Dinesh pandey
Bokaro : झारखंड सरकार की एक और योजना पर निजी कंपनियों ने पलिता लगा दिया है. बीते सप्ताह शराब की दुकान पर काम करने के लिए एक हजार से अधिक युवाओं का जिला प्रशासन ने साक्षात्कार लिया और जिनका चयन हुआ. उन्हें काम पर नहीं रखा जा रहा है. जबकि सरकार का प्लान था कि भले स्थाई न सही, अस्थायी निजी क्षेत्र में ही हो राज्य में सात से आठ हजार युवओं को नौकरी देकर ढिंढोरा पीटा जाएगा. पर इसके पहले ही मैन पावर उपलब्ध कराने वाली कंपनी सुमित एंड कंपनी ने बेरोजगारों के सपने तोड़ दिये.
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अभ्यर्थियों के मुताबिक कंपनी का साफ कहना है कि पचास हजार दीजिए और ड्यूटी ज्वाइन कीजिए. नहीं देंगे तो जहां जाना है जाइए. इसी विवाद के बीच मंगलवार को बोकारो शहर की कई दुकानों को खोल दिया गया. दुकानें खुली तो पहले दिन शराब के प्रिंट रेट से दस रुपये प्रति बोतल मंहगा बेचने का निर्देश दिया गया है. शराब की शौकीन जनता दस रुपये अधिक देकर शराब खरीद रही है.
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क्या थी योग्यता , कितनों का हुआ चयन
राज्य में शराब की बिक्री को बेहतर करने का वादा कर उत्पाद विभाग ने नियोजनालय के माध्यम से भर्ती निकाली. भर्ती में ब्रिक्री सहायक के लिए इंटर पास तथा सुपरवाइजर के लिए स्नातक की योग्यता निर्धारित की गयी. लगभग 1300 युवाओं का एक सप्ताह तक साक्षात्कार चास स्थिति सरकारी आइटीआई में लिया गया. मानदेय के बारे में बताया गया कि इंटर वाले को अप्रशिक्षत मजदूर का तथा स्नातक वाले को प्रशिक्षित मजदूर का वेतन दिया जाएगा. इसके लिए साक्षात्कार बोर्ड में दो डीएसपी , नियोजन पदाधिकारी, श्रम विभाग के अधिकारी के अलावा बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में अपर समहर्ता को रखा गया.
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इन तेज तर्रार अधिकारियों ने बेरोजगार युवाओं से कई सवाल किए और फिर 128 सुपरवाइजर तथा 373 सेल असिस्टेंट की सूची राज्य मुख्यालय को भेज दी गयी. इसके बाद एक अलग ग्रुप द्वारा रांची में 125 युवाओं को बुलाया गया. यहां कागज लिये गये और दूसरे दिन साक्षात्कार के नाम पूरे दिन बैठाकर शाम में पैसे की मांग गयी. यह सब सोमवार उत्पाद विभाग के कार्यालय में हुआ. इससे पहले को-आपरेटिव कालोनी के शराब के सिंडिंकेट कार्यालय में बुलाया गया. यहां जब हंगामा हुआ तो सब बदल गए.
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भर्ती झारखंड के नाम पर, बिहार व छत्तीसगढ़ के लोगों को मिल गयी ड्यूटी
बंद कमरे में बिहार, छत्तीसगढ़ और रांची से आए वैसे लोगों को दुकान की चाबियां थमाई गयी, जिनका बोकारो नियोजनालय से कोई संबंध ही नहीं था. बेरोजगार सरकार की इस नीति से काफी खफा नजर आए और कहा कि जब इंटरव्यू हो रहा था उस समय पैसे की कोई बात नहीं कही गयी थी, तो आखिर 9000 की नौकरी के लिए पचास हजार की सिक्योरिटी मनी क्यों लिया जा रहा है ? यानी एक बार फिर झारखंडियों के साथ नाइंसाफी की गयी. वैसे कम्पनी एवं अधिकारी दोनों अपना पक्ष रखने से कतराने लगे हैं.
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