New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया है. जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने नोटबंदी के फैसले को सही बताया है. संवैधानिक बेंच ने कहा कि आर्थिक फैसलों को बदला नहीं जा सकता है. बता दें कि 8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने अचानक देश में नोटबंदी लागू की दी.जिसके बाद लोगों को बैंक का बाहर लाइन में खड़ा होना पड़ा था.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच बातचीत हुआ था. सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि नोटबंदी का फैसला लेते समय अपनाई गई प्रक्रिया में कोई कमी नहीं थी. इसलिए उस अधिसूचना को रद्द करने की कोई जरूरत नहीं है.
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7 दिसंबर को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था
गौरतलब है कि 8 नवंबर 2016 को अचानक 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था. केंद्र सरकार के इस फैसले से पूरे देश में नोटबंदी लागू हो गयी थी. नोटबंदी के खिलाफ 58 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. इस सभी याचिकाओं में सुनवाई करते हुए 7 दिसंबर को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिखा था. इससे पहले कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और आरबीआई से नोटबंदी से जुड़े सभी दस्तावेज और रिकॉर्ड कोर्ट में पेश करने को कहा था. जिसे सीलबंद लिफाफे में जमा किया गया था.
नोटबंदी में भारी खामियां थीं और इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया थी कि नोटबंदी में भारी खामियां थीं और इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए. इस प्रक्रिया ने देश के कानून के शासन का मजाक बना दिया. केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर ही सरकार नोटबंदी कर सकती है. लेकिन यहां प्रक्रिया को ही उलट दिया गया. केंद्र ने फैसला लेने के दौरान अहम दस्तावेजों को रोक दिया, जिसमें सरकार द्वारा आरबीआई को 7 नवंबर को लिखा गया पत्र और आरबीआई बोर्ड की बैठक के मिनट्स शामिल हैं.
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केंद्र सरकार ने नोटबंदी को एक अहम फैसला बताया था
वहीं केंद्र ने याचिकाओं के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि जाली नोटों, बेहिसाब धन और आतंकवाद जैसी गतिविधियों से लड़ने के लिए नोटबंदी एक अहम कदम था. नोटबंदी को अन्य सभी संबंधित आर्थिक नीतिगत उपायों से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए. नोटबंदी ने नकली करंसी को सिस्टम से काफी हद तक बाहर कर दिया. नोटबंदी से डिजिटल अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचा है.
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