिय हैं और आलम यह है कि कभी सुखी संपन्न सीरिया आज गृह युद्ध की विभीषिका में तबाह हो चुका है. अमेरिका 2014 रूस 2015 से सीरिया में दखल दे रहा है. जो कभी प्रत्यक्ष और कभी अप्रत्यक्ष रूप से आज भी बरकरार है. इन सभी बाहरी ताकतों का एक ही तर्क है कि वे दुनिया को आतंक से बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन करीब-करीब एक दशक से भी कम समय में सीरिया में जितने नरसंहार हुए हैं, जितनी ज्यादतियां हुईं हैं. मानवाधिकारों का जितना उल्लंघन हुआ है. वह सब अभूतपूर्व है और यह सब मानवता को बचाने के नाम पर हो रहा है, दरअसल असली खेल तो महाशक्तियों का एक दूसरे को नीचा दिखाने का है पूरी दुनिया पर अपना रौब जताने का है, छोटे देश तो उनकी जोर आजमाइश का केंद्र भर हैं. अफगानिस्तान में तालिबान का सत्ता में लौटना, नाटो संगठन के देशों का वहां से निकलने के बीच अमेरिका की नीतियों पर उसके देश समेत उसके साथियों की भी उंगलियां उठने लगी और यह बात सीरिया के गृह युद्ध पर भी असर डाल रही है. सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद ने संकेत दिए हैं कि वह दिन दूर नहीं जब सीरिया से भी अमेरिका को निकाल दिया जाएगा. पिछले 10 वर्षों से भी अधिक समय से संकटग्रस्त सीरिया में गृह युद्ध के हालात हैं और 2014 के बाद से यहां अनुमानत:चार लाख से अधिक लोगों के मारे जाने का आंकड़ा है. हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने कुछ वर्ष पूर्व ही सीरिया में मारे जाने वाले लोगों का आंकड़ा रखना और जारी करना बंद कर दिया है. सीरिया सुन्नी मुस्लिम बहुल राष्ट्र है, लेकिन इसके राष्ट्रपति अशद अल बसर शिया संप्रदाय से हैं और यहां छिड़ी लड़ाई की जड़ में शिया सुन्नी विवाद बहुत मायने रख रहा है. यहां छिड़ी लड़ाई में रूस चीन और ईरान जैसे देश अशद अल बसर के साथ हैं, तो कुवैत और अमेरिका जैसे देश कुर्द लड़ाकों के साथ खड़े यह ठीक है कि धीरे-धीरे सीरिया की सरकार ने देश के अधिकांश हिस्से पर कब्जा जमा लिया है. लेकिन कुर्द लड़ाके और उन्हें अमेरिकी समर्थन अल बसर सरकार के सिरदर्द हैं. सीरिया के विदेश मंत्री फैसल मेकदाद ने कहा है कि अफगानिस्तान में अमेरिका की करारी हार सीरिया में भी अमेरिका की हार का कारण बनेगा. मेकदाद का मानना है कि अफगानिस्तान में तख्तापलट ने दुनिया की राजनीतिक हालात को भी बदल दिया है. अमेरिका की विश्वसनीयता अब शक के घेरे में है. सीरियाई विदेश मंत्री का यह बयान अमेरिका समर्थित कुर्दिश लड़ाकों को संदेश है. रविवार को ईरान के विदेश मंत्री सीरिया की राजधानी दमिश्क में थे और उन्होंने भी सीरिया और ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध के खिलाफ शक्तिशाली कदम उठाने की बात कही है. मेकदाद जो कह रहे हैं उसे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के ताजा बयान से बल मिलता है कि अमेरिका अब किसी देश में मिलिट्री बेस नहीं बनाएगा,यह नीति अगर आगे बढ़ी तो इससे दुनिया पर अमेरिकी दबदबा तो कम होगा. लेकिन एक फायदा हो सकता है कि दुनिया में दादागिरी करने के जो आरोप उस पर हैं उसमें कुछ कमी आए. सीरिया में अगर अमेरिका कमजोर पड़ता है तो इसका असर इजराइल समेत पूरी दुनिया पर पड़ेगा. अमेरिकी साख चौपट हो जाएगी, डेमोक्रेट राष्ट्रपति जो बाइडेन कमजोर और भ्रमित ठहराया जा रहे हैं. यदि उनके प्रति दुनिया और अमेरिकियों का आकलन सच निकला, सीरिया में भी अमेरिका की भद्द पिटी तो फिर दुनिया कुछ अलग नजर आएगी, जिसमें अमेरिका की छवि वैसी होगी जैसी पहले कभी नहीं थी, ऐसे में चीन की लॉटरी लग सकती है, जो विश्व की नयी मुसीबत का कारण बन सकती है. अफगानिस्तान की तरह ही सीरिया वह देश है, जहां अमेरिका के खिलाफ चीन के सहयोग से रूस खड़ा है. अफगानिस्तान में भी करीब-करीब यही समीकरण रहा है. जहां अंततः अमेरिका को पीछे हटना पड़ा है, अफगानिस्तान की सफलता से चीन, रूस और उसके साथी देश उत्साहित हो सकते हैं, इसका सीधा असर सीरिया पर नजर आ सकता है. लेकिन यदि रूस और चीन अपनी सीमाओं से आगे बढ़कर अमेरिका पर हावी होने की कोशिश करते हैं तो दुनिया के सामने अभूतपूर्व संकट खड़ा हो सकता है. 72 प्रतिशत सुन्नी आबादी वाले देश पर 12 प्रतिशत की आबादी रखने वाले सिया समुदाय का शासन है. ईरान का परंपरागत दुश्मन सऊदी अरब की आंखों में यह बात खटकती ही रही है. अमेरिकी सहयोगी होने के नाते सऊदी अरब भी यही चाहता है, किस सीरिया में शिया शासन खत्म हो ईरान का दखल वहां से खत्म हो, लेकिन अफगानिस्तान में अमेरिकी भूमिका ने इतनी बड़ी उथल-पुथल मचा दी है कि उसके साथियों को यह भरोसा करना मुश्किल हो रहा है कि क्या अब भी अमेरिका उसी ताकत से सीरिया में डाटा रहेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन पर से दुनिया का भरोसा कम हुआ है यही बात चीन और रूस को ताकत दे रही है. अब सीरिया में नई चालें चली जाएंगी और कोशिश होगी कि अफगानिस्तान के बाद सीरिया से भी अमेरिका का बिस्तर गोल कर दिया जाए. [wpse_comments_template]

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp