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बिहार चुनावः सेना की बहादुरी और सियासत की बीमारी

Surjit Singh

अगले कुछ माह बाद बिहार में विधानसभा चुना होने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल (29 मई) से बिहार दौरे पर हैं.  माना जा रहा है, मोदी का बिहार दौरान चुनाव के मद्देनजर ही है. यह भी जैसा कि अंदाजा लगाया जा रहा था, जिस तरह लोकसभा चुनाव-2019 से ठीक पहले पुलवामा हमले के बाद सेना द्वारा किए गए बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक का इस्तेमाल चुनावी रैलियों में हुआ, इस बार ऑपरेशन सिंदूर का इस्तेमाल बिहार के चुनाव में होगा, मोदी के भाषणों से यह पक्का हो गया है. मोदी ने सेना की बहादुरी का श्रेय खुद लेने की शुरुआत कर दी है. जिसका असर विधानसभा चुनाव परिणाम पर भी जरुर दिखेगा.

ऐसे समय में यह जानना दिलचस्प होगा कि पिछले 20 सालों में भारतीय सेना ने कब-कब सर्जिकल स्ट्राइक किया और तब की सरकार ने इसका राजनीतिक फायदा उठाया या नहीं. तभी यह पता चलेगा कि सेना की कार्रवाइयों की आड़ में सियासत की बीमारी नई है या पुरानी.

ऑपरेशन जिंजर

30 अगस्त 2011 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन जिंजर किया था. यह भारतीय सेना ने भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पार जाकर पाकिस्तान के क्षेत्र में किया गया सर्जिकल स्ट्राइक था. ऑपरेशन जिंजर का नेतृत्व मेजर जनरल एसके चक्रवर्ती ने किया था. बाद में वह लेफ्टिनेंट जेनरल हुए.

भारतीय सेना के एक जवान का सिर काट लेने की घटना के बाद ऑपरेशन जिंजर किया गया था. इसका उद्देशय पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गतिविधियों का जवाब देना था. इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने आतंकियों के तीन ठिकानों पर हमला किया. जिसमें कई आतंकी मारे गए. साथ ही एक सिर के बदले आतंकियों का तीन सिर लेकर लौटे. इसे प्रचारित नहीं किया गया.  बाद में गुप्त दस्तावेजों के सामने आने के बाद दुनिया को इस बारे में पता चला.

प्रीसिजन स्ट्राइक

ऑपरेशन जिंजर की तरह ही मुंबई आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने प्रीसिजन स्ट्राइक व हॉट परस्यूट के नाम से ऑपरेशन किया. इसमें भी भारतीय सेना सीमा के उस पार गई और आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई कर सफलता पूर्वक लौट आयी. 

2008 व 2013

सेना के दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि वर्ष 2008 और 2013 में भी सेना के जवान एलओसी के पार जाकर पाकिस्तान के क्षेत्र में स्थित आतंकियों के अड्डों को ध्वस्त किया और आतंकियों को मार गिराया. 

ऑपरेशन जिंजर, ऑपरेशन प्रीसिजन स्ट्राइक, ऑपरेशन हॉट परस्यूट आदि भी भारतीय सेना का गुप्त ऑपरेशन था. इन अभियानों ने भारतीय सेना ने सीमा के पार जाकर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की. पर, ऐसे अभियानों को गुप्त रखा गया. यह तब की सरकार की कूटनीति थी.  

इन ऑपरेशनों के दौरान मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और केंद्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी. ना सरकार ने इस ऑपरेशन को प्रचारित किया और ना ही कांग्रेस पार्टी ने कभी भी इसे लेकर राजनीति की. क्योंकि तब सेना की बहादुरी की आड़ में सियासत करने बीमारी लगी नहीं थी. 

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