Manish Singh
तदबीर कहते है युक्ति को, तौर तरीकों को. सही तदबीर, तकदीर बदल सकती है. लेकिन बिहार से आ रही तस्वीरें, जमीनी जरुरतों को पूरा कर कांग्रेस या महागठबंधन की तकदीर बदलेंगी- संदेह है.
पहला कारण- 65 लाख वोटर कटे है. हर विधानसभा में 20 हजार आम एवरेज है. गठबंधन 20 हजार नेगेटिव से शुरू कर रहा है. SIR की प्रक्रिया में वोटर लिस्ट फ्रीज होने में सप्ताह भर शेष है. सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने लिस्ट तो ओपन कर दी, लेकिन जिम्मा राजनैतिक दलों पर डाल दिया. इनके एजेंट, आपत्ति जमा करावे, तो कटे नाम जोड़ दिये जायेंगे. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट इस प्ली पर नर्म है.
कोर्ट का अंतिम फैसला SIR का पूर्णतया रद्द होने के रूप में आता है, तो ठीक. वरना इस समय जब वर्कर को एकसूत्रीय रूप से अपनी वोटरों को वापस जुड़वाने में लगना चाहिए. वह रैलियों की भीड़ से मुतमईन हो रहा है.
दूसरा कारण- राजद का कैडर है. अब उसे कैडर कहना एग्जगरेशन होगा. वह उत्साहियों का अनियंत्रित झुंड है. इसमे ज्यादा बोलने वाले, बददिमाग, कमबुद्धि भरे पड़े हैं. सत्ता सूंघकर फिर से आउट ऑफ कंट्रोल जा रहे हैं. वे पिछली बार की तरह, बस सूंघते ही रह जाएंगे. क्योकि यह दौर, जंगल राज की यादों को ताजा करवाने का नही. लोग उसे भूलने को तैयार है, लेकिन राजदिए अपनी उजड्डई छोड़ने को तैयार नही.
कोर वोटर से आगे नए लोगों को जोड़ने की जगह होस्टाइल कर रहे हैं. भूराबाल साफ करने बड़बोली में लगे है. भू-भूमिहार, रा-राजपूत, बा- ब्राह्मण और ल-लाला. हाल में सत्ता में थे, ऐसा कुछ नही किया. आगे जब मौका मिले, कोई सरकार ऐसा करेगी नही. मगर जमीन पर बकबक जरूर करेंगे. तो छवि क्या बना रखी है, समझ लीजिए.
बिहार में कांग्रेस का संगठन शून्य है. कांग्रेस सौ से ज्यादा प्रतिशत, राष्ट्रीय जनता दल पर निर्भर है. और पिछली बार जहां जहां जीते, स्थानीय राजद संगठन से खींचतान ही चलती रही. कोई कोऑर्डिनेशन नही है. पिछली बार 70 सीटे लड़कर जो 12 जीती थी, उसमे से 80% विधायक इस बार हार जाएंगे. इसमें स्वयं की छवि, निष्क्रियता, एंटी इनकम्बेंसी, वर्कर्स से दूरी वगैरह कारण बनेंगे.
मुस्लिम वोट में सेंध लगाने MIM फिर कमर कस रही है. पिछली बार 8-10 सीटें उन्होंने पलट दी. खेल इसी में पलट गया. अबकी बार भी, उसे गठबंधन में लेने की कोई बात नही हो रही. चुनाव चुम्बन, खूबसूरत तस्वीरों और साथ चलने वालों की भीड़ से जीते जाते, तो 2024 जीता जा चुका था. वह हुआ नही.
मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, उत्तराखंड जहां कांग्रेस सीधी टक्कर में थी- वहां एक एक मकान में दो सौ वोटर रहते रहे. लेकिन इलेक्शन के पहले, लोकल कांग्रेसियों को पता भी न चला. अब राहुल सांप निकल जाने पर लकीर पीट रहे है. ठीक है, अपने लेवल पर बढ़िया कर रहे हैं. पर उनके कैडर ने कोई सबक सीखा? उनके अगल बगल बैठे धुरंधर राज्यसभाई स्ट्रैटजिस्टों ने सीखा?
तस्वीर में राहुल किसी बिहारी बालक को कंधे पर उठाये दिखते हैं. लेकिन सत्य यह कि बिहारी बालक तेजस्वी, उनकी कांग्रेस को कंधे पर ढो रहा है. ये बाते, बिहार में काम कर रहे एक समर्पित कांग्रेसी की पीड़ा है. मैंने अपने शब्द और मंच दिया.
उनकी रिकमंडेशन की सूची निम्न है-
- तुरन्त अपने वोटर जुड़वाने को प्राथमिकता दें. यहां तक कि यात्रा से अधिक जरूरी, यह काम माने, और युद्ध स्तर पर जुटा जाये.
- MIM को गठबंधन में लें. विगत बार की तरह 70 सीट न लड़े. माले, MIM, राजद को चांस दे.
- सोच समझकर टिकट दे. वर्कर से दूर 5 साल गुजारने वाले विधायकों के टिकट बड़ी संख्या में काटे.
बिहार बीजेपी को किसी कीमत पर नही चाहता. लेकिन विकल्पों पर सशंकित है. इस बार के परिणाम केवल बिहार नहीं, देश बदल सकते हैं. और यह बात केंद्र में बैठे को मालूम है. कोई भी कानूनी, गैर कानूनी हथकंडे से बाज नहीं आएंगे. सत्ता, अफसर, आयोग सब जाल बिछाए बैठे हैं.
इन सबके बीच आ रही ये खूबसूरत तसवीर है. मगर सच यही, कि नाकाफी तदबीर है.
डिस्क्लेमरः यह टिप्पणी लेखक के सोशल मिडिया एकाउंट से साभार लिया गया है.
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