बायोगैस की सुविधाएं इन जिलों में दी जा चुकी हैं
रांची जिले के तमाड़, गुमला के सिसई, लातेहार के मनिका, सिमडेगा, लोहरदगा, खूंटी, गोड्डा, सरायकेला, जामताड़ा, ईस्ट सिंहभूम, दुमका, पाकुड़, वेस्ट सिंहभूम में बायोगैस की सुविधा प्रदान की गई है. इसे भी पढ़ें : ग्रीन">https://lagatar.in/four-bdos-grieve-over-the-relaxation-of-data-entry-of-green-card/27547/">ग्रीनकार्ड की डाटा इंट्री में ढील देने पर चार बीडीओ को शोकॉज
पशुपालन करने वाले गांवों में दी गई प्राथमिकता
alt="" width="369" height="277" />जेटीडीएस ने इस बायोगैस की सुविधा की प्राथमिकता वैसे गांवों और इलाकों में दी जा रही है. जहां शुकर पालन कार्यक्रम चलाया गया. शुकर पालन से निकलने वाली अपशिष्ट पदार्थ से ही बायोगैस का निर्माण किया जाता है. इससे पशुपालक को अधिक से अधिक फायदा तो मिलता ही है. साथ ही जैविक कृषि में भी बढ़ावा मिलता है. शूकर पालन से होने वाली गंदगी का भी निष्पादन हो जाता है. प्रति प्लांट निर्माण में 32 हजार की लागत है. इस योजना के तहत ट्राइबल डेवलपमेंट मुहैया कराता है. वर्तमान में 22 गांवों में बायोगैस प्लांट की सुविधा मुहैया करवाई गई. अब 18 गांवों में करने का लक्ष्य रखा गया है.
वनों की कटाई में भी कमी आएगी
alt="" width="380" height="221" />जेटीडीएस, परियोजना उपनिदेशक, आशीष आनंद ने कहा कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत लकड़ी चूल्हे के धुएं और गंदगी से होने वाले स्वास्थ्य के हानिकारक प्रभावों से भी बचाव तो होगा ही. साथ ही इससे न केवल आजीविका में मदद मिलेगी, बल्कि वन कटाई में भी कमी आएगी. जेटीडीएस के परियोजना निदेशक, भुजेंद्र बास्की ने बताया कि वर्तमान में प्रथम चरण में 22 गांवों में बायोगैस का प्लांट लगाया गया है. इसके माध्यम से लाभुक परिवार के घरों में गैस चूल्हा भी जलने लगा है. वैसे गांवों का चयन किया गया है, जहां शुकर पालन किया जाता है. ट्राइबल सब-प्लान जिलों के अन्य गांवों में यह योजना सामुदायिक स्तर पर होगी, ताकि गांव के अन्य लोगों को इसका लाभ मिल सके. इसे भी पढ़ें : पेट्रोल">https://lagatar.in/vehicle-businessman-agitated-over-price-hike-of-petrol-and-diesel27565-2/27565/">पेट्रोल
और डीजल की मूल्यवृद्धि से वाहन व्यवसायी हलकान

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