Anand Singh
किसान आंदोलन के वक्त भी पीएम चुप थे, 750 किसान काल के गाल में समा गए, उन्होंने दो शब्द भी नहीं कहे, अग्निपथ योजना में भी करोड़ों की संपत्तियां खाक हो गईं, वह चुप हैं.
बीते 5 दिनों से देश में अग्निपथ योजना को लेकर जिस तरीके से हिंसक विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. उससे यह साबित हो गया कि इस योजना को लेकर नौजवानों में बहुत ज्यादा ही गुस्सा है. सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस योजना के तहत 24 जून, अर्थात आज से ठीक पांच दिनों के बाद नियुक्तियां चालू हो जाएंगी. जिन्हें खुद पर भरोसा है, वो इसमें शामिल होने जाएंगे जरूर. जिन्हें इस योजना में भरोसा नहीं, वह नहीं जाएंगे. विरोध का स्वरूप बदल सकता है पर वर्तमान हालात को देखते हुए नहीं लगता कि विरोध खत्म होगा.
ताज्जुब इस बात को लेकर है कि इतने लोगों के मारे जाने, करोड़ों रुपये का नुकसान होने के बावजूद इस योजना के प्रणेता देश के प्रधानमंत्री अब तक चुप हैं.
वह किसान आंदोलन के सवा साल खींच जाने तक भी चुप ही रहे थे. तब तक 750 किसान काल के गाल में समा चुके थे. प्रजातांत्रिक देश में, अगर रोजगार के एक स्कीम को लेकर जनविरोध इस हद तक है, तो क्या उन्हें दखल नहीं देना चाहिए था? बिल्कुल देना चाहिए था. लेकिन अफसोस, प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय अब तक चुप है. इसके अपने सियासी निहितार्थ हैं.
बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान समेत कई राज्य हैं, जहां अग्निपथ योजना का तीखा विरोध हो रहा है. हरियाणा में रेवाड़ी-नारनौल का इलाका है, जहां हर घर से कोई न कोई वायुसेना, थल सेना और नौसेना में है. वहां भी इस योजना का विरोध है. विरोध के पीछे का तर्क बहुत साफ है. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि सशस्त्र बलों में नियुक्ति का जब एक फॉर्मेट देश में बना हुआ है, उसे ध्वस्त नहीं किया गया है तो बैक डोर से नियुक्त का यह नया फार्मेट क्यों लाया जा रहा है?
इस पर संसद में कोई चर्चा क्यों नहीं की गई? किस आधार पर इसे लागू कर दिया गया? इसका फलाफल क्या होगा? 4 साल में आप एक नौजवान को 30000 रुपये से 40000 रुपये तक का मासिक वेतन देंगे और जब आप उसे सेना से नमस्ते करेंगे, तो 12 लाख रुपये उसे देकर आखिरी सलाम कर देंगे. फिर वह क्या करेगा? आप आप्शन दे रहे हैं कि भाजपा शासित राज्यों के पुलिस बलों में या सशस्त्र बलों में उन्हें 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा. उन्हें नौकरी मिल जाएगी. अगर वो राज्य नौकरी देने में इतने ही सक्षम हैं, तो क्यों नहीं अपने ही यहां के खाली पड़े हजारों पदों पर नियुक्तियां करते हैं?
हर राज्य में हजारों पद खाली हैं. सिपाही से लेकर डीएसपी तक के पद खाली हैं. उन पर नियुक्ति कौन और कब करेगा?दरअसल, ये सब झांसा है. इस झांसे को जनता बखूबी समझती है. वो लोग भी समझते हैं, जो देश की खातिर सर्वोच्च बलिदान देने के लिए बीते कई वर्षों से लगातार मेहनत कर रहे हैं.इस संदर्भ में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा का यह कहना है कि समीचीन जान पड़ता है कि सरकार को सर्वोच्च बलिदान देने वालों को कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम पर नियुक्त नहीं करना चाहिए. चड्ढा का कहना था कि जो जवान कल की तारीख में अग्निपथ योजना में शामिल होकर अपना करियर बनाना चाहते हैं, उन्हें सरकार देगी क्या….बंधी-बंधाई 30 से 40 हजार रुपये का वेतन और आखिरी साल 12 लाख रुपये. उसका भत्ता कहां गया? रेल टिकट कहां गया? हवाई टिकट कहां गया? छुट्टियां कहां गईं? आर्मी सर्विस के अनुसार, पे रोल पर काम करने वाले जवानों को जो अन्य सुविधाएं मिलती हैं, वो कहां गईं? आप देश के सर्वोच्च बलिदानी को चार साल के ठेके पर रखने की मंशा रखते हैं, यह गलत है. चड्ढा का कहना था कि एक विधायक या सांसद भले ही एक दिन के लिए पद पर हों, आप उसे ताजिंदगी पेंशन देते हैं. एक जवान जो चार साल तक बॉर्डर पर रहेगा, उसे आप कुछ नहीं देंगे. यह कहां का इंसाफ है?
आर्मी से जुड़े एक सूत्र का कहना है कि मान लें कि सरकार आर्मी के आधुनिकीकरण के नाम पर 10 रुपये दे रही है. अब इन 10 रुपयों में मात्र 4 रुपये ही हथियार खरीदने में जा रहे हैं. शेष 6 रुपये तो पेंशन और अन्य सुविधाओं पर ही खर्च हो जा रहे हैं. ये सरकार के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द है. कहीं न कहीं इन्हीं बर्डन को खत्म करने के लिए अग्निपथ जैसी स्कीम लॉन्च की गई है. जहां तक बात है चार साल की नौकरी की तो विदेशों में एक साल, दो-दो साल का शॉर्ट सर्विस कमीशन है. वहां तो इस तरह की बात नहीं होती. वहां तो ट्रेन नहीं जलाए जाते. आपको भारत के संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में देखना होगा कि सरकार का फैसला क्या है और उसे किन हालात में लागू किया जा रहा है.
जो भी हो, अग्निपथ योजना लागू होने के पहले ही जिन विवादों में आ गई है, उसे देख कर तो ऐसा नहीं लगता कि यह योजना बहुत दिनों तक चल पाएगी. कुछ संशोधन इसमें किये गए हैं. जैसे 21 साल को बढ़ाकर 23 साल कर दिया गया है. कहा जा रहा है कि चौथे साल जब रिटायरमेंट होगा, तब 12 नहीं बल्कि 20 लाख रुपये दिये जाएंगे. पता नहीं सच क्या है. भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अलग-अलग योजनाएं बता रहे हैं, घोषणाएं कर रहे हैं. लेकिन, इस सवाल का जवाब शायद ही किसी के पास हो कि टू फ्रंट वार के लिए भारत सरकार कितनी तैयार है और यह भी कि अगर भविष्य में टू फ्रंट वार हो ही जाता है, तो उसमें ये अग्निपथ शूरवीर कितने काम आएंगे?