New Delhi : ओडिशा (बालासोर) ट्रेन हादसे के बाद भारत के महानियंत्रक और लेखा परीक्षक (सीएजी) की ऑडिट रिपोर्ट चर्चा में है . सीएजी ने साल 2020-21 में Derailment in Indian Railways नाम से एक ऑडिट रिपोर्ट तैयार की थी. इसके आंकड़े रेलवे की असली तस्वीर पेश करते हैं. यह बताती है कि रेलवे में कैसे और कितना काम हो रहा है. रेस हादसों की ही बात करे, तो 2017-18 से 2020-21 के बीच 217 हादसे हुए. इनमें से 163 (75 प्रतिशत) ट्रेनों के बेपटरी होने (Derailment) के कारण हुए.जबकि 42 फीसदी हादसे पटरियों के रखरखाव से जुड़ी समस्या के कारण हुए.
अफसरों ने पटरियों के निरीक्षण के लिए जाना कम कर दिया
रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 और 2020-21 के चार सालों में बड़े अफसरों ने लापरवाही बरती. अफसरों ने पटरियों के निरीक्षण के लिए जाना कम कर दिया. 2017-18 में 607 इंस्पेक्शन हुए, वहीं 2020-21 में महज 286 इंस्पेक्शन किये गये. जब 10,000 किलोमीटर लंबे ट्रंक रूट पर क्षमता से दोगुने से भी ज्यादा (125 प्रतिशत) भार है, तो ऐसी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती. भीड़ के कारण ट्रैक, इलेक्ट्रिकल और सिग्नलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के रखरखाव और खराबी का पता लगाने का काम सही तरीके से होना संभव नहीं हो पाता.
कहा था ,एक लाख करोड़ के साथ राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बनाया जायेगा
रेल सेफ्टी को 2017-18 में वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा था कि एक लाख करोड़ के साथ राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बनाया जायेगा. इसके लिए पांच साल तक 20-20 हजार करोड़ रुपए दिये जाने थे. 15000 करोड़ रुपए सरकार को देने थे. 5000 करोड़ रुपए रेलवे को अपने संसाधनों से जुटाना था. सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट कहती है कि रेलवे यह रकम जुटा ही नहीं पाया. भारत में ट्रेनों की औसत गति आज लगभग 50 kmph है. भारतीय रेलवे बोर्ड ने 2017-18 में मिशन रफ़्तार नाम से एक प्रोजेक्ट का एलान किया था. इसका लक्ष्य मालगाड़ियों की औसत गति को 25 किमी प्रति घंटे से बढ़ाकर 50 किमी प्रति घंटा करना था. इस क्रम में पांच साल में यात्री ट्रेनो की औसत गति 50 किमी प्रति घंटे से 75 किमी प्रति घंटे तक बढ़ाना है. सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहा कि इस मोर्चे पर कोई खास प्रगति नहीं हुई.
विदेशों में ज्यादातर यात्री ट्रेनें 150–250 kmph की औसत रफ्तार से दौड़ती हैं.
जान लें कि जापान, चीन, तुर्की, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी, इटली, स्वीडन और ग्रेट ब्रिटेन आदि देशों में ज्यादातर यात्री ट्रेनें 150–250 kmph की औसत रफ्तार से दौड़ती हैं. फिर भी यहां हादसे नहीं के बराबर होते. रेल सुरक्षा के लिहाज से भारत का ग्राफ मिस्र, मेक्सिको, तंजानिया, कांगो, नाइजीरिया और पाकिस्तान जैसे मुल्कों से थोड़ा ही बेहतर कहा जाता है. सीएजी ने ट्रेनों के बेपटरी होने की 1129 हादसों की जांच रिपोर्ट का विश्लेषण किया तो सामने आया कि कि 167 दुर्घटनाओं की वजह ट्रैक के रखरखाव से जुड़ी थी. इसके बावजूद ट्रैक का इंस्पेक्शन कम हो गया और ट्रैक रिन्यूअल पर खर्च भी घटा दिया गया. इंस्पेक्शन की संख्या कैसे 2017-18 की तुलना में 2020-21 में आधी से भी कम हो गयी.
विकसित देशों ने 50-60 साल पहले से ही रेल नेटवर्क को तकनीकी रूप से मजबूत कर लिया
जानकारी के अनुसार तमाम विकसित देशों ने 50-60 साल पहले से ही रेल नेटवर्क को तकनीकी रूप से मजबूत करने और आधुनिक बनाने पर काम शुरू कर दिया था. अगर केवल चीन से भारत की तुलना की जाये तो 1950 में चीन में कुल रेल नेटवर्क मात्र 21,800 km का था. उस समय भारत में रेल लाइनों की कुल लंबाई चीन के मुकाबले दोगुनी से भी ज्यादा (53,596 km) थी. 50 साल से भी कम समय में चीन भारत से काफी आगे निकल गया. 1997 में भारत में कुल 62,900 km लंबा रेल नेटवर्क था, जबकि चीन में यह आंकड़ा 66,000 km हो गया था. आज चीन में रेल पटरियों का 1,55,000 km लंबा जाल बिछ चुका है, जबकि भारत में 68,100 km लंबा रेल नेटवर्क ही है. जान लें कि 2030 तक चीन रेल पटरियों की कुल लंबाई 1,75,000 km कर सकता है.