FAISAL ANURAG
अब तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना महामारी के भयावह होने के लिए भारत में होने वाले राजनीतिक रैलियों और धार्मिक आयोजनों में जुटी भीड़ को कारण बता दिया है. इसी बात को भारत के अनेक लोग और विश्व की प्रमुख मीडिया भी कहती रही है. लेकिन कोई भी कुछ कहे इससे फर्क क्या पड़ता है न तो लोगों की होने वाली आपराधिक मौतों के लिए कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार है, और न ही देश के शासकों को इस तथ्य का अहसास है. अब तो नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े समर्थकों में एक अनुपम खेर ने भी कह दिया है कि सरकार कहीं न कहीं नाकाम हुई है और उन्हें इस वक्त यह समझना चाहिए कि इमेज बनाने से ज्यादा लोगों की जान बचाना जरूरी है.
एक चैनल से बात करते हुए अनुपम खेर ने तो यहां तक कह दिया “मुझे लगता है कि ज्यादातर मामलों में आलोचना वैलिड है और सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह इस अवसर पर ऐसा काम करे जिसके लिए उसे देश के लोगों ने चुना है. मुझे लगता है कि केवल एक संवेदनहीन व्यक्ति ही ऐसी स्थिति से प्रभावित नहीं होगा.” अनुपम खेर की इन बतों का सिर्फ इतना ही महत्व है कि अब यह धारणा प्रबल होती जा रही है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने महामारी की सुनामी में गंभीर लापरवाही दिखायी है. भारत के सेलिब्रेटी भले ही अनेक कारणों से चुप रहना ही पसंद करते हैं उनके विचार भी इससे अलग नहीं हैं. अनुपम खेर की बातें यही इशारा कर रही हैं. इसी बात को विदेशी मीडिया कह रही है और विपक्ष भी. लेकिन कांग्रेस पर जिस तरह भाजपा आक्रामक है उससे जान पड़ता है कि वह आलोचनाओं को लेकर गंभीर नहीं हैं और न ही उसे अपनी गलती का अहसास है. इसे संवेदनहीनता नहीं तो और क्या जाए कि उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य को नदियों में बहते शव से ज्यादा चिंता मोदी की इमेज की है. पिछले दो दिनों के उनके ट्वीट तो यही साबित कर रहे हैं.
जिस तरह की पॉजिटीवीटी अभियान से मोदी ब्रांड की हिफाजत करने के लिए आरएसएस सहित तमाम भाजपा नेता सक्रिय हैं, यदि उसकी जगह वैक्सीन और इलाज के संकट पर बात होती तो लोगों की परेशानी कम होती. दिल्ली की सरकार ने तो साफ कह दिया है कि उसके पास वैक्सीन खत्म हो गयी है और 18 साल से अधिक के लोगों के लिए टीकाकरण का अभियान रूक गया है. कोवैक्सीन बनाने वाली भारत बायोटेक ने यह कर कर एक और संकट की ओर इशारा किया है कि वह दिल्ली सरकार की मांग पर वैक्सीन नहीं देगा. उसने कहा है कि जब तक केंद्र सरकार नहीं कहेगी वह राज्य को वैक्सीन नहीं देगी.
सवाल उठना लाजिमी है कि राज्यों के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी किसकी है. यदि वह उत्पादक कंपनियों की है तो फिर भारत बायोटेक यह क्यों कह रहा है कि वह बगैर केंद्र के निर्देश के आपूर्ति नहीं करेगी. देश में यूनिवर्सल वैक्सीनेशन की किसी नीति को अब तक निर्धारित नहीं किया गया है. वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी सरकार की है न कि किसी निजी अस्पताल की.
यदि दुनिया भर में यह सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर भारत इस हालात तक कैसे पहुंच गया तो इसका जबाव देना भी केंद सरकार की जिम्मेदारी है. लेकिन जबाव देने के बजाय जिस तरह विश्व में मोदी ब्रांड की हिफाजत के लिए भारतीय राजनयिकों को कहा गया है. इससे जाहिर होता है कि जिस समय एक सामूहिक प्रयास से लोगों की बेशकीमती जिंदगी को बचाने के लिए पूरी ताकत लगाने की जरूरत है, लेकिन ब्रांड इमेज ही अहम बना हुआ है. देश ही नहीं दुनिया में बसे भारतीय मूल के लोगों में मायूसी दिखने लगी है. इनमें ज्यादातर वे लोग हैं जो मोदी ब्रांड के प्रचार में अहम भूमिका निभाते रहे हैं. भारतीय मूल के लोगों की चिंता उनके वे परिजन हैं जो इलाज के लिए परेशानहाल दिखे हैं.
ब्रांड को प्रचारित तो किया जा सकता है लेकिन उसकी साख तभी तक रहती है जब तक वह लोगों के लिए राहत और सुकून का कारण बना रहे. अनेक उपभोक्ता ब्रांड जिन्होंने दुनिया पर राज किया साख में छोटी सी सुराख ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा. राजनीतिक ब्रांड तो तभी तक चलता है जब तक लोग अपनी जान-माल की सुरक्षा की गारंटी उसमें देखते हैं. इस सबक को विस्मृत नहीं करना चाहिए. पॉजिटिवीटी का यह मतलब नहीं कि हकीकतों को ही नजरअंदाज करने का माहौल बनाने का अभियान चलाया जाये.