Brijendra Dubey
बधाई हो मोदी जी को, कि उन्होंने 13 साल से इंतजार कर रही नारी शक्ति को उसका अधिकार देने के लिए महिला आरक्षण के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम-2023 को संसद से पास करा लिया, लेकिन अफ़सोस कि जिनके लिए लाए, उन्हें अब आगे भी कई सालों के लिए इंतजार करा दिया. मान लेता हूं कि सरकार की मंशा सही ही रही होगी, लेकिन सरकार के सलाहकारों ने, सरकारी बाबुओं ने बरगला दिया होगा. फिर भी अंत भला, तो सब भला. अब 2024 के लिए नया मुद्दा मिल गया है, कितना चलेगा, आप जानिए..
नरेंद्र मोदी सरकार ने जब संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की थी, तो लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे थे, लेकिन अब इसका मकसद सामने आ गया है. यह सत्र महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के लिए बुलाया गया था. अभी लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 15.21 प्रतिशत और राज्यसभा में 13.02 प्रतिशत है. जबकि आज महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं और अपनी छाप छोड़ रही हैं, नए-नए क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, लेकिन राजनीति ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां उनके लिए दरवाजे तकरीबन सुनियोजित ढंग से बंद थे.
कहा जाता था कि महिलाओं में चुनाव जीतने की क्षमता नहीं है. याद रखिए कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करवाने की शुरुआत राजीव गांधी ने की थी, जब स्थानीय निकायों के चुनाव में उनकी सरकार ने एक तिहाई सीटें आरक्षित करने की बात की थी, लेकिन वह विधेयक उनके प्रधानमंत्रित्व काल में पारित नहीं हो सका, क्योंकि राज्यों ने उसका तीखा विरोध किया था. नरसिंहा राव के कार्यकाल में वह विधेयक पारित हुआ. इसमें स्थानीय निकायों के चुनाव में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं. बिहार जैसे राज्यों ने महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत तक सीटें आरक्षित कर दीं. उसकी वजह से जमीनी स्तर पर आज ऐसी महिलाओं का एक बड़ा तबका (करीब 15 लाख) है, जिन्हें पंचायत चलाने का मजबूत राजनीतिक अनुभव है.
महिलाएं आज अपने दम-खम पर बेहतर ढंग से पंचायतों का संचालन कर रही हैं. कई अध्ययनों से पता चलता है कि जहां महिलाएं पंचायत में प्रधान या सरपंच रही हैं, उन्होंने बुनियादी मुद्दों-शिक्षा, स्वास्थ्य आदि को अहमियत दी है. राजनीतिक रूप से जागरूक उन महिलाओं के विशाल समूह को अब पंचायत से ऊपर राज्य विधानसभाओं और लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिलेगा. महिलाओं का यहां भी प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, तो कानून भी महिला के प्रति संवेदनशील बनेंगे और नीति-निर्माण में उनकी भूमिका बढ़ेगी. इसमें ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है, जिसकी मांग की जा रही थी. हालांकि कांग्रेस ने मांग की थी कि ओबीसी महिलाओं के लिए भी कोटा के भीतर कोटा का प्रावधान किया जाए, लेकिन सरकार नहीं मानी.
इस विधेयक की सबसे बड़ी खामी यही है कि यह परिसीमन के बाद ही लागू होगा, जो संभवतः 2027 में होगा. नतीजतन पारित होने के बाद भी अब यह कानून 2029 के लोकसभा चुनाव में ही लागू हो पाएगा. इसलिए अभी इसे प्रतीकात्मक ही कहा जा सकता है. इसके अलावा परिसीमन कानून के लिए एक अलग विधेयक या अधिसूचना की जरूरत होगी. बेशक इसमें विभिन्न पार्टियों का योगदान है, लेकिन अंततः जीतने वाले को ही सिकंदर माना जाता है. इसलिए नरेंद्र मोदी और भाजपा को इसका श्रेय मिलेगा. लेकिन तुरंत लागू नहीं होने के कारण 2024 के चुनाव पर इसका क्या असर पड़ता है, यह देखने वाली बात होगी.
लेकिन यह सब तब ही होगा न, जब स्त्री की बराबरी का मामला महज चुनावी हथकंडा नहीं रह जाएगा. जहां तक मेरी सोच है, तो यक़ीन मानिए कि इस बार का सरकार, का यह बिल लाना तो चुनावी हथकंडा सिर्फ लग ही नहीं रहा, साबित भी हो चुका है. यह अलग बात है कि संसद के ये दो दिन और बाहर की चर्चाओं के बाद यह कहने में कोई दिक्कत नहीं लगती कि ऐन वक्त पर सरकार द्वारा लाया यह ‘मास्टर स्ट्रोक’कम से कम सत्ता पक्ष के लिए तो मास्टर स्ट्रोक नहीं ही रह गया है. जिस तरह सरकार ने सब कुछ करने के बाद भी एक और ‘इंतज़ार’महिलाओं के लिए थोप दिया, जिस तरह ओबीसी को इससे बाहर रखा है, जिस तरह मुस्लिम महिलाओं की कोई चर्चा नहीं की है और जिस तरह जातीय जनगणना के मुद्दे को खुद ही हवा दे दी है, विपक्ष यानी इंडिया गठबंधन अब इन्हीं मुद्दों को जनता के बीच लेकर जाने वाला है. जनता के बीच मुद्दा जाएगा, तो सरकार को भी जनता, खासकर महिलाओं के इन्हीं सवालों से टकराना होगा. कहना नहीं चाहिए कि सरकार के पास इन सवालों का कोई सीधा जवाब नहीं होगा. विपक्ष ने जिस तरह इस बिल को खुला समर्थन दिया, उसने भी सरकार के वार की धार पूरी तरह भोथरा नहीं भी किया हो, कम तो कर ही दिया है.
अब जैसे सरकार के पांच साल पूरे होने के चंद माह पहले और चुनावी आहटें क़रीब आ जाने के बाद (और इंडिया नाम के विपक्षी गठबंधन के आकार लेने और सक्रिय हो जाने के बाद) अचानक तब यह सब किया गया, कम से कम इतना तो तय ही है कि बिल का लाभ महिलाओं को मिले न मिले, भाजपानीत एनडीए के लिए उनके वोटों की चाहत के तौर पर यह जरूर एक ‘मास्टर स्ट्रोक’ बन कर आया है! लेकिन क्या वाक़ई ऐसा ही है? शायद नहीं!
फिर भी बधाई मोदी सरकार को, जिसने अनजाने में ही इंडिया गठबंधन को थोड़ा और मज़बूत बना दिया है. कुल मिलाकर, मोदी सरकार का एक ऐतिहासिक कदम है. इस विधेयक के पारित होने से न केवल शहरी महिलाएं, बल्कि ग्रामीण महिलाएं भी उत्साहित हो सकती हैं. इससे न केवल देश का राजनीतिक चेहरा बदलेगा, बल्कि समाज भी बहुत प्रभावित होगा. बहुत से लोग मानते हैं कि यह सदी महिलाओं की होने वाली है, खासकर युवा महत्वाकांक्षी महिलाओं की और भारत की महिलाएं तेजी से आगे बढ़ कर देश निर्माण में भूमिका निभा रही हैं. बाकी सब कुछ ठीक है, लेकिन महिलाओं को तो इंतजार ही करना है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.
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