Search

क्या संविधान की संरक्षक सरकारें आग लगाकर रोटियां सेंक रही हैं!

Soumitra Roy एक तरफ़ दंगा फैलाता, हत्या की सीढ़ी चढ़कर नफ़रत उड़ेलता भारत है और दूसरी ओर कानून-व्यवस्था और सुशासन के लिए दूसरों को कोसता और वादे करता दूसरा ही भारत है. अगले साल के चुनाव से 14 महीने पहले दक्षिण भारत का शांत, समृद्ध राज्य कर्नाटक नफ़रत की प्रयोगशाला बन गया है. इसे मुजफ्फरनगर कहें या कैराना. या फिर यूक्रेन की तरफ़ उमड़ते जंग के बादल के रूप में देखें. या फिर क्या यह समझ लें कि संविधान की संरक्षक सरकारें आग लगाकर रोटियां सेंक रही हैं. कर्नाटक से पहले गुजरात और मध्य प्रदेश के भी चुनाव हैं. गुजरात बीजेपी ने तो अपने ट्विटर हैंडल पर मुसलमानों को सामूहिक फांसी का कार्टून लगाकर अपनी तैयारी शुरू भी कर दी है. मध्य प्रदेश भी भीतर से सुलगाया जा रहा है. चुनाव आयोग के पिट्ठू अफ़सर धृतराष्ट्र बने चुपचाप बैठे हैं. कम से कम उन्हें दंगों को मान्यता देते हुए इसे चुनाव की शुरुआत मान लेना चाहिए. सांप्रदायिक दलों को घोषणा पत्र में यह घोषित कर देना चाहिए कि वे कब एक समुदाय विशेष की औरतों की आबरू, हिज़ाब, बिंदी, चिन्दी के नाम पर नोंचना शुरू करेंगे. कब भड़काऊ भाषण देंगे और कब आग लगाने का मुहूर्त निकालेंगे. नफ़रत तो हमारे दिलो-दिमाग में है और सोशल मीडिया पर कई तकरीरों में यह नज़र भी आ रही है. मन खट्टा हो चुका है. लगता है कि इस देश में रोजी-रोटी, ग़रीबी, भुखमरी और तरक्की से जुड़ी सारी समस्याएं खत्म हो चुकी हैं. इसलिए समाज जेब में माचिस लिए घूम रहा है. लगता नहीं है कि इस नफ़रत में कानों से सुनी बातें दिमाग से होते हुए दिल तक पहुंचेंगी. डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. [wpse_comments_template]

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp