Pravin Kumar
Ranchi: झारखंड की राजनीति में एक बार फिर से दिलचस्प मोड़ आने वाला है. चुनाव में अपने लचर प्रदर्शन से आजसू लाचार हो गई है. वहीं भाजपा ने भी पिछले चुनाव से खराब प्रदर्शन किया है. अब झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) अपनी स्थिति को मजबूत करने और भाजपा को चुनौती देने की रणनीति बनाने में जुट गया है. इस रणनीति के तहत झामुमो छोड़ दूसरी पार्टी में गये नेताओं को पार्टी में वापसी की पटकथा तैयार की जा रही है. कुछ आजसू के पुराने कैडरों को भी साथ लेने की तैयारी है. झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) एक नई रणनीति के तहत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) को झटका देने की तैयारी में है. झामुमो का फोकस अपने जनाधार को मजबूत करने, आदिवासी वोट बैंक को पुनः संगठित करने और विपक्षी दलों के प्रभाव को कम करने पर है. झामुमो की योजना उन नेताओं को वापस पार्टी में लाने की है, जिन्होंने किसी कारणवश पार्टी छोड़ दी थी. झारखंड में भाजपा को एक बड़ा झटका झामुमो दे सकता है. झामुमो के पुराने नेताओं और दूसरी पार्टी के नेताओं को झामुमो में आने के सवाल पर झामुमो केन्द्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, दल और दिल दोनों खुला है, मार्टी के हित में और झाऱखंड के हित में जो भी पार्टी में आते हैं, उनका स्वागत है.
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झामुमो की रणनीति: ममता बनर्जी की राह?
2021 में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने जिस तरह भाजपा से गए नेताओं को अपनी पार्टी में वापस लाकर संगठन को मजबूत किया था, वही मॉडल झामुमो भी अपनाने की कोशिश कर सकता है. चंपाई सोरेन का मामला इसका एक उदाहरण हो सकता है. सरायकेला विधानसभा सीट से विधायक चंपाई सोरेन के झामुमो में वापसी की चर्चा तेज है. झामुमो के राष्ट्रीय महासचिव का बयान और हेमंत सोरेन का उनके प्रति नरम रुख इस बात के संकेत देते हैं कि झामुमो उनके वापस आने का स्वागत करेगा. चंपाई सोरेन का भाजपा में शामिल होने का उद्देश्य पार्टी को मजबूत करना था, लेकिन वे अपेक्षित लाभ देने में असफल रहे. साथ ही विधानसभा चुनाव के बाद कमजोर हो चुकी आजसू पार्टी के कई नेता झामुमो के सम्पर्क में बताये जा रहे हैं. आजसू पार्टी के कई नेता भी झामुमो के साथ जा सकते हैं.
झामुमो की बढ़त और भाजपा और आजसू को झटका
झामुमो के लिए यह महत्वपूर्ण है कि पार्टी में वापसी करने वाले नेताओं से न केवल संगठन मजबूत हो, बल्कि झारखंड में पार्टी की पकड़ और गहरी हो. वहीं 28 आदिवासी सुरक्षित सीटों में से केवल एक पर हार झामुमो के लिए चिंता का विषय है, लेकिन चंपाई सोरेन की वापसी से यह सीट फिर से झामुमो के खाते में आ सकती है.
इतिहास भी समर्थन करता है: झामुमो का इतिहास बताता है कि उसने पहले भी पार्टी छोड़कर गए नेताओं को वापस लाकर ताकतवर स्थिति हासिल की है. साइमन मरांडी और हेमलाल मुर्मू जैसे नेताओं की वापसी इसका उदाहरण है.
झामुमो के समाने आगे का रास्ताः पार्टी के सामने दो विकल्प हैं. पहला ममता बनर्जी की तरह पार्टी छोड़ चुके नेताओं को वापस लाकर पार्टी की ताकत बढ़ाना. दूसरा “जो गए, सो गए” की नीति अपनाकर नए चेहरों को मौका देना. अगर झामुमो ममता की राह पर चलता है, तो यह न केवल पार्टी के भीतर एकता बढ़ाएगा, बल्कि भाजपा को भी बड़ा झटका देगा. साथ ही आजसू नेतृत्व से नाराज चल रहे नेताओं झामुमो में आते हैं तो झामुमो के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि वापस लौटने वाले नेता पार्टी के एजेंडे के प्रति निष्ठावान रहें.
हाल के दिनों में झामुमो छोड़कर दूसरे दलो में जाने वाले नेता
झामुमो को छोड़कर भाजपा में गए लोगों की सूची भी लंबी है. शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी में शामिल हो गई थी. पूर्व विधायक लोबिन हेंब्रम, दिनेश विलियम मरांडी भी बीजेपी में शामिल हो गए थे. लेकिन वह भी चुनाव नहीं जीत सके.
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