Ranchi : विश्व अस्थमा दिवस की पूर्व संध्या पर AMSA (एशियन मेडिकल स्टूडेंट एसोसिएशन) और SMSA (साउथ एशियन मेडिकल स्टूडेंट एसोसिएशन) से समर्थित स्विच ऑन फाउंडेशन ने ” वायु प्रदूषण से अस्थमा” पर विशेष चर्चा का आयोजन किया. कार्यक्रम में रिम्स समेत प्रमुख डॉक्टरों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस विषय पर अपने विचार साझा किये. मौके पर स्विच ऑन फाउंडेशन ने जागरूकता पहल के तहत बाहरी श्रमिकों पर किए गए वायु प्रदूषण आधारित स्वास्थ्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों का खुलासा किया. परिवेशी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले 1200 लोगों के नमूने के आधार पर रांची व गिरिडीह में किये गये. सर्वेक्षण से दिखा गया कि, या तो व्यवसाय या गरीबी के कारण स्पष्ट रूप से श्वसन प्रणाली प्रभावित होती है. 57% बुजुर्गों में श्वसन संबंधी बीमारी के लक्षण पाये गये.
खांसी और सीने में तकलीफ जैसे लक्षण अस्थमा के पूर्वसूचक- डॉ. देवेश
कार्यक्रम में रिम्स के सहायक प्रोफेसर डॉ. देवेश कुमार ने कहा, रांची और गिरिडीह के आसपास के क्षेत्रों से बाहरी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली आबादी के विभिन्न समूहों के सर्वेक्षण डेटा एक खतरनाक लक्षण स्थापित करते हैं. खांसी और सीने में तकलीफ जैसे लक्षण अस्थमा के पूर्वसूचक हैं, क्योंकि वायु प्रदूषण से एलर्जी की संवेदनशीलता बढ़ जाती है.
निर्माण व कारखाने के श्रमिकों के लिए फेफड़े की जांच जरूरी- डॉ. निशीथ
आर्किड मेडिकल सेंटर रांची के डॉ. निशीथ कुमार ने कहा, प्रदूषित पर्यावरणीय जोखिम और स्वास्थ्य की स्थिति के बीच एक निश्चित संबंध है. वर्तमान निराशाजनक परिदृश्य को देखते हुए बार-बार फेफड़े के परीक्षण का विकल्प चुनना उचित है. यह विशेष रूप से निर्माण व कारखाने के श्रमिकों, ड्राइवरों, खनिकों और बुजुर्गों के लिए यह अवरोधक और प्रतिबंधात्मक फेफड़ों की बीमारियों का तुरंत पता लगाने और उनका इलाज करने में मदद कर सकता है.
कमजोर समुदाय वायु प्रदूषण के लिए सबसे अधिक संवेदनशील- विनय जाजू
स्विच ऑन फाउंडेशन के एमडी विनय जाजू ने कहा, कमजोर समुदाय, बच्चे, बुजुर्ग आबादी वायु प्रदूषण के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं. प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों को बढ़ावा देने और हमारी वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के लिए स्वच्छ वायु गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कई एजेंसियों को एक साथ काम करने की तत्काल आवश्यकता है. स्विच ऑन फाउंडेशन झारखंड के सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर दीपक बाड़ा ने कार्यक्रम का संचालन किया. प्रोजेक्ट मैनेजर सोनाली पिंगुआ ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
इसे भी पढ़ें – सिद्धू को कांग्रेस से निकालने की तैयारी, हरीश चौधरी ने सोनिया गांधी को भेजा पत्र
सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष
- उम्र के लिहाज से बच्चे और बूढ़े बाहरी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले सबसे कमजोर समूह हैं.
- 46% बच्चों में खांसी और 43% बच्चों के गले में खराश के लक्षण दिखाई दिए. 57% बुजुर्गों में श्वसन संबंधी बीमारियों के पुराने और तीव्र दोनों लक्षण दिखाई दिए.
- वायु प्रदूषण संबंधी बीमारियों से पीड़ित नमूने का अनुपात रांची की तुलना में गिरिडीह में अधिक है. गिरिडीह में 61% व रांची में 36% लोग छींकने से पीड़ित. बुजुर्ग समुदाय में गिरिडीह के 70 फीसदी और रांची के 20 फीसदी लोग आराम करते समय सांस फूलने से पीड़ित हैं. गिरिडीह के 61 वर्ष से अधिक आयुवर्ग में से 78% सीने में तकलीफ से पीड़ित हैं, जबकि रांची के केवल 32%.
- विभिन्न व्यवसाय समूहों में स्ट्रीट क्लीनर, स्वीपर सबसे अधिक असुरक्षित हैं, जिसके बाद निर्माण श्रमिकों का स्थान है. स्ट्रीट क्लीनर में 37 फीसदी और कंस्ट्रक्शन वर्कर्स में 22 फीसदी ने चलते समय सांस फूलने की शिकायत की है. स्ट्रीट क्लीनर में 53 फीसदी और कंस्ट्रक्शन वर्कर्स में 48 फीसदी ने नाक बंद होने की शिकायत की है. इस समूह को बिना किसी गलती के जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर किया गया.
- वायु प्रदूषण से होने वाली विभिन्न बीमारियों में अस्थमा और सीओपीडी दो बीमारियां हैं, जो बड़ी संख्या में आबादी को प्रभावित करती हैं. जबकि अस्थमा किसी भी उम्र में हो सकता है, सीओपीडी बुजुर्गों की बीमारी है. ये दोनों रुग्णता और मृत्यु दर के कारण हैं. बच्चों में अस्थमा का प्रसार लगातार बढ़ रहा है, यह हम सभी के लिए चिंता का विषय है.
- सर्वेक्षण के निष्कर्षों में एनसीएपी के तहत शहर की स्वच्छ वायु कार्य योजना के कार्यान्वयन की तत्काल आवश्यकता का आह्वान किया गया. लोगों को जहरीले उत्सर्जन से बचाने के लिए कारखानों और खुली खदानों में प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों का उचित प्रवर्तन लागू किया जाना चाहिए
इसे भी पढ़ें – दामोदर और स्वर्णरेखा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 8 दिन चलेगा कार्यक्रम
[wpse_comments_template]