इसमें सुशील मोदी और नंदकिशोर यादव का फोटो भी लगेगा
सुशील मोदी व नंदकिशोर यादव का बढ़ रहा कद, सौंपी जा सकती है बड़ी जिम्मेवारी
Gyanvardhan Mishra
बिहार की सियासत रोज करवट ले रही है. राजनीति की बिसात पर नित्य नये प्रयोग हो रहे हैं. पक्ष-विपक्ष 2024 का समर फतह करने को नए शमशीर की तलाश में जुटा है. ‘इंडिया’, गठबंधन नीतीश कुमार को संयोजक बनाकर चुनावी संग्राम में अपनी जीत सुनिश्चित करने की तैयारी में है. वहीं, भाजपा बिहार में नीतीश के सामने एक ऐसे चेहरे को ढूंढ रही है, जिसे आगे कर न सिर्फ 2024 में नीतीश की अगुवाई वाले ‘इंडिया’ गठबंधन को पछाड़ा जा सके, बल्कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन को कड़ी टक्कर दे सके. जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय गणना के बाद पिछड़े-अति पिछड़े के आरक्षण का दायरा बढ़ा कर प्रदेश की राजनीति की दिशा बदल दी है. ऐसे में यह तय है कि सियासी बिसात पर जो मोहरें बैठायी जाएंगी, वह पिछड़े-अति पिछड़े जातीय समीकरण के अनुरूप ही होंगी.
पिछड़ा वर्ग आइकन के रूप में है लालू-नीतीश की पहचान
बिहार में ‘इंडिया’ गठबंधन के दो बड़े घटक दल राजद और जदयू की पहचान पिछड़े-अति पिछड़े वोट बैंक वाले दल के रूप में है. अर्थात, इन दोनों का आधार वोट बैंक पिछड़ा-अति पिछडा वर्ग और मुस्लिम समुदाय के लोग हैं. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और जदयू के शीर्ष नेता नीतीश कुमार की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पिछड़ा वर्ग के आइकन के रूप में है. वहीं, ऐसा माना जाता है कि भाजपा के साथ अगड़ी जातियों के अलावा वैश्य वोटर हैं. हालांकि पिछले कई वर्षों में भाजपा की पैठ पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों में भी बढ़ी है. इसके बावजूद भाजपा की बिहार इकाई में पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग से आनेवालों में गिने-गिने चेहरे ही हैं, जिनमें प्रमुख रूप से सुशील कुमार मोदी, सम्राट चौधरी, नित्यानंद राय, तारकिशोर प्रसाद, नंदकिशोर यादव, डॉ. प्रेम कुमार और रेणु देवी के नाम शामिल हैं. जाहिर तौर पर 2024 लोकसभा में नरेंद्र मोदी जैसे बड़े चेहरे के सामने किसे आगे किया जाए, यह ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है. लेकिन, बिहार के संदर्भ में देखें तो भाजपा पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग से किसी चेहरे को बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है, जिससे बिहार में ‘इंडिया’ को जोरदार टक्कर दी जा सके.
डैमेज कंट्रोलर के रूप में है मोदी की पहचान
भाजपा में चल रही अंदरूनी चर्चाओं पर गौर करें, तो पूर्व डिप्टी सीएम और अभी राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी को भाजपा बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है. इसके कुछ संकेत 05 जनवरी को सुशील कुमार मोदी के जन्मदिन समारोह पर लगाये गये पोस्टर-बैनर में भी मिले. वैसे भी भाजपा पर कोई संकट आता है, तो ””””””””डैमेज कंट्रोलर”””””””” के रूप में मोदी को आगे कर दिया जाता है. एक पोस्टर में सुशील कुमार मोदी को बिहार भाजपा का संकटमोचक बताया गया है. पोस्टर पर हनुमान जी और सुशील मोदी की बड़ी सी तस्वीर है. इस पर लिखा गया है कि बिहार भाजपा के संकटमोचक. हालांकि यह पोस्टर अतिउत्साह में सुशील कुमार मोदी के किसी समर्थक ने लगाया होगा. लेकिन, ऐसा देखा जा रहा है कि पिछले कई महीनों से प्रदेश में उनकी सक्रियता बढ़ गयी है. वह लगातार पार्टी के प्रदेश कार्यालय भी जा रहे हैं और प्रेस वार्ता भी कर रहे हैं. प्रदेश भाजपा कार्यालय के बाहर ऐसे पोस्टर लगाना किस बात की ओर इशारा करता है, इसके कयास लगाए जा रहे हैं, इनके साथ-साथ नंदकिशोर यादव को भी पार्टी के कार्यक्रमों में प्रमुखता दी जाने लगी है. यादव पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, विधानसभा में विरोधी दल के नेता, विधानसभा की प्रमुख लोक लेखा समिति के सभापति और कई विभागों के लंबे समय तक मंत्री रह चुके हैं.
चौधरी मोदी का जन्मदिन समारोह या शक्ति प्रदर्शन
बिहार के सियासी गलियारों में दो जन्मदिन की खूब चर्चा है. गुरुवार को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी के सरकारी आवास पर उनके पिताजी शकुनी चौधरी का 88वां जन्मदिन समारोहपूर्वक मनाया गया. वहीं, उसके अगले दिन शुक्रवार को भाजपा के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी का 72वां जन्मदिन मनाया गया. इन दोनों जन्मदिन को दोनों नेताओं के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है. लोगों का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी के पिताजी का 88वां जन्मदिन था. यह कोई 75वां या 100वां जन्मदिन तो नहीं था, जिसके लिए इतना बड़ा आयोजन किया गया.इसे लोग सम्राट चौधरी के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देख रहे हैं. असल में माना यह जा रहा है कि बिहार में भाजपा की बड़ी जिम्मेवारी संभालने को लेकर सम्राट चौधरी और सुशील कुमार मोदी के बीच प्रतिस्पर्धा है. दोनों पिछड़ा वर्ग से आते हैं. हालांकि अध्यक्ष सम्राट चौधरी पहले से ही बिहार में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बड़ी जिम्मेवारी संभाल रहे हैं. लेकिन, जब चुनाव में किसी पिछड़े वर्ग के नेता को आगे करना होगा, तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व किसे चुनता है, यह देखनेवाली बात होगी.