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रांची सदर अस्पताल में 2026 से होगा बोन मैरो ट्रांसप्लांट

  • देश का पहला सदर अस्पताल बनने की ओर बड़ा कदम

Ranchi : आयुष्मान भारत योजना के सफल क्रियान्वयन के बाद देश के सर्वश्रेष्ठ सदर अस्पतालों में अपनी पहचान बना चुका रांची सदर अस्पताल अब एक और ऐतिहासिक उपलब्धि की ओर तेजी से बढ़ रहा है. 

 

झारखंड सरकार ने सदर अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट सुविधा शुरू करने का फैसला लिया है, जिससे यह देश का पहला ऐसा सदर अस्पताल बनने की दिशा में अग्रसर है, जहां यह जटिल और जीवन रक्षक इलाज उपलब्ध होगा.

 

राज्य कैबिनेट से प्रस्ताव पारित होने के बाद इस परियोजना के लिए जरूरी संसाधन विकसित करने हेतु लगभग 6.45 करोड़ रुपये की राशि भी जारी कर दी गई है. यह राशि यूनिट के निर्माण, फ्लोर रेनोवेशन, अत्याधुनिक उपकरणों की खरीद, कंज्यूमेबल्स और स्टाफ वेतन पर खर्च की जाएगी.

 

सदर अस्पताल के उपाधीक्षक एवं पैथोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. बिमलेश कुमार सिंह ने बताया कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट को अलग रूप में विकसित किया जाएगा. इसके लिए सदर अस्पताल की नई बिल्डिंग के आठवें तल्ले पर स्थान चिन्हित कर लिया गया है. यह यूनिट पूरी तरह आधुनिक तकनीक और सुविधाओं से युक्त होगी.

 

उन्होंने बताया कि फिलहाल एक विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध हैं और सरकार जल्द ही अन्य डॉक्टरों एवं तकनीकी स्टाफ की नियुक्ति करेगी. इस यूनिट को देश के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान सीएमसी वेल्लोर का विशेषज्ञ और तकनीकी सहयोग मिलेगा, जिसके लिए सहमति भी प्राप्त हो चुकी है.

 

झारखंड में थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया जैसी अनुवांशिक रक्त बीमारियों और विभिन्न प्रकार के रक्त कैंसर के मरीजों की संख्या काफी अधिक है.

 

इन गंभीर बीमारियों के इलाज में बोन मैरो ट्रांसप्लांट अत्यंत प्रभावी माना जाता है, लेकिन वर्तमान में न तो झारखंड और न ही आसपास के राज्यों के सरकारी अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध है.

 

इसी कारण अब तक मरीजों को इलाज के लिए वेल्लोर, मुंबई, दिल्ली या हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में जाना पड़ता है, जहां इलाज का खर्च 16 से 20 लाख रुपये तक पहुंच जाता है. यह राशि अधिकांश परिवारों की पहुंच से बाहर होती है.

 

डॉ. बिमलेश सिंह ने कहा कि रांची सदर अस्पताल में यह सुविधा शुरू होने के बाद इलाज की लागत काफी कम हो जाएगी. इससे सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया, ल्यूकेमिया और अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों को राज्य के भीतर ही बेहतर इलाज मिल सकेगा.

 

रांची के सिविल सर्जन डॉ. प्रभात कुमार ने बताया कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट सुविधा शुरू करने के लिए देश के कई वरिष्ठ डॉक्टर तैयार हैं. सीएमसी वेल्लोर के विशेषज्ञ डॉक्टर रांची आकर ट्रांसप्लांट करेंगे, जबकि इसके बाद की देखभाल स्थानीय डॉक्टरों और प्रशिक्षित नर्सों द्वारा की जाएगी. इसके लिए नर्सिंग स्टाफ को विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाएगा.


स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, जनवरी से बोन मैरो ट्रांसप्लांट वार्ड और ऑपरेशन थिएटर के निर्माण का काम शुरू किया जाएगा और वर्ष 2026 के भीतर ट्रांसप्लांट प्रक्रिया शुरू करने का लक्ष्य रखा गया है.

 

आंकड़ों के अनुसार, हर साल 100 से 150 बच्चे गंभीर रक्त संबंधी बीमारियों से पीड़ित पाए जाते हैं, जिनमें से कई को बोन मैरो ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है.

 

यूनिट शुरू होने के बाद हर साल 150 से 200 नए मरीजों को बेहतर उपचार मिल सकेगा. डॉक्टरों का कहना है कि विशेष रूप से पांच वर्ष तक के थैलेसीमिक बच्चों में ट्रांसप्लांट के बाद 50 से 60 प्रतिशत तक पूरी तरह स्वस्थ होने की संभावना रहती है.

 

बोन मैरो ट्रांसप्लांट ल्यूकेमिया, लिम्फोमा, मल्टीपल मायलोमा जैसे रक्त कैंसर के साथ-साथ थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी अनुवांशिक बीमारियों में भी बेहद कारगर साबित होता है.

 

सरकार ने इसे एक नई और महत्वपूर्ण स्वास्थ्य योजना के रूप में मंजूरी दी है. उपकरणों की खरीद, भवन निर्माण और अन्य कार्यों की नियमित मॉनिटरिंग वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की जाएगी, ताकि तय समय में काम पूरा हो सके. इस यूनिट के शुरू होने से झारखंड के हजारों मरीजों और उनके परिवारों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है.

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