Bermo : गर्मी के दिनों में पहाड़ों और जंगलों की सैर करना सैलानियों को अच्छा लगता है. लेकिन पहाड़ों की गोद में बसे गांवों में इन दिनों पानी के संकट का सामना करना पड़ता है. दरअसल गर्मी के दिनों में पहाड़ों के किनारे बसे या उनके आसपास पानी के स्रोत सूख जाते हैं. लिहाजा उन्हे पीने के पानी के लिए भी परेशानी उठानी पड़ती है. यह परेशानी बोकारो जिला के चर्चित झुमरा पहाड़ की तलहटी पर बसे पन्दनाटांड एवं तिलैया पंचायत के डाकासाडम गांव की है.
जलमीनार शोभा की वस्तु बनकर रह गई
झुमरा पहाड का यह गांव पचमो पंचायत के अन्तर्गत आता है. यहां दलित समुदाय के लोग रहते हैं और इसकी आबादी करीब तीन से चार सौ की है. गांव में एक चापानल था, जो काफी समय से खराब पड़ा हुआ है. गांव में सौर उर्जा के तहत उसी चापानल से जलमीनार भी बनाया गया था, लेकिन जब चापानल ही खराब है. तो जलमीनार शोभा की वस्तु बनकर रह गई है.
विधायक, सांसद तक पहुंच नहीं होने से नहीं बन रहा चापानल
पन्दनाटांड की महिलाएं अनिता देवी, सुमित्रा देवी, बंसती देवी सहित अन्य महिलाओं ने बताया कि खाना बनाने से लेकर पीने के लिए पानी के जुगाड़ में सुबह ही गांव से कोसों दूर जाना पड़ता हैं. जोरिया में बह रहे पानी को जमा कर बर्तन में लेकर वापस लौटते हैं, तब उनका चूल्हा जल पाता है. चापाकल की मरम्मति के लिए पीएचइडी विभाग से संपर्क किया गया. मगर वे विधायक और सांसद से मिलने को कह देते हैं. वे बताती हैं कि उनकी पहुंच विधायक और सासंद तक नहीं होने के कारण उनका काम नहीं हो रहा है.
पानी के लिए जंगल- जंगल भटकना पड़ता है
ऐसा ही एक और मामला झुमरा पहाड़ के दूसरी छोर का है. यह तिलैया पंचायत के डाकासाडम गांव अन्तर्गत कोयलाडीह टोला का है. यहां के आदिवासी समुदाय को पानी के लिए जंगल-जंगल भटकना पडता है. गांव से तीन चार किलोमीटर दूर में डाकासाडम गांव के निकट लइयो प्रोजेक्ट का एक बंद खदान है. जहां बरसात का पानी भरा हुआ है, जो एक तालाब के रूप में है. आसपास के ग्रामीण पानी पीने और नहाने तक का उपयोग उसी तालाब से करते हैं. लेकिन कोयलाडीह के ग्रामीण आदिवासी महिलाओं को आने जाने में काफी समय गुजर जाता है. इसलिए चन्दु किस्कु के नेतृत्व में ग्रामीणों ने एक नाला को खोद कर पानी निकालने का प्रयास किया है.
प्राकृतिक साधनों पर निर्भर है लोग
चन्दू किस्कु ने बताया कि इस टोला में एक चापानल है, मगर काफी समय पहले से ही खराब पड़ा हुआ है. एक दो बार बनाने का प्रयास किया मगर नहीं बना जिस कारण उसे उसी हालत में छोड़ दिया गया. वे बताते है कि प्राकृतिक रूप से जो साधन उपलब्ध है, अब उसी पर भरोसा है. सरकार के अधीन काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारी शहर के लोगों को ही सुख सुविधा मुहैया कराने में व्यस्त रहती है. सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लोग कैसे जीते हैं, यह उनके लिए कोई मायने नहीं रखता है.