Ranchi : अपर बाजार, पंडरा और अन्य व्यापारिक इलाकों में अगर आप गौर से देखें, तो सड़क पर दौड़ती एक अनोखी मिसाल नजर आएगी. देशी जुगाड़ की ऐसी तकनीक, जो आधुनिक टेक्नोलॉजी को सीधी टक्कर देती है. यह किसी बड़ी कंपनी की इनोवेशन नहीं, बल्कि बिहार से आए मेहनती मजदूरों की दिमागी उपज है.
पुरानी स्कूटर और होंडा बाइक को मॉडिफाई कर इंजन वाला रिक्शा बना दिया गया है. इन वाहनों की खास बात यह है कि ये कम खर्च में ज्यादा काम करते हैं और पारंपरिक ढुलाई के तरीकों को पूरी तरह बदल चुके हैं. आज ये मजदूर केवल श्रमिक नहीं, देशी इंजीनियर बन चुके हैं, जो कम समय में अधिक कमाई कर रहे हैं और शारीरिक मेहनत से राहत पा चुके हैं.
पुरानी स्कूटर बनी कमाई की नई सवारी
बिहार से आए बिट्टू कुमार बताते हैं कि उन्होंने कबाड़ी से 3000 रुपये में एक पुरानी स्कूटर खरीदी थी. फिर करीब 30 से 40 हजार रुपये खर्च कर एक वेल्डिंग की दुकान में उसे इंजन वाला रिक्शा बना दिया. यह सवारी एक लीटर पेट्रोल में 30-35 किलोमीटर तक आराम से चलती है. उनका कहना है कि अब काम आसान हो गया है और आमदनी भी दोगुनी हो गई है. बचपन में गांव में जो स्कूटर वाला जुगाड़ देखा था, वही अब उनके जीवन की गाड़ी चला रहा है.
होंडा बनी बोझ उठाने वाली गाड़ी
भोला कुमार, जो वैशाली जिले से रांची आए हैं और पिछले दस वर्षों से यहीं रह रहे हैं, पहले रिक्शा चलाकर दुकानों तक सामान पहुंचाते थे. उन्होंने अपने दोस्तों को स्कूटर को मॉडिफाई करते देखा था. इसके बाद उन्होंने पुरानी होंडा गाड़ी के दोनों पहियों को रिक्शा के पहियों के साथ जोड़कर एक चार-पहिया इंजन रिक्शा बना लिया. अब वे कम समय में अधिक सामान ढो पाते हैं और मेहनत भी पहले की तुलना में काफी कम हो गई है.
देशी सोच से निकली स्मार्ट सवारी
देशी जुगाड़ से न केवल मेहनत आसान हुई है, बल्कि मजदूरों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है. जहां टेक्नोलॉजी आम आदमी की पहुंच से दूर मानी जाती है, वहीं इन देसी इनोवेशन ने अपने दम पर एक छोटी-सी क्रांति खड़ी कर दी है.अपर बाजार जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में आज ये जुगाड़ वाली स्मार्ट गाड़ियां रोजाना सड़कों पर दौड़ती नजर आती हैं. आम आदमी की सोच, मेहनत और नवाचार की जीती-जागती मिसाल बन गयी है.
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