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तैयार रहिये, बेरोजगार, तंगहाल और जिंदा रहने के लिए मुश्किल दौर आने ही वाला है!

Surjit Singh 15वें वित्त आयोग (15th Finance Commisssion) ने पिछले दिनों बहुत खतरनाक आंकड़े दिये हैं. आयोग ने अपने अनुमान में कहा है कि अप्रैल 2020 से जून 2022 तक का जीएसटी कलेक्शन में 7.1 लाख करोड़ रुपये की कमी हो सकती है. यह कोई मामूली कमी नहीं है. नोटबंदी और गलत तरीके से लागू किये गये जीएसटी की वजह से पहले से खराब चल रहे देश की आर्थिक स्थिति के और खराब होने के संकेत हैं. 7.1 लाख करोड़ का मतलब, देश के कुल बजट का 20 प्रतिशत हिस्सा होता है. और कुल जीडीपी का 3.5 प्रतिशत. जब टैक्स के रुप में इतनी बड़ी राशि कम वसूल होगी, तब आप हालात के बारे में सोच नहीं सकते. बस कल्पना कर सकते हैं. हां, कुछ लोग इस पर गर्व भी कर सकते हैं. और मोदी सरकार की गलत नीतियों पर सवाल उठाने वालों को देशद्रोही साबित करने की कोशिशें करेंगे. पर, सच्चाई यही है कि 15वें वित्त आयोग का यह अनुमान बताता है कि टैक्स कलेक्शन में 7.1 लाख करोड़ की कमी का असर राज्यों पर भी पड़ेगा. अगले दो सालों में राज्यों को 4.85 करोड़ रुपये का घाटा होगा. इस स्थिति में हिन्दीभाषी राज्यों की वित्तीय स्थिति बदतर हो जायेगी. क्योंकि अधिकांश हिन्दीभाषी राज्यों में उद्योग-धंधे कम हैं. जीएसटी से मिलने वाली राशि में कमी का सीधा असर ऐसे राज्यों पर पड़ेगा, जो इस पर निर्भर है. उनके सामने कर्जा लेने का अलावा कोई रास्ता नहीं बच रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक, टैक्स घटने का सबसे बड़ा असर लोगों की जिंदगी पर पड़ने वाला है. तेल, गैस, खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने से लेकर तमाम वस्तुओं के मूल्यों में भारी बढ़ोतरी तय है. इस स्थिति में रोजगार, नौकरी या व्यापार में बढ़ोतरी होना और मुश्किल. दो-तीन दिन पहले दुनिया की प्रतिष्ठित रिसर्च एंड इंवेस्टमेंट बैंकिंग फर्म UBS ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अगस्त 2021 के बाद भारतीय इकोनॉमी का सबसे बुरा दौर शुरु होने वाला है. यूबीएस की रिपोर्ट में लिखा गया है कि कोरोना महामारी के वक्त और उसके बाद भारत में जो बेरोजगारी आयी है, उससे आम लोगों को कमाई में बड़ी कमी आयी है.करीब 13 लाख करोड़ की कमी.इस कारण जुलाई-अगस्त से कंज्यूमर डिमांड में भारी कमी हो सकती है. जिस कारण देश मंदी की चपेट में आ सकता है. कुल मिलाकर स्थिति यह है कि देश की जनता को कमाई है नहीं, महंगाई घटने का नाम नहीं ले रहा, रोजगार है नहीं, सरकारी नौकरियां कम होती जा रही हैं और डिमांड भी कम होने के आसार हैं. कुल मिलाकर स्थिति यह है कि हर बात में गर्व करने वाली, अच्छे दिन लाने वाली राष्ट्रवादी पार्टी की सरकार में आम लोगों के सामने जिंदा रहने के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं.

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