Bokaro : झारखंड राज्य बनने के बाद से खिलाड़ियों की लगातार उपेक्षा की खबरें लगातार सामने आ रही है. लेकिन सरकार इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दे रही है. यही कारण है की खेल से अपना करियर बनाने का सपना देखने वाली खिलाड़ी के पास अब आंसू बहाने के सिवा कुछ भी नहीं बचा. बोकारो के बालीडीह स्थित कुर्मीडीह में ऐसी ही फुटबॉल खेलने वाली तीन बहनें हैं. ये तीन बहनों ने कभी यह नहीं सोचा था कि उन्हें फुटबॉल खेलने से किसी तरह का लाभ नहीं मिल पायेगा.
नेशनल और इंटरनेशनल खेल चुकी हैं सफिरा
ये तीनों फुटबॉल खिलाड़ी आज एक झोपड़ी नुमा घर में रहने को मजबूर है. तीनों खिलाड़ी बहनें दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रही है. कुर्मीडीह में रहने वाली तीनों बहनों में जसपीना हस्सा सबसे बड़ी है. वहीं विनीता हस्सा और सफिरा हस्सा उनसे छोटी हैं. तीनों ही फुटबॉल खिलाड़ी है. छोटी बहन सफिरा ने फुटबॉल में नेशनल और इंटरनेशनल खेल चुकी हैं. उसने 2013 और 2014 में भारतीय महिला फुटबॉल टीम की कप्तानी करते हुए श्रीलंका का भी दौरा किया था. वहीं बड़ी बहन जसपिना और विनीता नेशनल फुटबॉल टीम का हिस्सा बन चुकी है. दोनों ने 2005 से 2012 तक कई फुटबॉल टूर्नामेंटों में भाग लिया.
सफिरा गुजरात में मजदूरी कर चला रही घर
इन तीनों बहनों से पिता का साया 2017 में उठ गया. उसके बाद से इनपर मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया. आज हालत ऐसी है कि छोटी बहन की कमाई से पेट भर रहा है. सफिरा घर चलाने और पढ़ाई पूरी करने के लिए गुजरात में मजदूरी का काम कर रही है.विनीता ने राज्य सरकार से सहयोग की अपील की है. उसका कहना है कि आज तक हम लोग खुद के पैसे से फुटबॉल खेल से आ रहे हैं. आज ना हमारे पास जूते हैं और ना ही जर्सी. फुटबॉल की कीमत कितनी हो गई है कि हम इसे खरीद भी नहीं सकते हैं.
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झारखंड सरकार से नौकरी देने की मांग
विनीता ने सरकार से मांग की कि छोटी बहन को जल्द से जल्द नौकरी दें. ताकि हमारा घर चल सके और खेल में भी वो नाम कमा सके. इन तीनों बहनों को कई प्रशस्ति पत्र और मेडल भी मिल चुके हैं. लेकिन सरकार द्वारा जो प्रोत्साहन मिलना चाहिए था, वह उन्हें आज तक नहीं मिला.
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3 साल की उम्र से खेल रही हैं फुटबॉल
विनीता ने बताया कि उसके पिता ने उन्हें खूंटी स्थित सिरूम गांव से बोकारो अपने साथ लाये थे. ताकि वे लोग अच्छे मैदान में खेल कर राज्य और देश का नाम रोशन करें. तीनों बहने 3 साल की उम्र से ही फुटबॉल खेल रही हैं. तीनों बहनों ने खेल के दौरान पढ़ाई को भी नहीं छोड़ा. वहीं मां सारामणि हस्सा कहती हैं कि हमें यह उम्मीद थी कि हमारा कोई बेटा नहीं है. लेकिन इन बेटियों को खेलते देख हमें काफी खुशी होती है. राज्य के मुख्यमंत्री से सारामणि कहना चाहती हैं कि इन खिलाड़ियों पर ध्यान दें ताकि वे लोग इसमें आगे बढ़ सकें.
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