Lucknow : समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक विधायक की ‘‘आपत्तिजनक टिप्पणियों’’ पर नाराजगी जतायी है. मायावती के प्रति अखिलेश यादव की इस नरमी के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. अखिलेश ने कहा कि सार्वजनिक रूप से दिये गये इस वक्तव्य के लिए विधायक पर मानहानि का मुकदमा होना चाहिए. यादव ने शुक्रवार रात सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक वीडियो क्लिप साझा की है. वीडियो के साथ लिखा है कि उत्तर प्रदेश के एक भाजपा विधायक द्वारा राज्य की एक पूर्व महिला मुख्यमंत्री जी (मायावती) के प्रति कहे गये अभद्र शब्द दर्शाते हैं कि भाजपा नेताओं के मन में महिलाओं और खासतौर से वंचित-शोषित समाज से संबंध रखने वालों के प्रति कितनी कटुता भरी है.
भाजपा तुरंत अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करेगी तो यह पूरी भाजपा का विचार माना जायेगा
अखिलेश यादव ने आगे लिखा कि ‘राजनीतिक मतभेद अपनी जगह होते हैं, लेकिन एक महिला के रूप में उनका मान-सम्मान खंडित करने का किसी को भी अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि भाजपा नेता कह रहे हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर हमने गलती की थी, यह भी लोकतांत्रिक देश में जनमत का अपमान है और बिना किसी आधार के ये आरोप लगाना भी बेहद आपत्तिजनक है कि वह सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री थीं. सपा प्रमुख ने मांग की कि सार्वजनिक रूप से दिये गये इस वक्तव्य के लिए भाजपा के विधायक के खिलाफ मानहानि का मुकदमा होना चाहिए. उन्होंने कहा कि भाजपा ऐसे विधायकों को प्रश्रय देकर महिलाओं के मान-सम्मान को गहरी ठेस पहुंचा रही है. अगर ऐसे लोगों के खिलाफ भाजपा तुरंत अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करती है तो मान लेना चाहिए कि ये किसी एक विधायक का व्यक्तिगत विचार नहीं है बल्कि पूरी भाजपा का विचार है. घोर निंदनीय!
पहली बार भाजपा ने ही मायावती को बनाया था सीएम
यादव ने जो वीडियो साझा किया गया है, उसमें मथुरा जिला स्थित मांट क्षेत्र के विधायक राजेश चौधरी को यह कहते सुना जा सकता है कि मायावती जी चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है और पहली बार भाजपा ने ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था. चौधरी कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में यदि कोई भ्रष्ट मुख्यमंत्री हुआ है तो उनका नाम है मायावती. सपा और बसपा एक दूसरे की प्रतिद्वंद्वी हैं. हालांकि 1993 के विधानसभा चुनाव से पहले दोनों दलों के बीच विधानसभा चुनाव में समझौता हुआ था तब यह पहल बसपा संस्थापक कांशीराम और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने की थी. जून 1995 में लखनऊ के सरकारी अतिथि गृह में सपा और बसपा कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पों के बाद यह समझौता टूट गया था. तब बसपा ने मायावती पर सपा कार्यकर्ताओं और नेताओं द्वारा हमला किये जाने का आरोप लगाया था. फिर 2019 में लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के बीच समझौता हुआ, जिसमें उत्तर प्रदेश की 80 सीट में 10 सीट पर बसपा और पांच सीट पर सपा को जीत मिली थी. लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद ही 2019 में यह समझौता टूट गया था और तब से अक्सर दोनों दलों के नेता एक दूसरे पर निशाना साधते रहे हैं.
Leave a Reply