- रांची में दूसरा खाद्य प्रणाली संवाद का आयोजन
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कृषि और संबंधित सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत
संवाद को संबोधित करते हुए पूर्व खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने कहा कि दुनिया में खाद्य संकट को लेकर हमेशा चिंताएं जाहिर की जाती रही हैं. हरित क्रांति के दौर में हमने मात्रात्मक आत्मनिर्भरता हासिल कर ली थी, लेकिन पौष्टिकता में तब भी कमी थी. विशेषज्ञों ने हरित क्रांति के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति चेतावनी दी थी, जिसका खामियाजा आज हमें भुगतना पड़ रहा है. मंत्री सरयू राय ने दावा किया कि कुछ समय से फ़ैक्टरियों में भोजन बनाए जाने की चर्चा है. लेकिन यह टिकाऊ नहीं है. हमें स्थिरता के लिए कृषि और संबंधित सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है. यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है कि किसान वैश्विक बाजार में समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें.वनों पर सामुदायिक अधिकार देने ही होंगे
बैंगलोर से आयी कृषि मामलों की विशेषज्ञ कविता कुरुन्गति ने कहा कि खाद्य श्रृंखला को जितना विकेंद्रीकृत करने की नीतियां बनेंगी, उतना ज्यादा समस्याओं का समाधान संभव है. हमें खाद्य एवं पोषण सुरक्षा से एक कदम बढ़ते हुए खाद्य संप्रभुता की दिशा में सोचना ही होगा. हमारे आदिवासी क्षेत्रों में वनों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों पर समुदाय का एक बड़ा तबके की 28 फीसदी खाद्य जरूरतें पूरी होती हैं. इन समुदायों ने सदियों से जंगल को बिना कोई नुकसान पहुंचाए जंगल से अपनी खाद्य चीजें हासिल करते रहे हैं. यह उनका नैसर्गिक अधिकार है, तो सरकारी नीतियों में खासकर वन अधिकार कानून में उनको वनों पर सामुदायिक अधिकार देने ही होंगे. इससे वे वनों का संरक्षण भी करेंगे और अपनी खाद्य जरूरतें भी पूरी करेंगे. इससे सरकारी योजनाओं पर उनकी निर्भरता भी कम होगी.दुनिया में तीन कृषि प्रणालियां मौजूद
नीति विश्लेषक और कृषि वैज्ञानिक डॉ. देविंदर शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि आज दुनिया में तीन कृषि प्रणालियां मौजूद हैं. पहली पारम्परिक कृषि प्रणाली जिसके बारे लगभग सभी वाकिफ हैं . दूसरा कृषि क्रांति 4.0 जो पूरी आधुनिक मशीनों के जरिये पूरी दुनिया के लोग तेजी से प्रयोग करने लगे हैं. लेकिन तीसरी और आखरी सबसे खतरनाक है जो आर्टिफिसियल सिंथेटिक है, जिसके लिए न जमीन, न पानी, न बीज इत्यादि की जरूरत है . आज दुनिया के अंदर 270 फैक्ट्रियों हैं. अमेरिका में 1970 में 15 फीसदी किसान खेती से जुड़े थे. लेकिन आज मात्र 1.5 % शेष रह गए हैं.कृषि को निरंतर घाटे का सौदा दिखाया जा रहा
भारत में सरकार की नीतियां ठीक इसी दिशा में दशकों से बनाई जा रही हैं. यही कारण है कि आज ग्रामीण आबादी को शहरी आबादी में शिफ्ट करने पर तेजी से काम हो रहा है. कृषि को निरंतर घाटे का सौदा दिखाया जा रहा है. जिससे कि किसान खेती को छोड़कर शहरों में सस्ते मजदूर बन कर पूंजीपतियों के गुलाम बने रहें. आज भारत के किसानों की औसत मासिक आय मात्र 10 हजार रह गई है. कार्यक्रम का आयोजन डब्ल्यूएचएच, भूमिका, द आरआरए नेटवर्क, कैरिटास इंडिया, नेशनल लॉ स्कूल यूनिवर्सिटी और फिया ने किया. कार्यक्रम में नागरिक समाज, किसानों, समुदाय के नेताओं, शिक्षाविदों, मीडिया और निर्वाचित प्रतिनिधियों सहित अन्य विशेषज्ञों की भागीदारी की आशा करते हैं. अधिकांश प्रतिभागी झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक से शमिल हुए. इसे भी पढ़ें – रेल">https://lagatar.in/will-meet-railway-minister-to-solve-the-problem-annapurna-devi/">रेलमंत्री से मिलकर समस्या का समाधान करूंगी : अन्नपूर्णा देवी [wpse_comments_template]
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