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Surjit Singh
गुजरात के सूरत के बाद अब मध्यप्रदेश के इंदौर लोकसभा क्षेत्र के चुनाव में क्या हुआ? सूरत में भाजपा प्रत्याशी को छोड़ सारे प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो गया. भाजपा के प्रत्याशी महेश दलाल बिना चुनाव लड़े, बिना वोटिंग हुए ही जीत गए. अब, इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने नामांकन वापस ले लिया. वह भी नामांकन वापस लेने के अंतिम दिन, अंतिम क्षणों में. कुछ ही देर बाद भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के साथ उनकी तसवीर सामने आ गई. खजुराहो में भी ऐसा ही कुछ करने की कोशिश हुई थी. तीनों सीटों पर हुए घटनाक्रमों ने कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं. ये सवाल तेजी से उभर रहे हैं कि क्या यह माना जाए कि आपके वोट का अधिकार छीना जा रहा है. वोट का अधिकार नागिरक का अधिकार है, इसे ही खत्म करने की कोशिशें हो रही हैं. नागरिकों में समर्थक सभी दलों के हैं, भाजपा के, कांग्रेस के, अन्य दूसरे दलों के भी. तो क्या कुछ लोगों की मिलीभगत, पैसे व ताकत के बल पर नागरिकों के वोट डालने के अधिकार को ही खत्म किया जा सकता है! सोशल मीडिया पर यह सवाल उठ रहा है कि क्या हम नो इलेक्शन की तरफ बढ़ चले हैं!
सूरत व इंदौर की घटना से कांग्रेस पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं. आखिर कांग्रेस कैसे लोगों को टिकट बांट रही है. प्रत्याशी चुनने के मामले में कांग्रेस चयन समिति गंभीर सवालों के घेरे में आ गयी है. अब तक कांग्रेस के विधायक, सांसद व नेता पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल हो रहे थे. लेकिन अब तो पार्टी के प्रत्याशी ही नाम वापस ले रहे हैं या जानबूझ कर गलती कर नामांकन रद्द करवा ले रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस संगठन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजिमी है. हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि भाजपा के शीर्ष नेता विपक्षी उम्मीदवारों को डराने-धमकाने और मामले दर्ज करवाने का काम कर रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि जिन सज्जन ने नाम वापस लिया, उनके कुछ विश्वविद्यालय और कॉलेज चलते हैं. उन पर और उनके पिता पर एक हत्या का मामला दर्ज किया गया. जिसकी सुनवाई 10 मई को है. उन पर क्या दबाव था, पार्टी को नहीं पता. लेकिन कोई ऐसे ही नामांकन वापस नहीं लेता और भाजपा में शामिल नहीं होता. यह लोकतंत्र का चीरहरण है. उम्मीदवार को डरा-धमका कर, उनके प्रस्तावकों को डरा-धमकाकर, उनके खिलाफ मामला दर्ज करके, जो काम भाजपा कर रही है उसे चुनाव जीतना नहीं कहते, उसे लोकतंत्र का चीरहरण कहते हैं. यह काम भाजपा के शीर्ष नेता कर रहे हैं. नाम वापस लेते ही कांग्रेस प्रत्याशी का भाजपा ज्वॉइन करने लेना ही सबकुछ स्पष्ट कर देता है. कुल मिला कर भारत के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में भाजपा ने इस चुनाव में कांग्रेस मुक्त कर दिया है.
हालांकि अभी इस बात को लेकर फैसला नहीं हुआ है कि अगर चुनाव में सिर्फ एक प्रत्याशी बचे, चुनाव ही ना हो, तो नोटा का क्या होगा ? लेकिन वैसे चुनाव में मतदाता कितनी दिलचस्पी लेंगे, जिसमें मजबूत प्रत्याशी ही बाहर हो गया हो या उसका नामांकन रद्द हो गया हो. क्या मतदाताओं के मन में यह सवाल नहीं उठेगा कि उनके साथ धोखा हुआ है. क्या आम वोटरों सामने यह सवाल नहीं होगा कि अभी ऐसी चीजें एक-दो जगह पर हो रहें है, अगर इसे प्रोत्साहन मिला, रोका नहीं गया, तो आने वाले समय में बड़े स्तर पर मजबूत उम्मीदवार यही सब करने लगेंगे. संभव है, कुछ लोग इस तरह के पुराने उदाहरण सामने लाकर ऐसी घटनाओं को जायज ठहराने की भी कोशिश करें. लेकिन लोकतंत्र के लिए यह जरुरी है कि ऐसे मामलों में चुनाव आयोग को आगे आये औऱ हस्तक्षेप करे.
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