Dumka: संथालपरगना के आदिवासी गांव में अभी बाहा धूमधाम से मनाया जा रहा है. खशी के साथ आदिवासी बाहा पर्व में जाहेर थान में परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना करने के बाद एक दूसरे पर पानी डाल कर पर्व मनाते हैं. बाहा पर्व तीन दिनों का होता है. बाहा का शाब्दिक अर्थ फूल होता है.
प्रथम दिन को पूजा स्थल जाहेर थान में छावनी बनाया जाता है. इसे जाहेर दाप माह कहा जाता है. दूसरे दिन को बोंगा माह कहते हैं. तीसरे दिन को शरदी माह कहते हैं. बाहा पर्व में जाहेर ऐरा, मारांग बुरु, मोड़ेकू–तुरुयकू और धोरोम गोसाई जैसे देवी–देवताओं के नाम पर बलि भी दिया जाता है. सभी महिला–पुरुष और बच्चों को सारजोम पेड का फूल प्रसाद के रूप में दिया जाता है. ग्रामीण टमाक और तुन्दाह बजा कर नृत्य करते हैं.
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इसे लेकर गांव में उत्सव का माहौल रहता है. सभी ग्रामीण नायकी को नाच–गान के साथ लेकर गांव पहुंचते हैं. नायकी गांव के सभी घरों में सारजोम का फूल देते हैं और पवित्र जल का छिड़काव करते हैं. फूल मिलते ही सभी एक–दूसरे पर पानी का बौछार कर होली मनाते हैं. फिर नाच–गान करते है. एक–दुसरे के घर जाते हैं और खान–पान करते है.
दुमका के सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि बाहा आदिवासियों का बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है. इसमें लोग सादगी के साथ पानी से खेलते हैं. वहीं समाजसेवी सचिदानंद सोरेन ने कहा कि मनुष्यों का प्रकृति के साथ सामंजस्य को दर्शाता है बाहा पर्व. यह भारत के अलावा विदेशों में भी मनाया जाता है.
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