Anand Kumar
एक दशक में नीरा राडिया का नाम अब बहुत से लोगों के जेहन से उतर गया होगा. नीरा देश के दो बड़े उद्योगपतियों रतन टाटा और मुकेश अंबानी की कंपनियों का जनसंपर्क देखती थीं. साल 2010 में उसके 140 फोन टेप सार्वजनिक हुए और देश यह जानकर दंग रह गया कि राडिया दरअसल एक कॉरपोरेट दलाल थी, जिसने अपने क्लायंट को लाभ पहुंचाने के लिए पत्रकारों से लेकर राजनेताओं तक का इस्तेमाल किया. राडिया के टेपों में 2जी स्पेक्ट्रम, कैबिनेट फेरबदल आदि से जुड़ीं बातें थीं, जिन्होंने भारतीय राजनीति में तहलका मचा दिया था.
2021 के साल की शुरुआत 200 पन्नों के लीक ह्वाट्स अप चैट से हुई है. इन चैट में राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रधानमंत्री तक सीधी पहुंच सहित कई ऐसी बातें हैं, जिनसे सरकार और मीडिया पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. ये चैट किसी कारपोरेट लॉबिस्ट और पावर ब्रोकर के नहीं, बल्कि एक पत्रकार के हैं. वह पत्रकार अर्नब गोस्वामी है. अर्नब जो अपने टीवी शो ‘पूछता है भारत’ में ऊंची आवाज और आक्रामक हावभाव के साथ सवाल पूछता नजर आता है, आज खुद सवालों के घेरे में है.
जानेमाने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने इन चैट के स्क्रीन शॉट जारी करते हुए कई ट्वीट किये हैं. प्रशांत का आरोप है कि अर्नब ने मीडिया व अपनी पोजीशन का एक दलाल के रूप में इस्तेमाल किया है. सरकार की ओर इशारा करते हुए वह कहते हैं कि कानून की राह पर चलनेवाले किसी भी देश में ये चैट जेल की चक्की पिसवाने के लिए काफी हैं. इन चैट में अर्नब ने ब्राडकास्ट ऑडियंस रिसर्च कौंसिल (बार्क) के पूर्व प्रमुख पार्थो दासगुप्ता के साथ बातचीत में पुलवामा हमले के पहले और बाद के बारे में ऐसी बातें कही हैं, जिनसे पता चलता है कि उसे इन सभी बातों की पहले से जानकारी थी. मसलन पाकिस्तान में की गयी एयर स्ट्राइक की जानकारी. दासगुप्ता टीआरपी घोटाले के प्रमुख अभियुक्त हैं और अभी न्यायिक हिरासत में हैं. इस टीआरपी घोटाले में रिपब्लिक चैनल की भी जांच चल रही है. चैट में तत्कालीन सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर के हवाले से लिखा गया है कि उन्होंने रिपब्लिक चैनल के खिलाफ मिली शिकायत को दरकिनार कर दिया है. अगर यह सही है तो सरकार को बताना चाहिए कि आखिर रिपब्लिक चैनल को बचाने की कोशिश क्यों की गयी?
बातचीत में गोस्वामी प्रधानमंत्री कार्यालय समेत राजनीतिक नेतृत्व के जरिये दासगुप्ता की मदद का आश्वासन करते साफ-साफ जाहिर करते हैं कि उनका प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा ‘ए एस’ से कितना घनिष्ठ संबंध है. अब ये ‘ए एस’ कौन है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. अर्नब गोस्वामी और पार्थो दासगुप्ता की वाट्सएप चैट लीक होने के बाद सत्ता और मीडिया के चरित्र पर बहुत से सवाल खड़े हुए हैं.
रिपब्लिक टीवी के चीफ इन एडिटर अर्नब गोस्वामी पिछले साल से काफी विवादों में रहे हैं. अन्वय नाइक सुसाइड केस में उन्हें दोषी ठहराया जा रहा था. इस मामले में उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भी रहना पड़ा था. इसके अलावा उन पर पैसे देकर चैनल की टीआरपी बढ़ाने का भी आरोप भी लगा. इसी टीआरपी मामले में बार्क प्रमुख दासगुप्ता और रिपब्लिक टीवी के दो शीर्ष अधिकारी जेल में हैं.
अपने टीवी चैनल के प्राइम टाइम शो पर गला फाड़ कर चिल्लानेवाले, मोदी विरोधियों के बारे में अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करनेवाले और चैनल पर बुलाये गये गेस्ट को बेइज्जत करनेवाले संपादक अर्नब ने अपने पत्रकार साथियों के साथ मोदी के मंत्रियों को भी नहीं छोड़ा. उसने अपने चैट में रजत शर्मा और प्रकाश जावडेकर के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है. उसने कहा कि सरकार का एक सचिव भी इंडिया टुडे और एनडीटीवी से बात नहीं करता और टाइम्स का तो सरकार ने बॉयकॉट किया हुआ है. लेकिन प्रशांत भूषण के इस विस्फोटक खुलासे पर पत्रकार और मीडिया हाउस चुप्पी साधे हैं. भूषण ने इस चुप्पी पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि वे इसलिए चुप हैं क्योंकि वे “दलाली स्ट्रीट में अपनी हैसियत जानते हैं. जाहिर है कि उनका क्रम अर्नब के नीचे है और वे अर्नब का जवाब देने से डरते हैं.”
सत्ता के गलियारों में पत्रकारों का आनाजाना कोई नयी बात नहीं है. सत्ता से सट कर सांसद, विधायक या मंत्री पद सहित कई दूसरे लाभ भी पत्रकार उठाते रहे हैं. लेकिन अर्नब के चैट से सत्ता और मीडिया के जिस गंठजोड़ का खुलासा होता है, वह खतरनाक है. ये सत्ता में बैठे लोगों के साथ दलाल मीडिया के नापाक गंठजोड़ को दिखाते हैं. यह बताते हैं कि कैसे टीआरपी में हेरफेर की जाती है और फर्जी समाचारों का प्रचार कैसे किया जाता है. ये चैट बताते हैं कि कैसे सत्ता के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौते किये जाते हैं. देश का एक बड़ा वर्ग आज भी मीडिया में आनेवाली खबरों को सच मानता है. सत्ता में बैठे लोग अब अर्नब जैसे पत्रकारों और रिपब्लिक जैसे चैनलों का इस्तेमाल जनता के विचारों को बदलने करने के लिए कर रहे हैं. टीवी पर जनता की आवाज बनने का नाटक करनेवाले लोगों के चेहरे पर दलाली की कालिख सामने आ रही है. अर्नब के चैट प्रमाण हैं कि सत्ता के तलवे चाटने का जमाना गया, दलाल मीडिया अब सरकार की साजिशों में बराबर का भागीदार है. मीडिया की विश्वसनीयता के लिए यह बहुत गहरा संकट है.