Abhay Verma
Giridih : विगत चुनाव में रिकार्ड मतों से जीत हासिल करने वाली भाजपा की अन्नपूर्णा देवी के लिए इस बार कोडरमा की राह आसान नहीं है. भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा से ठोकरें खाने के बाद कोडरमा संसदीय क्षेत्र से जयप्रकाश वर्मा बतौर निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा के लिए परेशानी का सबब बने गए हैं. मालूम हो कि कोडरमा संसदीय क्षेत्र में भंडारो गांव कभी बीजेपी का गुरुकुल कहलाता था. भंडारों से ही राजनीति का ककहरा सीख रीतलाल प्रसाद वर्मा 5 बार सांसद बने थे. भाजपा के साथ भंडारों गांव तब कुशवाहा समाज की भी दिशा तय करती थी. रीतलाल का दबदबा ऐसा था कि इंदिरा की आंधी में भी वह सांसद बने थे. रीतलाल के बड़े भाई स्व. जगदीश प्रसाद कुशवाहा जिले में भीष्म पितामह का दर्जा रखते थे. रीतलाल की जीत में जगदीश प्रसाद कुशवाहा सारथी समान थे. तब भाजपा पर कुशवाहा का दबदबा था. दोनों दिग्गजों की मौत के बाद आज कुशवाहा समाज उपेक्षित महसूस कर रहा है. यही कारण है कि कुशवाहा समाज के प्रदेश स्तरीय नेता भी कोडरमा में डेरा जमाए हुए हैं और जातीय गोलबंदी पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं. राजनीति के चक्रव्यूह में फंसे जयप्रकाश वर्मा आज कोडरमा संसदीय क्षेत्र से बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं. किसी भी राजनीतिक दल द्वारा कुशवाहा समाज को तरजीह न दिए जाने के कारण समाज भी असमंजस में है.
मालूम हो कि कोडरमा में कुशवाहा, यादव, मुस्लिम व भूमिहार समाज किसी भी उम्मीदवार की जीत तय करती है. कोडरमा लोकसभा क्षेत्र में कुशवाहा इस बार राजनीतिक अस्तित्व का सामना कर रही है. यही कारण है कि परंपरागत रूप से भाजपा के समर्थक रहे कुशवाहा समाज जातीय गोलबंदी पर केंद्रित है. कुशवाहा भाजपा से जितनी दूर जाएगी, जयप्रकाश की स्थिति उतनी मजबूत होगी.
उपेक्षित महसूस कर रहा भूमिहार समाज भी सबक सिखाने के मूड में
इधर कोडरमा में लगातार उपेक्षित महसूस कर रहा भूमिहार समाज इस बार भाजपा को सबक सिखाने के मूड में है. इस समाज की सांसद से नाराजगी इस कारण है कि अन्नपूर्णा के सांसद रहते इस समाज को उचित राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं मिली. सांसद प्रतिनिधि की बात आई तो बाहरी क्षेत्र के स्व. जातीय को सांसद प्रतिनिधि बना दिया गया. भूमिहारों के तेवर से अन्नपूर्णा सहित प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के भी होश फाख्ता हैं.
इधर भाजपा से विदके मतदाताओं को समेटने में इंडिया गठबंधन के विनोद सिंह व निर्दलीय जयप्रकाश वर्मा एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं. विगत चुनाव में अन्नपूर्णा 7.55 लाख वोट लाकर शानदार जीत दर्ज की थी, पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबले में फंस चुकी है. 22 लाख मतदाता वाले इस संसदीय क्षेत्र में ऊंट किस करवट बैठेगी, कहना मुश्किल है. पर भाजपा जीत के प्रति आश्वस्त दिख रही है. कहीं अति विश्वास बीजेपी की चुनावी नैया ना डुबो दे. इसकी भी संभावना है. वहीं विनोद सिंह अल्पसंख्यक, दलित और भाजपा से विदके मतदाताओं के सहारे जीत की उम्मीद कर रहे हैं. इधर कुशवाहा को एकजुट कर जयप्रकाश अल्पसंख्यक और दलित मतों पर नजरे गड़ाये बैठे हैं.
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