Ghatshila : बहरागोड़ा प्रखंड की चिंगड़ा पंचायत के कोसाफलिया गांव के शहीद टोला में जनप्रतिनिधियों और बिजली विभाग की उदासीनता से बांस, लकड़ी और वृक्षों पर तार लगाए गए है. इन तारों पर बिजली मौत बनकर दौड़ती है. मालूम हो कि यह गांव गलवान घाटी में 16 जून 2020 को शहीद हुए जवान गणेश हांसदा का है. एक साल पूर्व ही गांव में बिजली के खंभे गाड़े गए थे. लेकिन आज तक बिजली विभाग ने तार खींचने का काम नहीं किया है. गाड़े हुए खंभों के पास ही बांस और लकड़ी गाड़ कर बिजली के तार ले जाए गए हैं. ऐसे में यहां कभी भी कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है.
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बिजली के उपकरण एक साल से शोभा की वस्तु बनकर रह गए हैं
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जवान गणेश हांसदा की शहादत के बाद गांव में नेताओं और सरकारी अधिकारियों का जमावड़ा लगा था. ग्रामीणों को आश्वासनों की घूंट पिलाई गई. लेकिन अब तक शहीद के गांव में बिजली व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं हो सकी है. गांव में बिजली विभाग द्वारा गाड़े गए खंभे, लगाए गए ट्रांसफार्मर और शहीद स्मारक स्थल में रखे गए बिजली के उपकरण एक साल से शोभा की वस्तु बनकर रह गए हैं. सड़क के पार स्थित ट्रांसफार्मर से शहीद टोला में बिजली का संयोजन दिया गया है. बांस और लकड़ी पर तार खींचे गए हैं. साथ ही ग्रामीण लो वोल्टेज से भी परेशान है. बिजली विभाग के पदाधिकारियों से कई बार गुहार लगाई गई, परंतु किसी ने भी ध्यान नहीं दिया.
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शहीद टोला में जल संकट भी बरकरार
शहीद टोला में जल संकट भी गहराया हुआ है. टोला में 10 आदिवासी परिवार निवास करते हैं. यहां सिर्फ एक ही चापाकल है, एक भी कुंआ नहीं. सोलर जलापूर्ति योजना सड़क के पार वाले टोले में स्थापित की गई है. वहां से पानी लाने के लिये ग्रामीणों को सड़क पार करनी पड़ती है. जल संकट के कारण शहीद स्मारक स्थल में रोपित विभिन्न प्रकार के फूल-पौधों की सिंचाई में भी कठिनाई होती है. यहां तक कि शहीद टोला में पूर्ण रूप से सड़क का भी निर्माण नहीं हुआ है. केवल पंचायत स्तर से 300 फुट पीसीसी का निर्माण हुआ है.
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सिर्फ आश्वासन मिला : दिनेश हांसदा
शहीद गणेश हांसदा के बड़े भाई दिनेश हांसदा ने बताया कि जनप्रतिनिधि और नौकरशाहों ने हमें सिर्फ आश्वासन ही दिया है. बिजली विभाग द्वारा केवल ट्रांसफार्मर लगाया गया है. बिजली के खंभे तो गाड़ दिए गए, लेकिन तार नहीं खींचा गया है. लकड़ी और बांस पर तार खींचकर बिजली की व्यवस्था की गई है. पेयजल के लिये भी समुचित व्यवस्था नहीं की गई है. स्मारक स्थल में लगाए गए फूल-पौधों को बचाना भी मुश्किल हो गया है.
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